Monday, 27 October 2025

*।।बुध ग्रह गोचर 2025/2026 वर्ष।।*

बुध ग्रह गोचर २०२५/२०२६

गोचर से फल ज्ञात करना

ग्रह विभिन्न राशियों में भ्रमण करते हैं। ग्रहों के भ्रमण का जो प्रभाव राशियों पर पड़ता है उसे गोचर का फल या गोचर फल कहते हैं। गोचर फल ज्ञात करने के लिए एक सामान्य नियम यह है कि जिस राशि में जन्म समय चन्द्र हो यानी आपकी अपनी जन्म राशि को पहला घर मान लेना चाहिए उसके बाद क्रमानुसार राशियों को बैठाकर कुण्डली तैयार कर लेनी चाहिए. इस कुण्डली में जिस दिन का फल देखना हो उस दिन ग्रह जिस राशि में हों उस अनुरूप ग्रहों को बैठा देना चाहिए. इसके पश्चात ग्रहों की दृष्टि एवं युति के आधार पर उस दिन का गोचर फल ज्ञात किया जा सकता है।


तुला 
अक्टूबर 3, 2025, शुक्रवार को 03:47 ए एम बजे

वृश्चिक 
अक्टूबर 24, 2025, शुक्रवार को 12:39 पी एम बजे
बुध वृश्चिक राशि में गोचर है।

तुला 
नवम्बर 23, 2025, रविवार को 07:58 पी एम बजे

वृश्चिक 
दिसम्बर 6, 2025, शनिवार को 08:52 पी एम बजे

धनु 
दिसम्बर 29, 2025, सोमवार को 07:27 ए एम बजे

मकर 
जनवरी 17, 2026, शनिवार को 10:27 ए एम बजे
Grahraj Astrology ज्योतिष वास्तु धार्मिकपूजा 

कुम्भ 
फरवरी 3, 2026, मंगलवार को 09:54 पी एम बजे

मीन 
अप्रैल 11, 2026, शनिवार को 01:20 ए एम बजे

मेष 
अप्रैल 30, 2026, बृहस्पतिवार को 06:55 ए एम बजे

वृषभ 
मई 15, 2026, शुक्रवार को 12:34 ए एम बजे

मिथुन 
मई 29, 2026, शुक्रवार को 11:14 ए एम बजे

कर्क 
जून 22, 2026, सोमवार को 03:41 पी एम बजे

मिथुन 
जुलाई 7, 2026, मंगलवार को 10:32 ए एम बजे

कर्क 
अगस्त 5, 2026, बुधवार को 07:58 पी एम बजे
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सिंह 
अगस्त 22, 2026, शनिवार को 07:33 पी एम बजे

कन्या 
सितम्बर 7, 2026, सोमवार को 01:35 पी एम बजे

तुला 
सितम्बर 26, 2026, शनिवार को 12:41 पी एम बजे

वृश्चिक 
दिसम्बर 2, 2026, बुधवार को 05:30 पी एम बजे

धनु 
दिसम्बर 22, 2026, मंगलवार को 07:42 ए एम बजे

गोचर का अर्थ होता है गमन यानी चलना. गो अर्थात तारा जिसे आप नक्षत्र या ग्रह के रूप में समझ सकते हैं और चर का मतलब होता है चलना. इस तरह गोचर का सम्पूर्ण अर्थ निकलता है ग्रहों का चलना. ज्योतिष की दृष्टि में सूर्य से लेकर राहु केतु तक सभी ग्रहों की अपनी गति है। अपनी-अपनी गति के अनुसार ही सभी ग्रह राशिचक्र में गमन करने में अलग-अलग समय लेते हैं। नवग्रहों में चन्द्र का गोचर सबसे कम अवधि का होता है क्योंकि इसकी गति तेज है। जबकि, शनि की गति मंद होने के कारण शनि का गोचर सबसे अधिक समय का होता है।
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ग्रहों का राशियों में भ्रमण काल-

सूर्य, शुक्र, बुध का भ्रमण काल 1 माह, चंद्र का सवा दो दिन, मंगल का 57 दिन, गुरू का 1 वर्ष, राहु-केतु का 1-1/2 (डेढ़ वर्ष) व शनि का भ्रमण का - 2-1/2 (ढ़ाई वर्ष) होता है।

सुचना 📵यह लेख पौराणिक ग्रंथों अथवा मान्यताओं पर आधारित है अत: इसमें वर्णित सामग्री के वैज्ञानिक प्रमाण होने का आश्वासन नहीं दिया जा सकता। विस्तार में आप कार्यालय पर संपर्क करें।

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Thursday, 25 September 2025

🚩।।नवदुर्गा 🙏कुमारिका पूजन विशेष।।🚩


।।कुमारिका पूजन विशेष।।

हिन्दू धर्म के अनुसार  नवरात्रों में कन्या पूजन का विशेष महत्व है. माँ भगवती के भक्त  अष्टमी या नवमी को कन्याओं की विशेष पूजा करते हैं . 

नौ कुंवारी कन्याओं को सम्मानित ढंग से बुलाकर उनका पैर अपने हाथो से धो-पोछ कर आसन पर बैठा कर भोजन करा सब को दक्षिणा और भेंट देते हैं.

श्रीमद देवीभागवत के अनुसार कन्या पूजन के भी कुछ नियम हैं जिनको हमें पालन करना चाहिए,

 जैसे  एक वर्ष की कन्या को नही बुलाना चाहिए, क्योकि वह कन्या गंध भोग आदि पदार्थो के स्वाद से बिलकुल अनभिज्ञ रहती हैं .

‘कुमारी’ कन्या वह कहलाती है जो दो वर्ष की हो चुकी हो, 

तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति, 

चार वर्ष की कल्याणी , 

पांच वर्ष की रोहिणी, 

छ:वर्ष की कालिका, 

सात वर्ष की चण्डिका, 

आठ वर्षकी शाम्भवी, 

नौ वर्षकी दुर्गा और

 दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती हैं .

इससे उपर की अवस्थावाली कन्या का पूजन नही करना चाहिए .

 कुमारियो की विधिवत पूजा करनी चाहिए . 

फिर स्वयं प्रसाद ग्रहण कर अपने व्रत को पूर्ण कर ब्राह्मण को नौवों दिन की दक्षिणा दे पैर छू विदा करना चाहिए .

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कुमारी कन्यायों के पूजन से प्राप्त होने वाले लाभ इस तरह से हैं .

कुमारी” नाम की कन्या जो दो वर्ष की होती हैं  पूजित हो कर दुःख तथा दरिद्रता का नाश ,शत्रुओं का क्षय और धन, आयु की वृद्धि करती हैं .

त्रिमूर्ति” नाम की कन्या का पूजन करने से धर्म-अर्थ काम की पूर्ति होती हैं पुत्र- पौत्र आदि की वृद्धि होती है .

कल्याणी” नाम की कन्या का नित्य पूजन करने से विद्या, विजय, सुख-समृद्धि प्राप्त होती हैं.

रोहणी” नाम की कन्या के पूजन रोगनाश हो जाता हैं

कालिका”  नाम की कन्या के पूजन से शत्रुओं का नाश होता हैं

चण्डिका”  नाम की कन्या के पूजन से धन एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैंं

शाम्भवी” नाम की कन्या के पूजन से सम्मोहन, दुःख-दरिद्रता का नाश व  किसी भी प्रकार के युद्ध (संग्राम) में विजय प्राप्त होती हैं .

