Tuesday, 28 January 2020

॥ विद्यादानवाक्सरस्वतीहृदयस्तोत्रम् ॥

विद्यादानवाक्सरस्वतीहृदयस्तोत्रम् ॥

ॐ अस्य श्री वाग्वादिनी शारदामन्त्रस्य मार्कण्डेयाश्वलायनौ ऋषी,
स्रग्धरा अनुष्टुभौ छन्दसी, 
श्रीसरस्वती देवता । श्रीसरस्वतीप्रसादसिद्ध्यर्थे विनियोगः ॥ 
ध्यानम् ॥ 
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमां आद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् ।
हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेष्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥ १॥

ब्रह्मोवाच ।
ह्रीं ह्रीं हृद्यैकविद्ये शशिरुचिकमलाकल्पविस्पष्टशोभे 
भव्ये भव्यानुकूले कुमतिवनदहे विश्ववन्द्याङ्घ्रिपद्मे ।
पद्मे पद्मोपविष्टे प्रणतजनमनोमोदसम्पादयित्रि 
प्रोत्प्लुष्टा ज्ञानकूटे हरिनिजदयिते देवि संसारसारे ॥ २॥

ऐं ऐं ऐं इष्टमन्त्रे कमलभवमुखाम्भोजरूपे स्वरूपे
रूपारूपप्रकाशे सकलगुणमये निर्गुणे निर्विकारे ।
न स्थूले नैव सूक्ष्मेऽप्यविदितविषये नापि विज्ञानतत्त्वे
विश्वे विश्वान्तराळे सुरवरनमिते निष्कळे नित्यशुद्धे ॥ ३॥

ह्रीं ह्रीं ह्रीं जापतुष्टे हिमरुचिमुकुटे वल्लकीव्यग्रहस्ते
मातर्मातर्नमस्ते दह दह जडतां देहि बुद्धिं प्रशस्ताम् ।
विद्ये वेदान्तगीते श्रुतिपरिपठिते मोक्षदे मुक्तिमार्गे
मार्गातीतप्रभावे भव मम वरदा शारदे शुभ्रहारे ॥ ४॥

ध्रीं ध्रीं ध्रीं धारणाख्ये धृतिमतिनुतिभिः नामभिः कीर्तनीये
नित्ये नित्ये निमित्ते मुनिगणनमिते नूतने वै पुराणे ।
पुण्ये पुण्यप्रभावे हरिहरनमिते वर्णशुद्धे सुवर्णे
मन्त्रे मन्त्रार्थतत्त्वे मतिमतिमतिदे माधवप्रीतिनादे ॥ ५॥

ह्रीं क्षीं धीं ह्रीं स्वरूपे दह दह रुदितं पुस्तकव्यग्रहस्ते
सन्तुष्टाचारचित्ते स्मितमुखि सुभगे जंभनिस्तंभविद्ये ।
मोहे मुग्द्धप्रबोधे मम कुरु सुमतिं ध्वान्तविध्वंसनित्ये
गीर्वाग् गौर्भारती त्वं कविवररसनासिद्धिदा सिद्धिसाद्ध्या ॥ ६॥

सौं सौं सौं शक्तिबीजे कमलभवमुखांभोजभूतस्वरूपे 
रूपारूपप्रकाशे सकलगुणमये निर्गुणे निर्विकारे ।
न स्थूले नैव सूक्ष्मेऽप्यविदितविभवे जाप्यविज्ञानतत्त्वे
विश्वे विश्वान्तराळे सुरगणनमिते निष्कळे नित्यशुद्धे ॥ ७॥

स्तौमि त्वां त्वां च वन्दे भज मम रसनां मा कदाचित् त्यजेथा
मा मे बुद्धिर्विरुद्धा भवतु न च मनो देवि मे जातु पापम् ।
मा मे दुःखं कदाचिद्विपदि च समयेऽप्यस्तु मेऽनाकुलत्वम्
शास्त्रे वादे कवित्वे प्रसरतु मम धिः माऽस्तु कुण्ठा कदाचित् ॥ ८॥

