Tuesday, 26 May 2020

*।।बुधवार को करें हरिद्रागणेशकवचम् का पाठ।।*

हरिद्रागणेशकवचम्

श्रीगणेशाय नमः ।

ईश्वर उवाच ।

श‍ृणु वक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिकरं प्रिये ।
पठित्वा पाठयित्वा च मुच्यते सर्वसङ्कटात् ॥ १॥

अज्ञात्वा कवचं देवि गणेशस्य मनुं जपेत् ।
सिद्धिर्नजायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि ॥ २॥

ॐ आमोदश्च शिरः पातु प्रमोदश्च शिखोपरि ।
सम्मोदो भ्रूयुगे पातु भ्रूमध्ये च गणाधिपः ॥ ३॥

गणाक्रीडो नेत्रयुगं नासायां गणनायकः ।
गणक्रीडान्वितः पातु वदने सर्वसिद्धये ॥ ४॥

जिह्वायां सुमुखः पातु ग्रीवायां दुर्मुखः सदा ।
विघ्नेशो हृदये पातु विघ्ननाथश्च वक्षसि ॥ ५॥

गणानां नायकः पातु बाहुयुग्मं सदा मम ।
विघ्नकर्ता च ह्युदरे विघ्नहर्ता च लिङ्गके ॥ ६॥

गजवक्त्रः कटीदेशे एकदन्तो नितम्बके ।
लम्बोदरः सदा पातु गुह्यदेशे ममारुणः ॥ ७॥

व्यालयज्ञोपवीती मां पातु पादयुगे सदा ।
जापकः सर्वदा पातु जानुजङ्घे गणाधिपः ॥ ८॥

हारिद्रः सर्वदा पातु सर्वाङ्गे गणनायकः ।
य इदं प्रपठेन्नित्यं गणेशस्य महेश्वरि ॥ ९॥

कवचं सर्वसिद्धाख्यं सर्वविघ्नविनाशनम् ।
सर्वसिद्धिकरं साक्षात्सर्वपापविमोचनम् ॥ १०॥

सर्वसम्पत्प्रदं साक्षात्सर्वदुःखविमोक्षणम् ।
सर्वापत्तिप्रशमनं सर्वशत्रुक्षयङ्करम् ॥ ११॥

ग्रहपीडा ज्वरा रोगा ये चान्ये गुह्यकादयः ।
पठनाद्धारणादेव नाशमायन्ति तत्क्षणात् ॥ १२॥

धनधान्यकरं देवि कवचं सुरपूजितम् ।
समं नास्ति महेशानि त्रैलोक्ये कवचस्य च ॥ १३॥

हारिद्रस्य महादेवि विघ्नराजस्य भूतले ।
किमन्यैरसदालापैर्यत्रायुर्व्ययतामियात् ॥ १४॥ ॥

इति विश्वसारतन्त्रे हरिद्रागणेशकवचं सम्पूर्णम् ॥

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Monday, 25 May 2020

॥ ‌ श्रीगजाननस्तोत्रम् ॥

‌श्री गणेशाय नमः

॥ गजाननस्तोत्रम् ॥

नमस्ते गजवक्त्राय गजाननसुरूपिणे ।
पराशरसुतायैव वत्सलासूनवे नमः ॥ १॥

व्यासभ्रात्रे शुकस्यैव पितृव्याय नमो नमः ।
अनादिगणनाथाय स्वानन्दवासिने नमः ॥ २॥

रजसा सृष्टिकर्ते ते सत्त्वतः पालकाय वै ।
तमसा सर्वसंहर्त्रे गणेशाय नमो नमः ॥ ३॥

सुकृतेः पुरुषस्यापि रूपिणे परमात्मने ।
बोधाकाराय वै तुभ्यं केवलाय नमो नमः ॥ ४॥

स्वसंवेद्याय देवाय योगाय गणपाय च ।
शान्तिरूपाय तुभ्यं वै नमस्ते ब्रह्मनायक ॥ ५॥

विनायकाय वीराय गजदैत्यस्य शत्रवे ।
मुनिमानसनिष्ठाय मुनीनां पालकाय च ॥ ६॥

देवरक्षकरायैव विघ्नेशाय नमो नमः ।
वक्रतुण्डाय धीराय चैकदन्ताय ते नमः ॥ ७॥

त्वयाऽयं निहतो दैत्यो गजनामा महाबलः ।
ब्रह्माण्डे मृत्यु संहीनो महाश्चर्यं कृतं विभो ॥ ८॥