दुर्गा” नाम की कन्या के पूजन से क्रूर शत्रु का नाश, उग्र कर्म की साधना व पर-लोक में सुख पाने के लिए की जाती हैं

सुभद्रा– मनुष्य को अपने मनोरथ की सिद्धि  के लिए “सुभद्रा”की पूजा करनी चाहिए

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कुमारी पूजा

॥ माहात्म्य ॥ ब्राह्मणी सर्वकार्येषु जयार्थे नृपवंशजाम् । लाभार्थे वैश्यवंशोत्थां सुतार्थे शूद्रवंशजाम् ॥ दारुणे चान्त्यजातीनां पूजयेद्विधिना नरः । वर्जयेत् सर्वकार्येषु दासीगर्भसमुद्भवाम् ॥ ॥ रुद्रयामले ॥ नटीकन्यां हीनकन्यां तथा कापालिकन्यकाम् । रजकस्यापि कन्या च तथा नापितकन्यकाम् ॥ गोपालकन्यकां चैव ब्राह्मणस्यापि कन्यकाम् । शूद्रकन्यां वैद्यकन्यां तथा वैश्यस्य कन्यकाम् ॥ चाण्डालकन्यकां वापि यत्रकुत्राश्रमे स्थिताम् । सुहृदवर्गस्य कन्यां च समानीय प्रयत्नतः ॥ ॥ योगिनीतन्त्रे ॥ यदि भाग्यवशाद्देवि वेश्याकुलसमुद्भवा । कुमारी लभ्यते कान्ते सर्वस्वेनापि साधकः ॥ यत्नतःपूजयेतां तु स्वर्णरौप्यादिभिर्मुदा । तदा तस्य महासिद्धिर्जायते नात्र संशयः ॥ तस्मात्तां पूजयेद्बालां सर्वजाति समुद्भवाम् । जातिभेदोनकर्त्तव्यःकुमारीपूजने-शिवे ॥ जातिभेदान्महेशानि नरकान्न निवर्त्तते । विचिकित्सापरो मन्त्री ध्रुवं स पातकी भवेत् ॥ एषा प्रशस्ता कुमारी तु सर्वजातीयेव पूज्या । ॥ कुब्जिकातन्त्रे ॥ पञ्चवर्षात्समारभ्य यावद् द्वादशवार्षिकी । कुमारी सा भवेद्देवी निजरूपप्रकाशिनी ॥ षड्वर्षाच्च समारभ्य यावच्च नववर्षिका । तावच्चैव महेशानि साधकाभीष्टसिद्धये ॥ अष्टवर्षात्समारभ्य यावत्त्रयोदशाब्दिकी । कुलजां तां विजानियात् तत्र पूजां समाचरेत् ॥ दशवर्षात्समारभ्य यावत्षोडशवार्षिकी । युवतीं तां विजानियाद् देवतां तां विचिन्तयेत् ॥ ॥ विश्वसारतन्त्रे ॥ अष्टवर्षा तु सा कन्या भवेद्गौरी वरानने । नववर्षा रोहिणी सा दशवर्षा तु कन्यका ॥ अत ऊर्ध्वं महामाया भवेत्सैव रजस्वला ॥ ॥ रुद्रयामले ॥ एकवर्षा भवेत् सन्ध्या द्विवर्षा च सरस्वती । त्रिवर्षा च त्रिधामूर्तिश्चतुर्वर्षा तु कालिका ॥ शुभगा पञ्चवर्षा तु षड्वर्षा च ह्युमा भवेत् । सप्तभिर्मालिनी प्रोक्ता ह्यष्टवर्षा च कुब्जिका ॥ नवभिः कालसन्दर्भा दशभिश्चापराजिता । एकादशा तु रुद्राणी द्वादशाब्दा तु भैरवी ॥ त्रयोदशा महालक्ष्मी द्विसप्ता पीठनायिका । क्षेत्रज्ञा पञ्चदशभिः षोडशे चाम्बिका भवेत् । एवं क्रमेण सम्पूज्य यावत्पुष्पं न जायते ॥ (पुष्पं रजोस्रावम्) प्रतिपदादि पूर्णान्त वृद्धिभेदेन पूजयेत् । महापर्वसु सर्वेषु विशेषाच्च पवित्रके ॥ महानवम्यां देवेशि कुमारीश्च प्रपूजयेत् । अष्टोत्तरशतं वापि एकां वापि प्रपूजयेत् ॥ पूजिता प्रतिपूज्यन्ते निर्दहन्त्यवमानिताः । कुमारी योगिनी साक्षात् कुमारी परदेवता ॥ असुरा अष्टनागाश्च ये ये दुष्टग्रहा अपि । भूतवैतालगन्धर्व डाकिनीयक्षराक्षसाः ॥ याश्चान्या देवताः सर्वा भूर्भुवःस्वश्च भैरवाः । पृथिव्यादीनि सर्वाणि ब्रह्माण्डं सचराचरम् ॥ ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च ईश्वरश्च सदाशिवः । सन्तुष्टः सर्वतुष्टश्च यस्तु कन्यां प्रपूजयेत् ॥ ॥ मन्त्रमहोदधौ ॥ द्विवर्षा सा कुमार्युक्ता त्रिमूर्तिः हायनत्रिका । चतुरद्वा तु कल्याणी पञ्चवर्षा तु रोहिणी ॥ षडब्दा कालिका प्रोक्ता चण्डिका सप्तहायना । अष्टवर्षा शाम्भवी स्यात् दुर्गा तु नवहायना । सुभद्रा दशवर्षोक्ता नाममन्त्रैः प्रपूजयेत् ॥ पूजादिना पूर्वदिने - (पूजा से एक दिन पुर्व ही निमन्त्रण देना है ।) गन्धपुष्पाक्षतादिभिर्मूलेन ॥ भगवति कुमारि पूजार्थं त्वं मया निमन्त्रितासि मां कृतार्थय ॥ इति निमन्त्र्य नमस्कुर्यात् ॥ निमन्त्रितां प्रातराहूय प्रदक्षिणीकृत्य - पत्नीद्वारा उद्वर्तनाद्यैः स्नापयित्वा । गन्धतैलेन शरीरं संस्कार्य । केशं परिष्कृत्य । ललाटे सिन्दूरं - नयनयोः कज्जलं सर्वाङ्गे चन्दनं वस्त्रालङ्कारैराभूष्य । सपत्नीकयजमानः - कुमारीं पूजागृहे आनीय पादौ प्रक्षाल्य । अष्टदलपीठोपरि समावेश्य । ताम्बूलेन मुखं संशोध्य । ॥ सङ्कल्पः ॥ देशकालौ सङ्कीर्तनान्ते -कामना सिद्ध्यर्थं -कर्मणि नवरात्रौ वा -देवता प्रीत्यर्थं कुमारीपूजां करिष्ये अथवा बटुक कुमारी सुवासिनी पूजां करिष्ये ॥ (५ से १२वर्ष का उपनीत ब्राह्मणबटु) (कैशोरी युवती यतिः । अप्रौढा चैव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा ।) (दुर्गाशतनामस्तोत्रे१२-१३) ॥ बटुक पूजन ॥ उपनीत केशान्तपूर्वसंज्ञक ब्राह्मणबटुं निमन्त्र्य । स्नानादिभिः संस्कार्य - ``बं बटुकाय नमः'' इति सोपवीत गन्धाक्षत- वस्त्रयुग्म-कुण्डलादिभिरभ्यर्च्य - नमस्कुर्यात् ॥ करकलितकपालः कुण्डलीदण्डपाणिस्तरुणतिमिरनीलो व्यालयज्ञोपवीती । क्रतुसमयसपर्याविघ्नविच्छेदहेतुर्जयति बटुकनाथः सिद्धिदः साधकानाम् ॥ सुप्रसन्नबटुकाय द्विजवर्याय मेधसे । भैरवाय नमस्तुभ्यमनुज्ञां दातुमर्हसि ॥ ॥ षडङ्गन्यासः ॥ क्लां कुमारिके हृदयाय नमः । क्लीं कुमारिके शिरसे स्वाहा । क्लुं कुमारिके शिखायै वषट् । क्लैं कुमारिके कवचाय हुम् । क्लौं कुमारिके नेत्रत्रयाय वौषट् । क्लः कुमारिके अस्त्राय फट् ॥ ॥ अथ करन्यासः ॥ क्लां कुमारिके अङ्गुष्ठाभ्यां नमः । क्लीं कुमारिके तर्जनीभ्यां नमः । क्लुं कुमारिके मध्यमाभ्यां नमः । क्लैं कुमारिके अनामिकाभ्यां नमः । क्लौं कुमारिके कनिष्ठिकाभ्यां नमः । क्लः कुमारिके करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ॥ ॥ कुमारिकाध्यानम् ॥ शङ्खकुन्देन्दु धवलां द्विभुजां वरदाभयाम् । चन्द्रमयमहाम्भोजभावहाव विराजिताम् ॥ बालरूपां च त्रैलोक्य सुन्दरीं वरवर्णिनीम् । नानालङ्कारनम्राङ्गीं भद्रविद्यां प्रकाशिनीम् ॥ चारुहास्यां महानन्दहृदयां शुभदां शुभाम् ॥ इति ध्यात्वा शिरसि पुष्पं दत्वावाहयेत् --- (जपनीय, अनुष्ठानीय मन्त्रो के प्रत्येक अक्षरो देवीमय हैं) मन्त्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम् । नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम् ॥ इति पुष्पैरावाह्य ॥ ह्रीं कुलकुमारिकायै नमः - इदं वः पाद्यं पादावनेजनं पादप्रक्षालनम् (पाद्यमन्त्रमुच्चार्य, पाद्यं समर्पयामि ॥ ह्रीं कुलकुमारिकायै नमः - इदमर्घ्यं स्वाहा (अर्घ्यमन्त्रमुच्चार्य, अर्घ्यं कल्पयामि स्वाहा ॥ ह्रीं कुलकुमारिकायै नमः - गृहाणेदमाचमनीयं वं नमः (वं -आचमनीयमन्त्रमुच्चार्य, आचमनं कल्पयामि ॥ ह्रीं कुलकुमारिकायै नमः - इदमनुलेपनं नमः (रक्तचन्दनेन कुङ्कुमेन वा- गन्धमन्त्रमुच्चार्य, कनिष्ठिकाङ्गुष्ठयोगेन गन्धं परिकल्पयामि नमः ॥ ह्रीं कुलकुमारिकायै नमः - एतेक्षताः नमः (अक्षतदानमन्त्रमुच्चार्य सर्वाङ्गुलिभिः अक्षतां परिकल्पयामि नमः ॥ ह्रीं कुलकुमारिकायै नमः - एतानि पुष्पाणि समाल्यानि स बिल्वपत्राणि वौषट् (मन्त्रमुच्चार्य, तर्जन्यङ्गुष्ठयोगेन, पुष्पाणि- समाल्यानि-बिल्वपत्राणि परिकल्पयामि वौषट् ॥ ह्रीं कुलकुमारिकायै नमः - एष धूपः (नाभौ धूपं दत्वा, वामभागे धूपपात्रं संस्थाप्य, धूपमन्त्रमुच्चार्य, धूपं परिकल्पयामि, उत्तानहस्तस्थ तर्जन्यङ्गुष्ठयोगेन धूपमुद्रां प्रदर्शयेत् ॥ ह्रीं कुलकुमारिकायै नमः - एष दीपः (ललाटादि पादान्तं दीपं प्रदर्श्य, देव्यादक्षिणे दीपपात्रं निधाय, दीपमन्त्रमुच्चार्य दीपं दर्शयामि, उत्तानहस्तस्थ मध्यमाङ्गुष्ठयोगेन दीपमुद्रां प्रदर्शयेत् ॥ सुवासिनी पूजा (११ से १६वर्ष तक की)--- युग्मवस्त्राभूषणादिभिः सन्तोष्य - या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण ०० इति मन्त्रेण वा पाद्यादिभिः ``ह्रीं सुवासिन्यै नमः'' इति दीपदानान्तं सम्पूज्य ॥ ह्रीं सुवासिन्यै नमः - इदं वः पाद्यं पादावनेजनं पादप्रक्षालनम् (पाद्यमन्त्रमुच्चार्य, पाद्यं समर्पयामि ॥ ह्रीं सुवासिन्यै नमः - इदमर्घ्यं स्वाहा (अर्घ्यमन्त्रमुच्चार्य, अर्घ्यं कल्पयामि स्वाहा ॥ ह्रीं सुवासिन्यै नमः - गृहाणेदमाचमनीयं वं नमः (वं -आचमनीयमन्त्रमुच्चार्य, आचमनं कल्पयामि ॥ ह्रीं सुवासिन्यै नमः - इदमनुलेपनं नमः (रक्तचन्दनेन कुङ्कुमेन वा- गन्धमन्त्रमुच्चार्य, कनिष्ठिकाङ्गुष्ठयोगेन गन्धं परिकल्पयामि नमः ॥ ह्रीं सुवासिन्यै नमः - एतेक्षताः नमः (अक्षतदानमन्त्रमुच्चार्य सर्वाङ्गुलिभिः, अक्षतां परिकल्पयामि नमः ॥ ह्रीं सुवासिन्यै नमः - एतानि पुष्पाणि समाल्यानि स बिल्वपत्राणि वौषट् (मन्त्रमुच्चार्य, तर्जन्यङ्गुष्ठयोगेन, पुष्पाणि- समाल्यानि- बिल्वपत्राणि परिकल्पयामि वौषट् ॥ ह्रीं सुवासिन्यै नमः - एष धूपः (नाभौ धूपं दत्वा, वामभागे धूपपात्रं संस्थाप्य, धूपमन्त्रमुच्चार्य, धूपं परिकल्पयामि, उत्तानहस्तस्थ तर्जन्यङ्गुष्ठयोगेन धूपमुद्रां प्रदर्शयेत् ॥ ह्रीं सुवासिन्यै नमः - एष दीपः (ललाटादि पादान्तं दीपं प्रदर्श्य, देव्यादक्षिणे दीपपात्रं निधाय, दीपमन्त्रमुच्चार्य दीपं दर्शयामि, उत्तानहस्तस्थ मध्यमाङ्गुष्ठयोगेन दीपमुद्रां प्रदर्शयेत् ॥ बटुककुमारीसुवासिनीभ्यः - पालाशादीविहित पात्रे षड्रस नैवेद्यं दत्वा, ह्री बटुकाय नमः - इदं नैवेद्यं स्वाहा । ह्रीं कुलकुमारिकायै नमः - इदं नैवेद्यं स्वाहा । ह्रीं सुवासिन्यै नमः इदं नैवेद्यं स्वाहा । (नैवेद्यमन्त्रान् पठित्वा नैवेद्यं समर्पयामीति तत्तत्स्थाने सङ्कल्प्य, उत्तानहस्तस्थ अनामिकांङ्गुष्ठयोगेन नैवेद्यमुद्रां प्रदर्शयेत् ॥) बटुकाय फलम् - फलेन फलितं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम् । फलस्यार्घप्रदानेन सफलाः सन्तु मनोरथाः ॥ ह्रीं बं बटुकाय नमः इदं फलं यथादत्तं बटुकभैरवाय न मम ॥ कुमारीभ्यः ताम्बूलम् - ह्रीं कुलकुमारिकायै नमः । इदं ताम्बूलं यथादत्तं कुलकुमारीभ्यो न मम ॥ सुवासिनीभ्यश्च -- ह्रीं सुवासिन्यै नमः । इदं ताम्बूलं यथादत्तं सुवासिन्यै (सुवासिनीभ्यो) न मम ॥ भूमौ पालाशपत्रे ताम्बूलपत्रे वा कुङ्कुमेन षट्कोणं विलिख्य ॥ (पुष्पाञ्जलिः) - सञ्चिन्मय परे देवि परामृत चरुप्रिये । अनुज्ञां देहि हे मातर्परिवारार्चनाय ते ॥ अथ षट्कोणे - गन्धाक्षतैः । आग्नेयकोणे -क्लां कुमारिके हृदयाय नमः । नैरृत्यकोणे - क्लीं कुमारिके शिरसे स्वाहा । वायव्यकोणे - क्लुं कुमारिके शिखायै वषट् । ईशानकोणे - क्लैं कुमारिके कवचाय हुम् । पश्चिकोणे - क्लौं कुमारिके नेत्रत्रयाय वौषट् । पूर्वकोणे - क्लः कुमारिके अस्त्राय फट् ॥ मध्ये - ह्रीं हंसः कुलकुमारिके श्री पादुकां पूजयामि ॥ इति पुष्पाञ्जलित्रयं दत्त्वा नवनामभिः पूजयेत् -- ह्रीं कुमार्य्यै नमः । ह्रीं त्रिपुरायै नमः । ह्रीं कल्याण्यै नमः । ह्रीं रोहिण्यै नमः । ह्रीं कामिन्यै नमः । ह्रीं चण्डिकायै नमः । ह्रीं शाङ्कर्यै नमः । ह्रीं दुर्गायै नमः । ह्रीं सुभद्रायै नमः ॥ इति सम्पूज्य तदङ्गे ``ह्रीं धनुर्बाणधरायै दुर्गायै विच्चे नमः ।'' इति दुर्गां आवाह्य -षोडशनामभिः नमोन्तेन च पूजयेत् ॥ उमायै नमः । शूलधारिण्यै नमः । खेचर्यै नमः । चत्वरवासिन्यै नमः । सुगन्धनासिकायै नमः । सर्वधारिण्यै नमः । चण्डिकायै नमः । सौभद्रिकायै नमः । अशोकवासिन्यै नमः । वज्रधारिण्यै नमः । ललितायै नमः । सिंहवाहिन्यै नमः । भगवत्यै नमः । विन्ध्यवासिन्यै नमः । महाबलायै नमः । भूतवासिन्यै नमः । इति सम्पूज्य ``मूलमन्त्रेण'' पुष्पाञ्जलित्रयं दत्वा, प्रदक्षिणी कृत्य ॥ ॥ त्रिकोणाकारं प्रणमेत् ॥ दक्षिणाद्वायवीं गत्वा दिशं तस्माच्च शाम्भवि । ततश्च दक्षिणां गत्वा नमस्कारस्त्रिकोणवत् ॥ (अर्थात् दक्षिणदिशा से कदम के सहारे चलते चलते वायव्य में जाकर वहाँ से पश्चिम के सिधे मार्ग से होते हुए नैरृत्य की ओर से पुनः दक्षिण में जाकर वहाँ से ही नमस्कार करे ॥) जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरूपिणी । पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोऽस्तु ते ॥ त्रिपुरां त्रिगुणां धात्रीं ज्ञानमार्गस्वरूपिणीम् । त्रैलोक्यवन्दितां देवीं त्रिमूर्तिं पूजयाम्यहम् ॥ कालात्मिकां कालभीतां कारुण्यथृदयां शिवाम् । कारुण्यजननीं नित्यां कल्याणीं पूजयाम्यहम् ॥ अणिमादिगुणोपेता मकारादिस्वरात्मिकाम् । शक्तिभेदात्मिकां लक्ष्मीं रोहिणीं पूजयाम्यहम् ॥ कलाधरां कलारूपां कालचण्डस्वरूपिणीम् । कामदां करुणाधारां कामिनीं पूजयाम्यहम् ॥ चण्डधारां चण्डमायां चण्डमुण्डविनाशिनीम् । प्रणमामि च देवेशीं चण्डिकां पूजयाम्यहम् ॥ सुखनन्दकरीं शान्तां सर्वदेवनमस्कृताम् । सर्वभूतात्मिकां देवीं शाङ्करीं पूजयाम्यहम् ॥ दुर्गमे दुस्तरे चैव दुःखत्रयविनाशिनीम् । पूजयामि सदा भक्त्या दुर्गां दुर्गे नमाम्यहम् ॥ सुन्दरीं स्वर्णवर्णाभां सुखसौभाग्यदायिनीम् । सुभद्रजननीं देवीं सुभद्रां प्रणमाम्यहम् ॥ ॥ इति संप्रार्थ्य तत्राङ्गे स्वेष्टदेवतां (अनुष्ठनीय मन्त्रदेवतां) ध्यात्वा ॥ ॥ दुर्गा अष्टोत्तरशतनामस्तोत्रेण च स्तुत्वा ॥(विश्वसारतन्त्रे) ईश्वर उवाच । शतनाम प्रवक्ष्यामि शऋणुष्व कमलानने । यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती ॥ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी । आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी ॥ पिनाकधारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातपाः । मनो बुद्धिरहङ्कारा चित्तरूपा चिता चितिः ॥ सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्दस्वरूपिणी । अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः ॥ शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा । सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी ॥ अपर्णानेकवर्णा च पाटला पाटलावती । पट्टाम्बर परीधाना कलमञ्जीररञ्जिनी ॥ अमेयविक्रमा क्रुरा सुन्दरी सुरसुन्दरी । वनदुर्गा च मातङ्गी मतङ्गमुनिपूजिता ॥ ब्राह्मी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा । चामुण्डा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृतिः ॥ विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा । बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहन वाहना ॥ निशुम्भशुम्भहननी महिषासुरमर्दिनी । मधुकैटभहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी ॥ सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी । सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा ॥ अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी । कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः ॥ अप्रौढा चैव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा । महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला ॥ अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी । नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी ॥ शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्वरी । कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी ॥ य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम् । नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति ॥ धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च । चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्वतीम् ॥ कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम् । पूजयेत् परया भक्त्या पठेन्नामशताष्टकम् ॥ तस्य सिद्धिर्भवेद् देवि सर्वैः सुरवरैरपि । राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रियमवाप्नुयात् ॥ गोरोचनालक्तककुङ्कुमेव सिन्धूरकर्पूरमधुत्रयेण । विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो भवेत् सदा धारयते पुरारिः ॥ भौमावास्यानिशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते । विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् सम्पदां पदम् ॥ षोडशनामभिः नमोन्तेन च पूजयेत् ॥ ऐं सन्ध्यायै नमः । ऐं सरस्वत्यै नमः । ऐं त्रिमूर्त्यै नमः । ऐं कालिकायै नमः । ऐं सुभगायै नमः । ऐं उमायै नमः । ऐं मालिन्यै नमः । ऐं कुब्जिकायै नमः । ऐं कालसङ्कर्षिण्यै नमः । ऐं अपराजितायै नमः । ऐं रुद्राण्यै नमः । ऐं भैरव्यै नमः । ऐं महालक्ष्म्यै नमः । ऐं पीठनायिकायै नमः । ऐं क्षेत्रज्ञायै नमः । ऐं चर्च्चिकायै नमः ॥ सुवासिनीभ्यः--- या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण००॥ पुरन्ध्री-स्त्रीणां पूजनम् - गन्धाक्षतोपहारैः सन्तोष्य ॥ प्रणमेत् -- या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण००॥ (विशेष - सुवासिनी व पुरन्ध्री-स्त्री सगोत्रीया ७ पिढ़ीतक की अथवा सोदका ८ से १४ पिढ़ी तक की ही पूजनीया हैं तदन्य केवल वन्दनीया -- बालां वा यौवनोन्मत्तां वृद्धां वा सुन्दरीं तथा । कुत्सितां वा महादुष्टां नमस्कृत्य विभावयेत् ॥ तासां प्रहारं न निन्दां च कौटिल्यमप्रियं यथा । सर्वथा च न कर्तव्यमन्था शक्तिरोधकृत् ॥ यदि भाग्यवशाद्देवी कुलदृष्टिः प्रजायते । तदेवमानसीं पूजा तत्र तासां प्रकल्पयेत् ॥ यदि स्त्री के गोपनीयाङ्ग दिख जाए तो देवीदृष्टि से मानसिक नमस्कार करे । विकार से दूर रहे । सङ्कल्पः-- अनेन बटुककुमारीसुवासिनीनां पूजनेन तत् सत् श्री जगदम्बार्पणमस्तु ॥ ॥ कुमारीपूजन फलादेशः ॥ पूजोपकरणानीह कुमार्यै यो ददाति हि । सन्तुष्टा देवता तस्य पुत्रत्वे सोऽनुकल्प्यते ॥ ॥ योगिनी तन्त्रे ॥ कुमारीपूजनफलं वक्तुं नार्हामि सुन्दरि । जिह्वाकोटिसहस्रैस्तु वक्त्रकोटिशतैरपि ॥ कुमारी पूज्यते यत्र स देशः क्षितिपावनः । महापुण्यतमो भूयात् समन्तात् क्रोशपञ्चकम् ॥ ॥ रुद्रयामले ॥ महापूजादिकं कृत्वा वस्त्रालङ्कारभोजनैः । पूजनान्मन्दसौभाग्योऽपि लभते जयमङ्गलम् ॥ पूजया लभते पुत्रान् पूजया लभते श्रियम् । पूजया धनमाप्नोति पूजया लभते महीम् ॥ पूजया लभते लक्ष्मीं सरस्वतीं महौजसम् । महाविद्याः प्रसीदन्ति सर्वे देवा न संशयः ॥ कालभैरवब्रह्मेन्द्र ब्राह्मणा ब्रह्मवेदिनः । रुद्रश्च देववर्गाश्च वैष्णवा ब्रह्मरूपिणः ॥ अवताराश्च द्विभूजा वैष्णवा मनुशोभिताः । अन्ये दिक्पालदेवाश्च चराचरगुरुस्तथा ॥ नानाविद्याश्रिताः सर्वे दानवाः कूटशालिनः । उपसर्गस्थिता ये ये ते ते तुष्टा न संशयः ॥ कुमारी योगिनी साक्षात् कुमारी परदेवता । असुरा दुष्टनागाश्च ये ये दुष्टग्रहा अपि ॥ भूतवैतालगन्धर्वा डाकिनीयक्षराक्षसाः । याश्चान्या देवताः सर्वा भूर्भुवः स्वश्च भैरवाः ॥ पृथिव्यादीनि सर्वाणि ब्रह्माण्डे सचराचरम् । ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च ईश्वरश्च सदाशिवः ॥ सन्तुष्टाः सर्वतुष्टाश्च यस्तु कन्यां प्रपूजयेत् । अद्याहं शुद्धरूपा हि अन्यलोके च का कथा ॥ कुमारीपूजनं कृत्वा त्रैलोक्यं वशमानयेत् । महाकान्तिर्भवेत्क्षिप्रं सर्वपुण्यफलप्रदम् ॥ ॥ नीलतन्त्र ॥ महाभयार्ति दुर्भिक्षाद्युत्पातानि कुलेश्वरि । दुःस्वप्नमपमृत्युश्च ये चान्ये च समुद्भवाः ॥ कुमारीपूजनादेव न ते च प्रभवन्ति हि । नित्यं क्रमेण देवेशि पूजयेद्विधिपूर्वकम् ॥ घ्नन्ति विघ्नान्पूजिताश्च भयं शत्रून्महोत्कटान् । ग्रहा रोगाः क्षयं यान्ति भूतवेतालपन्नगाः ॥ तावजिप्त्वा पूजयित्वा कन्यां सुन्दरमोहिनीम् । दिव्यभावस्थितं साक्षात्तन्त्रमन्त्रफलं लभेत् ॥ महाविद्या महामन्त्रः सिद्धिमन्त्रो न संशयः । विधियुक्तां कुमारीं तु भोजयेच्चैव भैरव ॥ पाद्यार्घ्यं च तथा धूपं कुङ्कुमं चन्दनं शुभम् । भक्तिभावेन सम्पूज्य कुमारीभ्यो निवेदयेत् ॥ ॥ कुब्जिका तन्त्रे ॥ अन्न वस्त्रं तथा नीरं कुमार्य्यै यो ददाति हि । अन्नं मेरुसमं देव जलं च सागरोपमम् ॥ वस्त्रैः कोटिसहस्राब्दं शिवलोके महीयते । पूजोपकरणानीह कुमार्य्यै यो ददाति हि । सन्तुष्टा देवता तस्य पुत्रत्वे सानुकल्पते ॥ ॥ यामले ॥ बालप्रियं च नैवेद्यं दत्त्वा तद्भावभावितः । मृदा तदङ्गमात्मानं बालभाववितेष्टितम् ॥ अतिप्रियकथालापक्रीडा कौतूहलान्वितः । यथार्थं तत्प्रियं तन्त्रं कृत्वा सिद्धीश्वरो भवेत् ॥ कुसुमाञ्जलिपूर्णं च कन्यायै कुलपण्डितः । ददाति यदि तत्पुष्पं कोटिमेरुहिण्यवत् ॥ तद्दानजं महापुण्यं क्षणादेव समालभेत् । कुमारी भोजिता येन त्रैलोक्यं तेन भोजितम् ॥ कुमारीपूजनं कुर्यात्सर्वकर्मफलाप्तये । सदाभोजनवाञ्छाढ्या मान्या सन्तुष्टहासिनी । वृथा न रौति सा देवी कुमारी देवनायिका ॥ ॥ कुमारी कवचे ॥ साम्राज्यं प्रददाति या भगवती विद्या महालक्षणा साक्षादष्टसमृद्धिदा भुवि महालक्ष्मीः कुलक्षोभहा । स्वाधिष्ठानसुपङ्कजे विलसितां विष्णोरनन्तश्रियं वन्दे राजप्रदां शुभकरीं कौलेश्वरीं सर्वदा ॥