इत्येतैः श्लोकमुख्यैः प्रतिदिनमुषसि स्तौति यो भक्तिनम्रः
देवीं वाचस्पतेरप्यतिमतिविभवो वाक्पटुर्नष्टपङ्कः ।
सः स्यादिष्टार्थलाभः सुतमिव सततं पाति तं सा च देवि 
सौभाग्यं तस्य लोके प्रभवति कविताविघ्नमस्तं प्रयाति ॥ ९॥

ब्रह्मचारी व्रती मौनी त्रयोदश्यां निरामिषः ।
सारस्वतो नरः पाठात् स स्यादिष्टार्थलाभवान् ॥ १०॥

पक्षद्वयेऽपि यो भक्त्या त्रयोदश्येकविंशतिम् ।
अविच्छेदं पठेद्धीमान् ध्यात्वा देवीं सरस्वतीम् ॥ ११॥

शुक्लाम्बरधरां देवीं शुक्लाभरणभूषिताम् ।
वाञ्छितं फलमाप्नोति स लोके नात्र संशयः ॥ १२॥

इति ब्रह्मा स्वयं प्राह सरस्वत्याः स्तवं शुभम् ।
प्रयत्नेन पठेन्नित्यं सोऽमृतत्वं प्रयच्छति ॥ १३॥

इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे नारदनन्दिकेश्वरसंवादे ब्रह्मप्रोक्ते
विद्यादानवाक्सरस्वतीहृदयस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥



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Saturday, 11 January 2020

॥ वृन्दावनद्वादशीव्रतम् ॥

(व्रतचूडामणौ )

तुलसी विष्णुविवाहविधिः

देशकालौ ततः स्मृत्वा गणेशं तत्र पूजयेत् ।
पुण्याहं वाचयित्वाऽथ नान्दीश्राद्धं समाचरेत् ॥ १॥

वेदवाद्यादिनिर्घोषैः विष्णुमूर्तिं समानयेत् ।
 तुलस्या निकटे सा तु स्थाप्या चान्तर्हिता घटैः ॥ २॥

आगच्छ भगवन् देव अर्हयिष्यामि केशव ।
तुभ्यं ददामि तुलसीं सर्वकामप्रदो भव ॥ ३॥

दद्याद् द्विवारमर्घ्यं च पाद्यं विष्टरमेव च ।
 ततश्चाचमनीयं च त्रिरुक्त्वा च प्रदापयेत् ॥ ४॥

पयो दधि घृतं क्षौद्रं कांस्यपात्रपुटे घृतम् ।
मधुपर्कं गृहाण त्वं वासुदव नमोऽस्तु ते ॥ ५॥

ततो ये स्वकुलाचाराः कर्तव्या विष्णुतुष्टये । हरिद्रालेपनाभ्यङ्गः कार्यः सर्वं विधाय च ॥ ६॥

गोधूलि समये पूज्यौ तुलसीकेशवौ पुनः । पृथक्पृथक्ततः कार्यौ सम्मुखं मङ्गलं पठेत् ॥ ७॥

इष्टदेशे भास्वरे तु सङ्कल्पं तु समर्पयेत् । स्वगोत्रप्रवरानुक्त्चा तथा त्रिपुरुषादिकम् ॥ ८॥

अनादिमध्यनिधन त्रैलोक्यप्रतिपालक ।
इमां गृहाण तुलसीं विवाहविधिनेश्वर ॥ ९॥

पार्वती बीजसम्भूतां वृन्दाभस्मनि संस्थिताम् । अनादिमध्यनिधनां वल्लभां ते ददाम्यहम् ॥ १०॥

पयोघृतैश्च सेवाभिः कन्यावद्वर्धितां मया ।
 त्वत्प्रियां तुलसीं तुभ्यं दास्यामि त्वं गृहाण भोः ॥ ११॥