हते दैत्येऽधुना कृत्स्नं जगत्सन्तोषमेष्यति ।
स्वाहास्वधा युतं पूर्णं स्वधर्मस्थं भविष्यति ॥ ९॥

इति श्रीगजाननस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

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Sunday, 24 May 2020

।। जयस्तुतिः शिवचामर स्तोत्र ।।

जयस्तुतिः

जय सर्वजनाधीश जय गौरीपते शिव ।
जय देव महादेव जयगङ्गाधरेश्वर ॥ १॥

जय दग्धपुराध्यक्ष जय कालान्तकारक ।
जय कामविरामेश जय भक्तानुकम्पक ॥ २॥

जय त्रैलोक्यसंरक्षिन् जय निर्गुण सद्गुण ।
जयानन्तगुणारम्भ जय घोर महेश्वर ॥ ३॥

जय चन्द्रकलाक्रान्त जय नागेन्द्रभूषण ।
जय पुङ्गवसत्केतो जय त्र्यक्ष महेश्वर ॥ ४॥

जयान्तकरिपो शम्भो जय ब्रह्मादिकारण ।
जय पञ्चकलातीत जय शूलिन्कपालभृत् ॥ ५॥

जयोपेन्द्रेन्द्रचन्द्राद्य जय नन्द्यादिवन्दित ।
जयानेकगणाधीश जय स्वामिन् महेश्वर ॥ ६॥

जय विश्वाद्य विश्वेश जय विश्वैककारण ।
जय विश्वसृजां मुख्य जय विश्वस्य सद्गुरो ॥ ७॥

जय निरामय जय सुधामय जय धृतामृतदीधिते जय हतान्तक जय कृतान्तक जय पुरान्तक सद्गते ।
जय परापर जय दयापर जय नतार्पितसद्गते जय जितस्मर जय महेश्वर जय जय त्रिजगत्पते ॥ ८॥

इति जयस्तुतिः समाप्ता ।

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Saturday, 23 May 2020

।। श्रीसूर्यकवचम् स्तोत्र ।।

श्रीसूर्यकवचम्

घृणिर्मे शीर्षकं पातु सूर्यः पातु ललाटकम् ।
आदित्यःपातु नेत्रे द्वे श्रोत्रे पातु दिवाकरः ॥ १॥

नासिकां च त्रयीपातु पातु गण्डस्थले रविः ।
पातूत्तरोष्ठमुष्णांशुरधरोष्ठमहर्पतिः ॥ २॥

दन्तान्पातु जगच्चक्षुः जिह्वां पातु विभावसुः ।
वक्त्रं पातु सहस्रांशुः चिबुकं पातु शङ्करः ॥ ३॥

पार्शे पातु पतङ्गश्च पृष्ठं पातु प्रभाकरः ।
कुक्षिं दिनमणिः पातु मध्यं पातु प्रजेश्वरः ॥ ४॥

पात्वंशुमाली नाभिं मे कटिं पात्वमराग्रणीः ।
ऊरू पातु ग्रहपतिः जानुनी पातु सर्वगः ॥ ५॥

जङ्घे धामनिधिः पातु गुल्फौ पातु प्रभाकरः ।
मार्ताण्डः पातु पादौ मे पातु मित्रोऽखिलं वपुः ॥ ६॥

फलश्रुतिः ।

इदमादित्यनामाख्यं कवचं धारयेत्सुधीः ।
सदीर्घायुस्सदा भोगी स्थिरसम्पद्विजायते ॥ ७॥