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Thursday, 21 August 2025

શ્રી ગણેશ ઉત્સવ તથા સત્યનારાયણ કથા સામગ્રી

શ્રી ગણેશ મહોત્સવ તેમજ સત્યનારાયણ કથા

                    પૂજા સામગ્રી

📜GrahRaj🌐Astrology📜

અબીલ  ૨૫ ગ્રામ
ગુલાલ  ૨૫ ગ્રામ
કંકુ  ૨૫ ગ્રામ
ચંદન  ૨૫ ગ્રામ
હળદર  ૨૫ ગ્રામ
સરસવ ૨૫ ગ્રામ
નાળા છેડી ૧ નંગ
સુતર દડી ૧નંગ
જનોઈ ૨ નંગ
મધ ૧ શીશી
અંતર ૧ શીશી
કપૂર ગોટી ૫ નંગ
અગરબત્તી ૧ પેકેટ
બાકસ ૧નંગ
ધૂપ ૨૫ ગ્રામ

📜GrahRaj🌐Astrology📜:

ફુલ હાર ૩ નંગ
દુર્વા માલા ૧ નંગ
દુર્વા જુડી ૧ નંગ
છુટા ફુલ ૫૦૦ ગ્રામ
તુલસી પત્ર
નાગરવેલ પાન ૨૦ નંગ

📜GrahRaj🌐Astrology📜

ઘઉં ૧ કિ.
ચોખા ૧ કિ.
ગોળ ૫૦ ગ્રામ
ધાણા ૨૫ ગ્રામ
પડિયા (દુના) ૨૫ નંગ
એલચી ૨૫ ગ્રામ
લવિંગ ૨૫ ગ્રામ
તજ ૨૫ ગ્રામ
પબડી ૨૫ ગ્રામ
સોપારી ૧૦૦ ગ્રામ
કાજુ ૫૦ ગ્રામ
બદામ ૫૦ ગ્રામ
દ્રાક્ષ ૫૦ ગ્રામ
સાકર ૫૦ ગ્રામ