एवं दत्वा तु तुलसीं पश्चात्तौ पूजयेत्ततः ।
रात्रौ जागरणं कुर्यात् विवाहोत्सवपूर्वकम् ॥ १२॥

प्रतिवर्षमिदं कुर्यात् कार्तिकव्रतसिद्धये ।
ततः प्रभातसमये तुलसीं विष्णुमर्चयेत् ॥ १३॥

वह्नि संस्थापनं कृत्वा द्वादशाक्षरविद्यया ।
 पायसाज्य क्षौद्रतिलैः हुनेदष्टोत्तरं शतम् ॥ १४॥

ततः स्विष्टकृतं हुत्वा दद्यात्पूर्णाहुतिं ततः ।
 आचार्यं च समभ्यर्च्य होमशेषं समापयेत् ॥ १५॥

चतुरो वार्षिकान्मासान् नियमं यस्य यत्कृतम् । कथयित्वा द्विजेभ्यस्तत् तथाऽन्यत्परिपूजयेत् ॥ १६॥

इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो ।
नूनं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादात् जनार्दन ॥ १७॥

रेवतीतुर्यचरणे द्वादशीसंयुते नरः ।
न कुर्यात्पारणां कुर्वन् व्रतं निष्फलतां व्रजेत् ॥ १८॥

ततो येषां पदार्थानां वर्जनं तु कृतं भवेत् । चातुर्मास्येऽथवा तूर्जे ब्राह्मणेभ्यः समर्पयेत् ॥ १९॥

ततः सर्वं समश्नीयात् यद्यदुक्तं व्रते स्थितः ।
 दम्पतिभ्यां सहैवात्र भोक्तव्यं वा द्विजैः सह ॥ २०॥

ततो भुक्तोत्तरं यानि गलितानि दलानि च । तुलस्यास्तानि भुक्त्वा तु सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ २१॥

भोजनानन्तरं विष्णोरर्पितं तुलसीदलम् । भक्षणात्पापनिर्मुक्तिः चान्द्रायण शताधिकम् ॥ २२॥

इक्षुखण्डं तथा धात्रीफलं पूगीफलं तथा ।
भुतु भोजनस्यान्ते तस्योच्छिष्टं विनश्यति ॥ २३॥

एषु त्रिषु न भुक्तं चेदैककमपि येन तु ।
ज्ञेयं उच्छिष्ट आवर्षं नरोऽसौ नात्र संशयः ॥। २४॥

ततः सायं पुनः पूज्यौ इक्षुवंशैश्च मण्डितौ । तुलसीवासुदेवौ च कृतकृत्यो भवेत्ततः ॥ २५॥

ततो विसर्जनं कुर्यात् दत्वा देयादिकं हरेः ।
वैभगवन् तुलस्या सहितः प्रभो ॥ २६॥

मत्कृतं पूजनं गृह्य सन्तुष्टो भव सर्वदा ।
गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थानं परमेश्वर ॥ २७॥

यत्र ब्रह्मादयो देवाः तत्र गच्छ जनार्दन ।
एवं विसृज्य देवेशं आचार्याय प्रदापयेत् ॥ २८॥

मूर्त्यादिकं सर्वमेव कृतकृत्यो भवेन्नरः ।
प्रतिवर्षं करोत्येवं तुलस्युद्वाहनं शुभम् ॥ २९॥

इह लोके परत्रापि विपुलं सद्यशो भवेत् ।
प्रतिवर्षं तु यः कुर्यात् तुलसीकरपीडनम् ।
भक्तिमान् धनधान्यैश्च युक्तो भवति निश्चितम् ॥ ३०॥

इति सनत्कुमारसंहितान्तर्गतम् वृन्दावनद्वादशीव्रतम् सम्पूर्णम् ।

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मकर संक्रांति का फल - संवत २०७६