धर्मसञ्चारिणो लोके त्रयीश्री सूर्यवर्मणा ।
आवृतं पुरुषं द्रष्टुमशक्ता भयविह्वलाः ॥ ८॥

मित्रयन्तोद्भवन्तस्तं तिरस्कर्तुं तदक्षमम् ।
विरोधिनस्तु सर्वत्र तदाचरणतत्पराः ॥ ९॥

दारिद्र्यं चैव दौर्भाग्यं मारकस्त्विह दह्यते ।
सूर्येति सुरराजेति मित्रेति सुमनास्स्मरन् ॥ १०॥

पुमान्न प्राप्नुयाद्दुःखं शाश्वतं सुखमश्नुते ।
सर्वोन्नतगुणाधारं सूर्येणाशु प्रकल्पितम् ॥ ११॥

कवचं धारयेद्यस्तु तस्य स्यादखिलं वशम् ।
सदा गदाधरस्यापि छेत्तुं किं च तदक्षयम् ॥ १२॥

तस्य हस्ते च सर्वापि सिद्धीः प्रत्ययदायिनीः । सुखस्वपे यदा सूरः स्वस्य वर्मोपविष्टवान् ॥ १३॥

याज्ञवल्क्यो स्तवान् सप्त समक्षं हृदये मुदा ।
स घृणिस्सूर्य आदित्यस्तपनस्सविता रविः ॥ १४॥

कर्मसाक्षी दिनमणिर्मित्रो भानुर्विभुर्हरिः ।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः ॥ १५॥

तस्य मृत्युभयं नास्ति सपुत्रो विजयी भवेत् ।
द्वाभ्यां त्रिभिस्त्रिभिर्व??सन्मन्त्रपद्धतिम् ॥ १६॥

विज्ञायाष्टाक्षरीमेतां ओङ्कारादि जपेत्कृती ।
मन्त्रात्मकमिदं वर्म मन्त्रवद्गोपयेत्तथा ॥ १७॥

अमन्दविदुषः पुंसो दातुं तद्दुर्लभं खलु ।
दुर्लभं भक्तिहीनानां सुलभं पुण्यजीविनाम् ॥ १८॥

य इदं पठते भक्त्या श‍ृणुयाद्वा समाहितः ।
तस्य पुण्यफलं वक्तुमशक्यं वर्षकोटिभिः ॥ १९॥

इत्यादित्यपुराणे उत्तरखण्डे याज्ञवल्क्य विरचितं श्रीसूर्यकवचं सम्पूर्णम् ।
स्वर्भुवर्भूरोमित दिग्विमोकः श्री सूर्यनारायण परब्रह्मार्पणमस्तु ।

इति श्रीसूर्यकवचं सम्पूर्णम् ।

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Thursday, 21 May 2020

।। शनिभार्या एवम् शनिस्तोत्रम्।।

शनिभार्या एवम् शनिस्तोत्रम्

यः पुरा राज्यभ्रष्टाय नलाय प्रददो किल ।
स्वप्ने शौरिः स्वयं मन्त्रं सर्वकामफलप्रदम् ॥ १॥

क्रोडं नीलाञ्जनप्रख्यं नीलजीमूतसन्निभम् ।
छायामार्तण्डसम्भूतं नमस्यामि शनैश्चरम् ॥ २॥

ॐ नमोऽर्कपुत्राय शनैश्चराय नीहारवर्णाञ्जननीलकाय ।
स्मृत्वा रहस्यं भुवि मानुषत्वे फलप्रदो मे भव सूर्यपुत्र ॥ ३॥

नमोऽस्तु प्रेतराजाय कृष्णवर्णाय ते नमः ।
शनैश्चराय क्रूराय सिद्धिबुद्धिप्रदायिने ॥ ४॥

य एभिर्नामभिः स्तौति तस्य तुष्टो भवाम्यहम् ।
मामकानां भयं तस्य स्वप्नेष्वपि न जायते ॥ ५॥