📜GrahRaj🌐Astrology📜

રેશમી ધોતી લાલ ૧ નંગ
કોટન ધોતી સફેદ ૧ નંગ
લાલ કાપડ ૧ મીટર
સફેદ કાપડ ૧ મીટર

📜GrahRaj🌐Astrology📜

થાળી  ૫ નંગ
વાટકી ૫ નંગ
ચમચી ૫ નંગ
કળશ તાંબા ના ૨ નંગ
તપેલી ૧ નંગ
બાજોઠ ( ચોરંગ)૨ નંગ
પાટલા ૨ નંગ
આસન
નેપકીન
છેડા છેડી (ખેશ)ચુંદડી
શ્રી ફળ ૩ નંગ
પ્રસાદ સામગ્રી ૨૫૦ ગ્રામ
ઋતુ ફળ ૫ નંગ
પંચામૃત (દૂધ-દહીં-ખાંડ-મધ-સાકર)
આરતી થાળી ૧ નંગ
પંચ પાત્ર
ત્રભાણુ
આચમની
ગણેશજી ની મુર્તિ (ઘર ની)

📜GrahRaj🌐Astrology📜

ઘી ૫૦૦ ગ્રામ
કાપુસ (ફુલવાટ) ૫૦ ગ્રામ
સિંગ દાણા ૫૦ ગ્રામ
રેવડી ૫૦ ગ્રામ

📜GrahRaj🌐Astrology📜

(સત્યનારાયણ વીશેષ સામગ્રી)
કેળ ના સ્થભ /૪ નંગ
તુલસી જુડી ૨ નંગ
ફૂલ હાર ૨ નંગ
છુટા ફૂલ ૫૦૦ ગ્રામ
ફૂલ લેર ૩ મિટર
આંબા ના પાન ૨૦ નંગ
તોરણ ૨ નંગ
નાગરવેલ પાન ૨૦ નંગ
પ્રસાદ સામગ્રી
ફળ ૫ નંગ
ચોરંગ બાજોઠ ૧ નંગ
પાટલો ૧ નંગ
પંચામૃત
શુદ્ધ જળ પૂજા માટે
ધોતી ૧ નંગ કોટન
ત્રાબા કળશ ૨ નંગ
ચોખા ૨ કિ.
મીઠાઈ ૨૫૦ ગ્રામ


શ્રી ગણેશજી ની મૂર્તિ સમયકાલીન ત્યાર રાખવી.


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देव भूमि द्वारका-३६१३०५

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      ગ્રહરાજ જ્યોતિષ કાર્યાલય
     હરસિધ્ધિ નગર , સલાયા રોડ
જામ ખંભાળિયા - દેવભૂમિ દ્વારકા
              ૯૭૨૭૯૭૨૧૧૯
     શાસ્ત્રી એચ. એચ. રાજ્યગુરૂ
*📜જ્યોતિષ-વાસ્તુ-ધાર્મિકપુજા📜*
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આપનુ જીવન મંગલ મય રહે શુભકામના

                  ||હરિ:ૐ ||


श्री गणेशोत्सव पुजा सामग्री

                  ॥श्रीहरि:॥
  
           " वंन्दे वाणी विनायकौ "

    ॥॥ग्रहराज ज्योतिष कार्यालय॥॥

     * श्री गणेशोत्सव सामग्री स्मृति *  

धउ-1किलो चावल 1 किलो 

चोरंग(बाजोठ) 2 नंग /पाट 2 नंग

अबील 50 ग्राम         एलायची 50 ग्राम
गुलाल 50 ग्राम          लवंग 50 ग्राम       
चंदन   50ग्राम           तज 50 ग्राम 
कुंमकूम50 ग्राम         सोपारि 100 ग्राम
हल्दी 50 ग्राम           काजु 100 ग्राम 
सवोॅषधी 50 ग्राम      बदाम 100 ग्राम 
सिंदुर 50 ग्राम          किसमीस 50 ग्राम
नाणाछेडी 1 नंग       अंजीर 50 ग्राम      
सुतर दडी 1 नंग       सील्वर दुना 50नंग                                जनोइ 3 नंग              साकर 50 ग्राम
अंतर शीशी 1 नंग       गुड़ 50 ग्राम
मध शीशी 1 नंग         धनिया 50 ग्राम
फुल हार 3 नंग           दुवाॅजुड़ी 1 नंग
तुलसी पत्र                  रक्त पुष्प
   छुट्टे पुष्प 500 ग्राम (मिक्स)  
   ऋतुफल 5 नंग         श्रीफल 3 नंग
   नागवली पान 20 नंग     धुप- कापुस  घी
   प्रसाद मिठाई 250 ग्राम
   आरती थाली 1 नंग  
   पंचामृत - (दुध, दहि, घी, मध, साकार)
   रेशमी कापड लाल 1 मीटर 
   रेशमी कापड सफेद 1 मीटर
   धोती सफेद 1 नंग  (6-मीटर)
   धोती   लाल 1 नंग   (6-मीटर )
   त्रांबे - कलश 2 नंग
   श्री गणेशजी मूतिॅ 1 नंग (पुजा हेतु)
   शुद्ध पुजा जल एवं गंगा जल   
   आसन - नेपकिन- उपेणि (ग्रन्थि)

नोधः- अन्य सामग्री एवं व्यवस्था स्वयं जातक करे.
( कृपया गणेश मूतिॅ जल मे विसर्जन हो सके एसेहि रखे)
     
    ॥ग्रहराज ज्योतिष कार्यालय॥

    छाया चोक्की, रोनक कोम्प्लेक्ष 
     पोरबंदर - गुजरात-360575
    कोन्टेक- +919727972119
       शास्त्री  एच . एच . राजगुरु
॥॥ज्योतिष- वास्तु-धामिॅकपुजा ॥॥
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           ॥*हरिॐतत्सत्*॥

Saturday, 16 August 2025

।। श्री शीतलाष्टकं ।।

।।🚩श्री शीतला माता  स्तोत्र🚩।।

      शीतला सप्तमी 2024




अस्य श्रीशीतलास्तोत्रस्य महादेव ऋषिः ।
अनुष्टुप् छन्दः ।  शीतला देवता ।
लक्ष्मीर्बीजम् ।  भवानी शक्तिः ।
सर्वविस्फोटकनिवृत्यर्थे जपे विनियोगः ॥

ईश्वर उवाच ।

वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम् ।
मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालङ्कृतमस्तकाम् ॥ १॥

वन्देऽहं शीतलां देवीं सर्वरोगभयापहाम्।
यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटकभयं महत् ॥ २॥

शीतले शीतले चेति यो ब्रूयद्दाहपीडितः ।
विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति ॥ ३॥

यस्त्वामुदकमध्ये तु ध्यात्वा सम्पूजयेन्नरः ।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते ॥ ४॥

शीतले ज्वरदग्धस्य पूतिगन्धयुतस्य च ।
प्रणष्टचक्षुषः पुंसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम् ॥ ५॥

शीतले तनुजान् रोगान् नृणां हरसि दुस्त्यजान् ।
विस्फोटकविदीर्णानां त्वमेकाऽमृतवर्षिणी ॥ ६॥

गलगण्डग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम् ।
त्वदनुध्यानमात्रेण शीतले यान्ति सङ्क्षयम् ॥ ७॥

न मन्त्रो नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते ।
त्वामेकां शीतले धात्रीं नान्यां पश्यामि देवताम् ॥ ८॥

मृणालतन्तुसदृशीं नाभिहृन्मध्यसंस्थिताम् ।
यस्त्वां सञ्चिन्तयेद्देवि तस्य मृत्युर्न जायते ॥ ९॥

अष्टकं शीतलादेव्या यो नरः प्रपठेत्सदा ।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते ॥ १०॥

श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धाभाक्तिसमन्वितैः ।
उपसर्गविनाशाय परं स्वस्त्ययनं महत् ॥ ११॥

शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता ।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः ॥ १२॥

रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाखनन्दनः ।
शीतलावाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः ॥ १३॥