���॥श्री हरि:परमानंदम्॥����
मकर संक्रांति का फल - संवत २०७६

  *"ग्रहराज ज्योतिष कार्यालय"*

सुयॅ मकर राशिमे प्रवेश कर रहे तभि विक्रम संवत २०७६ के पौष मास कृष्ण पक्ष ०४/५ तिथि दिनांक - १४/०१/२०२० - मंगलवार सायं २६:०८:०० am समय को प्रवेश करेंगे।

*मकरसंक्रांति का पुण्य काल*

*दिनांक १५/०१/२०२० - बुधवार को रहेगा।*

*सूर्योदय से सूर्यास्त तक।*

तभी सिंह राशि और पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र मे चंद्र है ।

शोभमान योग-और तैतिल करण मे प्रवेश करेंगे ।

संक्रांति का आगमन पूर्व दिशा से है।

गमन  पश्चिम दिशा मे जारही है।

उसका मुख दक्षिण दिशा कि ओर है।


और उसकी दृष्टि वायव्य कोण मे है।

संक्रांति वारनाम महोदरी है।

संक्रांति का वाहन गर्दभ है।

उसका उप वाहन- घेड (बकरी - रक्त श्वेत से सुशोभित है।

गोपीचंदन का तिलक किया हुवा है।

पुष्प (केवड़ा)  का फूल भी पसंद करती हैं।

अवस्था- तरूणी वय की है।

भक्षण मालपुआ का करती है।

आभुषण हिरा रत्नों धारण किऐहुवा है।

भोजन पात्र - कांसा  धातु पात्र  धारण किएहुवे है ।

साथ मे हाथ मे आयुध -शस्त्र दंड धारण कीया हुवा है।

*॥संक्रांति के दान सामग्री॥*

नये पित्तल वासण, चांदी की गाय, वस्त्र, दुध, दहिं, तील , गुड़, गुप्त भेंट,धान्य, पात्र, रत्नों, भुमि, अन्य तिल से बनिहुवी सामग्री दान देनी चाहिए।


➡मकरसंक्रांति राशि  अनुसार करे दान ओर पुण्य,
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सभी 12 राशियों पर कैसा होगा सूर्य का असर

*मेष राशि*
मकर संक्रांति आपके लिए महत्वपूर्ण है। आपकी साधनाओं को सफलता मिलेगी। कई दिनों से जो कार्य करना चाह रहे थे, वह पूर्ण होगा। ट्रांसपोर्ट और आयात निर्यात वालों को फायदा होगा। आज आप पीले या केशरी रंग के वस्त्र धारण करें। तिल, चने की दाल का दान करें। शुभ रंग- केशरी, शुभ अंक- 9

*वृषभ राशि*
मकर संक्रांति धर्म-कर्म के साथ मनाएंगे। धार्मिक कार्यों में सम्मिलित होंगे। व्यापार व्यवसाय में तरक्की होगी। शुभ समाचारों की प्राप्ति होगी। संतान के लिए सोचे गए कार्य पूर्ण होंगे। संक्राति पर आप नीले अथवा आसमानी वस्त्रों को धारण करें। तेल, तिल, कंबल, पुस्तक का दान करें। शुभ रंग- नीला, शुभ अंक- 10

*मिथुन राशि*
मकर संक्रांति पर आपको सचेत रहना होगा। अनजानों पर विश्वास न करें। जोखिम पूर्ण कार्यों को टालने का प्रयास करें। संक्रांति पर आप नीले या काले वस्त्रों को धारण करें। तिल, साबुन, स वस्त्र, कंघी, अन्न का दान करें। शुभ रंग- काला, शुभ अंक- 11