गार्गेय कौशिकस्यापि पिप्पलादो महामुनिः ।
शनैश्चरकृता पीडा न भवति कदाचन ॥ ६॥

क्रोडस्तु पिङ्गलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोऽन्तको यमः ।
शौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संयुतः ॥ ७॥

एतानि शनिनामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत् ।
तस्य शौरेः कृता पीडा न भवति कदाचन ॥ ८॥

ध्वजनी धामनी चैव कङ्काली कलहप्रिया ।
कलही कण्टकी चापि अजा महिषी तुरङ्गमा ॥
९॥

नामानि शनिभार्याया नित्यं जपति यः पुमान् ।
तस्य दुःखा विनश्यन्ति सुखसौभाग्यं वर्धते ॥ १०॥

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॥ श्री शनि चालीसा ॥

॥ श्री शनि चालीसा ॥

दोहा

जय गणेश गिरिजा सुवन मंगल करण कृपाल ।
दीनन के दुख दूर करि कीजै नाथ निहाल ॥

जय जय श्री शनिदेव प्रभु सुनहु विनय महाराज ।
करहु कृपा हे रवि तनय राखहु जनकी लाज ॥

जयति जयति शनिदेव दयाला ।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥

चारि भुजा तनु श्याम विराजै ।
माथे रतन मुकुट छबि छाजै ॥

परम विशाल मनोहर भाला ।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥

कुण्डल श्रवण चमाचम चमके ।
हिये माल मुक्तन मणि दमकै ॥

कर में गदा त्रिशूल कुठारा ।
पल बिच करैं अरिहिं संहारा ॥

पिंगल कृष्णो छाया नन्दन ।
यम कोणस्थ रौद्र दुख भंजन ॥

सौरी मन्द शनी दश नामा ।
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ॥

जापर प्रभु प्रसन्न हवैं जाहीं ।
रंकहुँ राव करैं क्शण माहीं ॥

पर्वतहू तृण होइ निहारत ।
तृणहू को पर्वत करि डारत ॥

राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो ।
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो ॥

बनहूँ में मृग कपट दिखाई ।
मातु जानकी गई चुराई ॥

लषणहिं शक्ति विकल करिडारा ।
मचिगा दल में हाहाकारा ॥

रावण की गति-मति बौराई ।
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥

दियो कीट करि कंचन लंका ।
बजि बजरंग बीर की डंका ॥

नृप विक्रम पर तुहिं पगु धारा ।
चित्र मयूर निगलि गै हारा ॥

हार नौंलखा लाग्यो चोरी ।
हाथ पैर डरवायो तोरी ॥

भारी दशा निकृष्ट दिखायो ।
तेलहिं घर कोल्हू चलवायो ॥

विनय राग दीपक महँ कीन्हयों ।
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों ॥

हरिश्चंद्र नृप नारि बिकानी ।
आपहुं भरें डोम घर पानी ॥

तैसे नल पर दशा सिरानी ।
भूंजी-मीन कूद गई पानी ॥

श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई ।
पारवती को सती कराई ॥

तनिक वोलोकत ही करि रीसा ।
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा ॥

पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी ।
बची द्रौपदी होति उघारी ॥

कौरव के भी गति मति मारयो ।
युद्ध महाभारत करि डारयो ॥

रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला ।
लेकर कूदि परयो पाताला ॥

शेष देव-लखि विनति लाई ।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ॥

वाहन प्रभु के सात सुजाना ।
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ॥

जम्बुक सिंह आदि नख धारी ।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ॥

गज वाहन लक्श्मी गृह आवैं ।
हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं ॥

गर्दभ हानि करै बहु काजा ।
सिंह सिद्धकर राज समाजा ॥

जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै ।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै ॥

जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी ।
चोरी आदि होय डर भारी ॥

तैसहि चारी चरण यह नामा ।
स्वर्ण लौह चाँदि अरु तामा ॥

लौह चरण पर जब प्रभु आवैं ।
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं ॥

समता ताम्र रजत शुभकारी ।
स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी ॥

जो यह शनि चरित्र नित गावै ।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ॥