एतानि खरनामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत् ।
तस्य गेहे शिशूनां च शीतलारुङ् न जायते ॥ १४॥

शीतलाष्टकमेवेदं न देयं यस्यकस्यचित् ।
दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धाभक्तियुताय वै ॥ १५॥

॥ इति श्रीस्कन्दपुराणे शीतलाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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श्रीशीतलाकवचम्

पार्वत्युवाच - भगवन् सर्वधर्मज्ञ सर्वशास्त्रविशारद । शीतलाकवचं ब्रूहि सर्वभूतोपकारकम् ॥ १॥ वद शीघ्रं महादेव ! कृपां कुरु ममोपरि । इति देव्याः वचो श्रुत्वा क्षणं ध्यात्वा महेश्वरः ॥ २॥ उवाच वचनं प्रीत्या तत्श‍ृणुष्व मम प्रिये । शीतलाकवचं दिव्यं श‍ृणु मत्प्राणवल्लभे ॥ ३॥ ईश्वर उवाच - शीतलासारसर्वस्वं कवचं मन्त्रगर्भितम् । कवचं विना जपेत् यो वै नैव सिद्धयन्ति कलौ ॥ ४॥ धारणादस्य मन्त्रस्य सर्वरक्षाकरनृणाम् । विनियोगः - कवचस्यास्य देवेशि ! ऋषिर्पोक्तो महेश्वरः । छन्दोऽनुष्टुप् कथितं च देवता शीतला स्मृता । लक्ष्मीबीजं रमा शक्तिः तारं कीलकमीरितम् ॥ ५॥ लूताविस्फोटकादीनि शान्त्यर्थे परिकीर्तितः । विनियोगः प्रकुर्वीत पठेदेकाग्रमानसः ॥ ६॥ विनियोगः - ॐ अस्य शीतलाकवचस्य श्रीमहेश्वर ऋषिः अनुष्टुप्छन्दः, श्रीशीतला भगवती देवता, श्रीं बीजं, ह्रीं शक्तिः, ॐ कीलकं लूताविस्फोटकादिशान्त्यर्थे पाठे विनियोगः ॥ ऋष्यादिन्यासः - श्रीमहेश्वरऋषये नमः शिरसि अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीशीतला भगवती देवतायै नमः हृदि श्री बीजाय नमः गुह्ये ह्रीं शक्तये नमः नाभौ, ॐ कीलकाय नमः पादयो लूताविस्फोटकादिशान्त्यर्थे पाठे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ॥ ध्यानं - उद्यत्सूर्यनिभां नवेन्दुमुकुटां सूर्याग्निनेत्रोज्ज्वलां नानागन्धविलेपनां मृदुतनुं दिव्याम्बरालङ्कृताम् । दोर्भ्यां सन्दधतीं वराभययुगं वाहे स्थितां रासभे भक्ताभीष्टफलप्रदां भगवतीं श्रीशीतलां त्वां भजे ॥ अथ कवचमूलपाठः - ॐ शीतला पातु मे प्राणे रुनुकी पातु चापाने । समाने झुनुकी पातु उदाने पातु मन्दला ॥ १॥ व्याने च सेढला पातु मनुर्मे शाङ्करी तथा । पातु मामिन्द्रियान् सर्वान् श्रीदुर्गा विन्ध्यवासिनी ॥ २॥ ॐ मम पातु शिरो दुर्गा कमला पातु मस्तकम् । ह्रीं मे पातु भ्रुवोर्मध्ये भवानी भुवनेश्वरी ॥ पातु मे मधुमती देवी ॐकारं भृकुटीद्वयम् ॥ ३॥ नासिकां शारदा पातु तमसा वर्त्मसंयुतम् । नेत्रौ ज्वालामुखी पातु भीषणा पातु श्रुतिर्मे ॥ ४॥ कपोलौ कालिका पातु सुमुखी पातु चोष्ठयोः । सन्ध्ययोः त्रिपुरा पातु दन्ते च रक्तदन्तिका ॥ ५॥ जिह्वां सरस्वती पातु तालुके व वाग्वादिनी । कण्ठे पातु तु मातङ्गी ग्रीवायां भद्रकालिका ॥ ६॥ स्कन्धौ च पातु मे छिन्ना ककुमे स्कन्दमातरः । बाहुयुग्मौ च मे पातु श्रीदेवी बगलामुखी ॥ ७॥ करौ मे भैरवी पातु पृष्ठे पातु धनुर्धरी । वक्षःस्थले च मे पातु दुर्गा महिषमर्दिनी ॥ ८॥ हृदये ललिता पातु कुक्षौ पातु मघेश्वरी । (मघा ईश्वरी) (महेश्वरी) पार्ष्वौ च गिरिजा पातु चान्नपूर्णा तु चोदरम् ॥ ९॥ नाभिं नारायणी पातु कटिं मे सर्वमङ्गला । जङ्घयोर्मे सदा पातु देवी कात्यायनी पुरा ॥ १०॥
ब्रह्माणी शिश्नं पातु वृषणं पातु कपालिनी ।
गुह्यं गुह्येश्वरी पातु जानुनोर्जगदीश्वरी ॥ ११॥

पातु गुल्फौ तु कौमारी पादपृष्ठं तु वैष्णवी ।
वाराही पातु पादाग्रे ऐन्द्राणी सर्वमर्मसु ॥ १२॥

मार्गे रक्षतु चामुण्डा वने तु वनवासिनी ।
जले च विजया रक्षेत् वह्नौ मे चापराजिता ॥ १३॥

रणे क्षेमकरी रक्षेत् सर्वत्र सर्वमङ्गला ।
भवानी पातु बन्धून् मे भार्या रक्षतु चाम्बिका ॥ १४॥

पुत्रान् रक्षतु माहेन्द्री कन्यकां पातु शाम्भवी ।
गृहेषु सर्वकल्याणी पातु नित्यं महेश्वरी ॥ १५॥

पूर्वे कादम्बरी पातु वह्नौ शुक्लेश्वरी तथा ।
दक्षिणे करालिनी पातु प्रेतारुढा तु नैरृते ॥ १६॥

पाशहस्ता पश्चिमे पातु वायव्ये मृगवाहिनी ।
पातु मे चोत्तरे देवी यक्षिणी सिंहवाहिनी ।
ईशाने शूलिनी पातु ऊर्ध्वे च खगगामिनी ॥ १७॥

अधस्तात्वैष्णवी पातु सर्वत्र नारसिंहिका ।
प्रभाते सुन्दरी पातु मध्याह्ने जगदम्बिका ॥ १८॥

सायाह्ने चण्डिका पातु निशीथेऽत्र निशाचरी ।
निशान्ते खेचरी पातु सर्वदा दिव्ययोगिनी ॥ १९॥

वायौ मां पातु वेताली वाहने वज्रधारिणी ।
सिंहा सिंहासने पातु शय्यां च भगमालिनी ॥ २०॥

सर्वरोगेषु मां पातु कालरात्रिस्वरुपिणी ।
यक्षेभ्यो यक्षिणी पातु राक्षसे डाकिनी तथा ॥ २१॥

भूतप्रेतपिशाचेभ्यो हाकिनी पातु मां सदा ।
मन्त्रं मन्त्राभिचारेषु शाकिनी पातु मां सदा ॥ २२॥

सर्वत्र सर्वदा पातु श्रीदेवी गिरिजात्मजा ।
इत्येतत्कथितं गुह्यं शीतलाकवचमुत्तमम् ॥ २३॥

फलश्रुतिः -
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा दानवादयः ।
विस्फोटकभयं नास्ति पठनाद्धारणाद्यदि ॥ १॥

अष्टसिद्धिप्रदं नित्यं धारणात्कवचस्य तु ।
सहस्त्रपठनात्सिद्धिः सर्वकार्यार्थसिद्धिदम् ॥ २॥