*कर्क राशि*
मकर संक्राति आपके कार्यों के लिए सम्मान दिलाने वाला होगा। नए लोगों से संपर्क होगा। कार्यक्षेत्र का विकास होगा। संक्रांति पर आपको पीले या गुलाबी वस्त्र को धारण करना चाहिए। व्यापार शुभ होगा। तिल, चना, साबूदाना, कंबल, मच्छरदानी दान करें। शुभ रंग- गुलाबी, अंक- 12
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*सिंह राशि*
मकर संक्राति का पर्व आपके लिए चिंताजनक हो सकता है। अज्ञात भय रहेगा। जोखिम भरे कार्यों को टालने का प्रयास करें। संक्राति पर लाल वस्त्र धारण करें, मच्छरदानी और तिल का दान करें। शुभ रंग - लाल, अंक- 1

*कन्या राशि*
मकर संक्रांति आपके लिए खुशियां बढ़ाने वाली होगी। विशेषकर विद्यार्थिर्यों को बहुत लाभ होगा। हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होगी। व्यापार में तरक्की होगी। संक्रांति पर आपको सफेद वस्त्र धारण करना चाहिए और ऊनी वस्त्र, तिल का दान करें। शुभ रंग- सफेद, अंक- 2

*तुला राशि*
बुधवार और मकर संक्रांति के योग की वजह से आपकी परेशानियां बढ़ सकती हैं। ज्यादा चिंता की आवश्यकता नहीं है। कुछ समय बाद प्रसन्नता प्राप्त हो सकती है। सफेद वस्त्र धारण करना श्रेष्ठ होगा। तिल और मच्छरदानी का दान करें। शुभ रंग- हरा, अंक- 3
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*वृश्चिक राशि*
मकर संक्रांति पर आपको व्यापार में लाभ हो सकता है और परिवार में खुशियां बनी रहेंगी। नुकसान की भरपाई होगी। अटके धन की प्राप्ति होगी। समस्याओं का समाधान होगा। केशरी वस्त्र धारण करना उचित होगा। तिल, साबूदाने और ऊन का दान करें। शुभ रंग- सफेद, अंक- 4

*धनु राशि*
इस पर्व पर आपको संतोष और सुख का अहसास होगा। नए कार्य करने के अवसर मिलेंगे। मान-सम्मान और प्रसिद्धि में वृद्धि होगी। नए संपर्कों की प्राप्ति होगी। संक्राति पर आप पीले वस्त्र का धारण करें। तिल, कंबल, मच्छरदानी अपनी सक्षमतानुसार दान करें। शुभ रंग- केशरी, अंक 5

*मकर राशि*
ये पर्व आपके लिए विशेष खुशियां लेकर आ रहा हैं। व्यापार और व्यवसाय आर्थिक लाभ प्राप्त करेंगे। परिवार में आ रहा दबाव समाप्त होगा। सम्मानित लोगों से मिलना होगा। संक्रांति पर नीले वस्त्र धारण करना श्रेष्ठ होगा। सक्षमता अनुसार तिल, कंबल, तेल, उड़द दाल का दान करें। शुभ रंग- हरा, अंक 6

*कुंभ राशि*
मकर संक्रांति पर आपको सावधान रहना होगा। किसी अनजान व्यक्ति की बातों पर विश्वास न करें। निवेश आदि से बचने का प्रयास करें। संतान पर ध्यान दें। संक्रांति पर सफेद वस्त्र धारण करें और तेल, रुई, वस्त्र, राई, मच्छरदानी का दान करें। शुभ रंग- सफेद, अंक- 7
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*मीन राशि*
मकर संक्रांति का यह पर्व लाभ और हर्षदायक समाचार दे सकता है। व्यापार और व्यवसाय में लाभ होगा। संबंधियों और सहयोगियों से सहायता प्राप्त होगी। संक्रांति पर लाल वस्त्र धारण करें। कंबल, ऊनी वस्त्र, कंबल किसी जरूरतमंद को दान करें। शुभ रंग- लाल, अंक- 9
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मकरसंक्रांति पुण्य काल
दिनांक-15/01/2020
           मंगलवार
प्रात:सूर्योदय07:29:am से
            लेकर
सायं सूर्यास्त06:25:pmतक
(पूणॅ दिवस-पुजा, पाठ, दान,
धमॅ आदि कर सकते है)
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➡नोध:- विशेष माहिती एवं
प्रश्र्न ओर समाधान हेतु के लिए कार्यालय का संपॅक करे,