अद्भूत नाथ दिखावैं लीला ।
करैं शत्रु के नशिब बलि ढीला ॥

जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई ।
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ॥

पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत ।
दीप दान दै बहु सुख पावत ॥

कहत राम सुन्दर प्रभु दासा ।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ॥

दोहा

पाठ शनीश्चर देव को कीन्हों  विमल  तय्यार । करत पाठ चालीस दिन हो भवसागर पार ॥

जो स्तुति दशरथ जी कियो सम्मुख शनि निहार । सरस सुभाष में वही ललिता लिखें सुधार ।।

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Wednesday, 20 May 2020

॥ ॐ नमो नारायणाय अष्टाक्षरमाहात्म्यं ॥

॥ ॐ नमो नारायणाय अष्टाक्षरमाहात्म्यं ॥

श्रीशुक उवाच --

किं जपन् मुच्यते तात सततं विष्णुतत्परः । संसारदुःखात् सर्वेषां हिताय वद मे पितः ॥ १॥

व्यास उवाच --

अष्टाक्षरं प्रवक्ष्यामि मन्त्राणां मन्त्रमुत्तमम् ।
यं जपन् मुच्यते मर्त्यो जन्मसंसारबन्धनात् ॥ २॥

हृत्पुण्डरीकमध्यस्थं शङ्खचक्रगदाधरम् ।
एकाग्रमनसा ध्यात्वा विष्णुं कुर्याज्जपं द्विजः ॥ ३॥

एकान्ते निर्जनस्थाने विष्णवग्रे वा जलान्तिके ।
जपेदष्टाक्षरं मन्त्रं चित्ते विष्णुं निधाय वै ॥ ४॥

अष्टाक्षरस्य मन्त्रस्य ऋषिर्नारायणः स्वयम् ।
छन्दश्च दैवी गायत्री परमात्मा च देवता ॥ ५॥

शुक्लवर्णं च ॐकारं नकारं रक्तमुच्यते ।
मोकारं वर्णतः कृष्णं नाकारं रक्तमुच्यते ॥ ६॥

राकारं कुङ्कुमाभं तु यकारं पीतमुच्यते ।
णाकारमञ्जनाभं तु यकारं बहुवर्णकम् ॥ ७॥

ॐ नमो नारायणायेति मन्त्रः सर्वार्थसाधकः ।
भक्तानां जपतां तात स्वर्गमोक्षफलप्रदः ।
वेदानां प्रणवेनैष सिद्धो मन्त्रः सनातनः ॥ ८॥

सर्वपापहरः श्रीमान् सर्वमन्त्रेषु चोत्तमः ।
एनमष्टाक्षरं मन्त्रं जपन्नारायणं स्मरेत् ॥ ९॥

संध्यावसाने सततं सर्वपापैः प्रमुच्यते ।
एष एव परो मन्त्र एष एव परं तपः ॥ १०॥

एष एव परो मोक्ष एष स्वर्ग उदाहृतः ।
सर्ववेदरहस्येभ्यः सार एष समुद्धॄतः ॥ ११॥

विष्णुना वैष्णवानां हि हिताय मनुजां पुरा ।
एवं ज्ञात्वा ततो विप्रो ह्यष्टाक्षरमिमं स्मरेत् ॥ १२॥

स्नात्वा शुचिः शुचौ देशे जपेत् पापविशुद्धये ।
जपे दाने च होमे च गमने ध्यानपर्वसु ॥ १३॥

जपेन्नारायणं मन्त्रं कर्मपूर्वे परे तथा ।
जपेत्सहस्रं नियुतं शुचिर्भूत्वा समाहितः ॥ १४॥

मासि मासि तु द्वादश्यां विष्णुभक्तो द्विजोत्तमः ।
स्नात्वा शुचिर्जपेद्यस्तु नमो नारायणं शतम् ॥ १५॥

स गच्छेत् परमं देवं नारायणमनामयम् ।
गन्धपुष्पादिभिर्विष्णुमनेनाराध्य यो जपेत् ॥ १६॥