तदर्धं वा तदर्धं वा पठेदेकाग्रमानसः ।
अश्वमेधसहस्रस्य फलमाप्नोति मानवः ॥ ३॥

शीतलाग्रे पठेद्यो वै देवीभक्तैकमानसः ।
शीतला रक्षयेन्नित्यं भयं क्वापि न जायते ॥ ४॥

घटे वा स्थापयेद्देवी दीपं प्रज्वाल्य यत्नतः ।
पूजयेत्जगतां धात्री नाना गन्धोपहारकैः ॥ ५॥

अदीक्षिताय नो दद्यात कुचैलाय दुरात्मने ।
अन्यशिष्याय दुष्टाय निन्दकाय दुरार्थिने ॥ ६॥

न दद्यादिदं वर्म तु प्रमत्तालापशालिने ।
दीक्षिताय कुलीनाय गुरुभक्तिरताय च ॥ ७॥

शान्ताय कुलशाक्ताय शान्ताय कुलकौलिने ।
दातव्यं तस्य देवेशि ! कुलवागीश्वरो भवेत् ॥ ८॥

इदं रहस्यं परमं शीतलाकवचमुत्तमम् ।
गोप्यं गुह्यतमं दिव्यं गोपनीयं स्वयोनिवत् ॥ ९॥

मूलमन्त्रः -  ॐ श्रीं ह्रीं ॐ ।

॥  श्रीईश्वरपार्वतीसम्वादे शक्तियामले शीतलाकवचं सम्पूर्णम् ॥

Friday, 8 August 2025

શંભુ શરણે પડી માંગુ ....

શંભુ શરણે પડી માંગુ...

શંભુ શરણે પડી, માંગુ ઘડી એ ઘડી
કષ્ટ કાપો …
દયા કરી, શિવ, દર્શન આપો … (૨)

તમો ભક્તો ના ભય હરનારા
શુભ સૌવ નુ સદા કરનારા
હું તો મંદ મતી તારી અકળ ગતિ
કષ્ટ કાપો દયા કરી શીવ દર્શન આપો
શંભુ શરણે પડી, માંગુ ઘડી એ ઘડી
કષ્ટ કાપો …
દયા કરી, શિવ, દર્શન આપો … (૨)

અંગે ભસ્મ સ્મશાન ની ચોળી
સંગે રાખો સદા ભુત ટોળી
ભાલે ચંદ્ર ધયૉ કંઠે વિષ ભયૉ
અમૃત આપો
દયા કરી શીવ દર્શન આપો … (૨)

શંભુ શરણે પડી, માંગુ ઘડી એ ઘડી
કષ્ટ કાપો …
દયા કરી, શિવ, દર્શન આપો … (૨)

નેતી નેતી જયાં વેદ કહે છે
મારું ચીતડું ત્યાં જાવા ચહે છે
સારા જગ મા છે તું ,વસુ તારા મા હું
શકિત આપો દયા કરી શીવ દર્શન આપો… (૨)

શંભુ શરણે પડી, માંગુ ઘડી એ ઘડી
કષ્ટ કાપો …
દયા કરી, શિવ, દર્શન આપો … (૨)

આપો દ્રષ્ટી મા તેજ અનોખું
સારી સુષ્ટી મા શીવ રૂપ દેખુ
મારા દિલમાં વસો , આવી હૈયે હસો
શાંતિ સ્થાપો દયા કરી શીવ દર્શન આપો… (૨)

શંભુ શરણે પડી, માંગુ ઘડી એ ઘડી
કષ્ટ કાપો …
દયા કરી, શિવ, દર્શન આપો … (૨)

હું તો એકલ પંથી પ્રવાસી
છતાં આત્મા કેમ ઉદાસી
થાકયો મથી રે મથી , કારણ મળતું નથી
સમજણ આપો દયા કરી શીવ દર્શન આપો … (૨)

શંભુ શરણે પડી, માંગુ ઘડી એ ઘડી
કષ્ટ કાપો …
દયા કરી, શિવ, દર્શન આપો … (૨)

શંકરદાસ નુ ભવ દુખ કાપો
નિત્ય સેવા નુ શુભ ફળ આપો
ટાળો મંદ મતિ , ગાળો ગવઁ ગતિ
ભક્તિ આપો દયા કરી શીવ દર્શન આપો
શંભુ શરણે પડી,  માંગુ ઘડી એ ઘડી
કષ્ટ કાપો …
દયા કરી, શિવ, દર્શન આપો … (૨)


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હરિ ૐ આ લેખ સર્વે ભક્તો નું કલ્યાણ અર્થે તેમજ શ્રાવણ માસ માં ભગવાન ની અલગ અલગ ધૂન આરતી  કિર્તન ગાઈ શકે એ હેતુ થી મુકેલ છે.
 વિશેષ પ્રસ્તુત સામગ્રી અમારી ખુદ ની નથી.

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Monday, 28 July 2025

।। बिल्वाष्टक ।।

ॐ नमः शिवाय        ॥ बिल्वाष्टक ॥     ॐ नमः शिवाय


त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधम् । त्रिजन्मपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ १॥

त्रिशाखैः बिल्वपत्रैश्च ह्यच्छिद्रैः कोमलैः शुभैः । शिवपूजां करिष्यामि ह्येकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ २॥

अखण्ड बिल्व पत्रेण पूजिते नन्दिकेश्वरे । शुद्ध्यन्ति सर्वपापेभ्यो ह्येकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ३॥

शालिग्राम शिलामेकां विप्राणां जातु चार्पयेत् । सोमयज्ञ महापुण्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ४॥

दन्तिकोटि सहस्राणि वाजपेय शतानि च । कोटिकन्या महादानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ५॥

लक्ष्म्यास्तनुत उत्पन्नं महादेवस्य च प्रियम् । बिल्ववृक्षं प्रयच्छामि ह्येकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ६॥

दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम् । अघोरपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ७॥

काशीक्षेत्रनिवासं च कालभैरवदर्शनम् । प्रयागमाधवं दृष्ट्वा ह्येकबिल्वं शिवार्पणम् ॥

मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे । अग्रतः शिवरूपाय ह्येकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ८॥

बिल्वाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ । सर्वपाप विनिर्मुक्तः शिवलोकमवाप्नुयात् ॥

॥ इति १ बिल्वाष्टकम्  ॥

GrahRaj Astrology
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॥ बिल्वाष्टकम् २ ॥

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिणेत्रं च त्रियायुधम् ।
त्रिजन्मपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ १॥

त्रिशाकैर्बिल्वपत्रैश्च अच्छिद्रैः कोमलैश्शुभैः ।
तव पूजां करिष्यामि एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ २॥

दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम् ।
अघोरपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ३॥

काशीक्षेत्रनिवासं च कालभैरवदर्शनम् ।
प्रयागे माधवं दृष्ट्वा एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ४॥

तुलसी बिल्वनिर्गुण्डी जंबीरामलकं तथा ।
पञ्चबिल्वमिति ख्याता  एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ५॥

तटाकं धननिक्षेपं ब्रह्मस्थाप्यं शिवालयम् ।
कोटिकन्यामहादानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ६॥

दन्त्यश्वकोटिदानानि अश्वमेधशतानि च ।
कोटिकन्यामहादानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ७॥

सालग्रामसहस्राणि विप्रान्नं शतकोटिकम् ।
यज्ञकोटिसहस्राणि एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ८॥

अज्ञानेन कृतं पापं ज्ञानेनापि कृतं च यत् ।
तत्सर्वं नाशमायातु एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ९॥

एकैकबिल्वपत्रेण कोटियज्ञफलं लभेत् ।
महादेवस्य पूजार्थं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ १०॥

अमृतोद्भववृक्षस्य महादेवप्रियस्य च ।
मुच्यन्ते कण्टकाघाता कण्टकेभ्यो हि मानवाः ॥ ११॥

             ॥ ॐ तत्सत् ॥

         हर हर महादेव हर हर
        Jai Shree Krishna
           जय श्री द्वारकाधीश

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