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Monday, 6 January 2020

॥ कूर्मस्तोत्रम् ॥

श्री गणेशाय नमः

॥ देवा ऊचुः ॥

नमाम ते देव पदारविन्दं प्रपन्नतापोपशमातपत्रम् । यन्मूलकेता यतयोऽञ्जसोरुसंसारदुःखं बहिरुत्क्षिपन्ति ॥ १॥

धातर्यदस्मिन्भव ईश जीवास्तापत्रयेणोपहता न शर्म । आत्मँलभन्ते भगवंस्तवाङ्घ्रिच्छायां सविद्यामत आश्रयेम ॥ २॥

मार्गन्ति यत्ते मुखपद्मनीडैश्छन्दःसुपर्णैरृषयो विविक्ते । यस्याघमर्षोदसरिद्वरायाः पदं पदं तीर्थपदः प्रपन्नाः ॥ ३॥

यच्छ्रद्धया श्रुतवत्यां च भक्त्या संमृज्यमाने हृदयेऽवधाय । ज्ञानेन वैराग्यबलेन धीरा व्रजेम तत्तेऽङ्घ्रिसरोजपीठम् ॥ ४॥

विश्वस्य जन्मस्थितिसंयमार्थे कृतावतारस्य पदाम्बुजं ते । व्रजेम सर्वे शरणं यदीश स्मृतं प्रयच्छत्यभयं स्वपुंसाम् ॥ ५॥

यत्सानुबन्धेऽसति देहगेहे ममाहमित्यूढदुराग्रहाणाम् । पुंसां सुदूरं वसतोऽपि पुर्यां भजेम तत्ते भगवन्पदाब्जम् ॥ ६॥

तान्वा असद्वृत्तिभिरक्षिभिर्ये पराहृतान्तर्मनसः परेश । अथो न पश्यन्त्युरुगाय नूनं ये ते पदन्यासविलासलक्ष्म्याः ॥ ७॥

पानेन ते देव कथासुधायाः प्रवृद्धभक्त्या विशदाशया ये । वैराग्यसारं प्रतिलभ्य बोधं यथाञ्जसान्वीयुरकुण्ठधिष्ण्यम् ॥ ८॥

तथापरे चात्मसमाधियोगबलेन जित्वा प्रकृतिं बलिष्ठाम् । त्वामेव धीराः पुरुषं विशन्ति तेषां श्रमः स्यान्न तु सेवया ते ॥ ९॥

तत्ते वयं लोकसिसृक्षयाद्य त्वयानुसृष्टास्त्रिभिरात्मभिः स्म । सर्वे वियुक्ताः स्वविहारतन्त्रं न शक्नुमस्तत्प्रतिहर्तवे ते ॥ १०॥

यावद्बलिं तेऽज हराम काले यथा वयं चान्नमदाम यत्र । यथोभयेषां त इमे हि लोका बलिं हरन्तोऽन्नमदन्त्यनूहाः ॥ ११॥

त्वं नः सुराणामसि सान्वयानां कूटस्थ आद्यः पुरुषः पुराणः । त्वं देवशक्त्यां गुणकर्मयोनौ रेतस्त्वजायां कविमादधेऽजः ॥ १२॥

ततो वयं सत्प्रमुखा यदर्थे बभूविमात्मन्करवाम किं ते । त्वं नः स्वचक्षुः परिदेहि शक्त्या देवक्रियार्थे यदनुग्रहाणाम् ॥ १३॥

इति श्रीमद्भागवतपुराणान्तर्गतं कूर्मस्तोत्रं समाप्तम् ॥

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