महापातकयुक्तोऽपि मुच्यते नात्र संशयः ।
हृदि कृत्वा हरिं देवं मन्त्रमेनं तु यो जपेत् ॥ १७॥

सर्वपापविशुद्धात्मा स गच्छेत् परमां गतिम् ।
प्रथमेन तु लक्षेण आत्मशुद्धिर्भविष्यति ॥ १८॥

द्वितीयेन तु लक्षेण मनुसिद्धिमवाप्नुयात् ।
तृतीयेन तु लक्षेण स्वर्गलोकमवाप्नुयात् ॥ १९॥

चतुर्थेन तु लक्षेण हरेः सामीप्यमाप्नुयात् ।
पञ्चमेन तु लक्षेण निर्मलं ज्ञानमाप्नुयात् ॥ २०॥

तथा षष्ठेन लक्षेण भवेद्विष्णौ स्थिरा मतिः ।
सप्तमेन तु लक्षेण स्वरूपं प्रतिपद्यते ॥ २१॥

अष्टमेन तु लक्षेण निर्वाणमधिगच्छति ।
स्वस्वधर्मसमायुक्तो जपं कुर्याद् द्विजोत्तमः ॥ २२॥

एतत् सिद्धिकरं मन्त्रमष्टाक्षरमतन्द्रितः ।
दुःस्वप्नासुरपैशाचा उरगा ब्रह्मराक्षसाः ॥ २३॥

जापिनं नोपसर्पन्ति चौरक्षुद्राधयस्तथा ।
एकाग्रमनसाव्यग्रो विष्णुभक्तो दृढव्रतः ॥ २४॥

जपेन्नारायणं मन्त्रमेतन्मृत्युभयापहम् ।
मन्त्राणां परमो मन्त्रो देवतानां च दैवतम् ॥ २५॥

गुह्यानां परमं गुह्यमोंकाराद्यक्षराष्टकम् ।
आयुष्यं धनपुत्रांश्च पशून् विद्यां महद्यशः ॥ २६॥

धर्मार्थकाममोक्षांश्च लभते च जपन्नरः ।
एतत् सत्यं च धर्म्यं च वेदश्रुतिनिदर्शनात् ॥ २७॥

एतत् सिद्धिकरं नृणां मन्त्ररूपं न संशयः ।
ऋषयः पितरो देवाः सिद्धास्त्वसुरराक्षसाः ॥ २८॥

एतदेव परं जप्त्वा परां सिद्धिमितो गताः ।
ज्ञात्वा यस्त्वात्मनः कालं शास्त्रान्तरविधानतः ।
अन्तकाले जपन्नेति तद्विष्णोः परमं पदम् ॥ २९॥

नारायणाय नम इत्ययमेव सत्यं संसारघोरविषसंहरणाय मन्त्रः ।
श‍ृण्वन्तु भव्यमतयो मुदितास्त्वरागा उच्चैस्तरामुपदिशाम्यहमूर्ध्वबाहुः ॥ ३०॥

भूत्वोर्ध्वबाहुरद्याहं सत्यपूर्वं ब्रवीम्यहम् ।
हे पुत्र शिष्याः श‍ृणुत न मन्त्रोऽष्टाक्षरात्परः ॥ ३१॥

सत्यं सत्यं पुनः सत्यमुत्क्षिप्य भुजमुच्यते ।
वेदाच्छास्त्रं परं नास्ति न देवः केशवात् परः ॥ ३२॥

आलोच्य सर्वशास्त्राणि विचार्य च पुनः पुनः ।
इदमेकं सुनिष्पन्नं ध्येयो नारायणः सदा ॥ ३३॥

इत्येतत् सकलं प्रोक्तं शिष्याणां तव पुण्यदम् ।
कथाश्च विविधाः प्रोक्ता मया भज जनार्दनम् ॥ ३४॥

अष्टाक्षरमिमं मन्त्रं सर्वदुःखविनाशनम् ।
जप पुत्र महाबुद्धे यदि सिद्धिमभीप्ससि ॥ ३५॥

इदं स्तवं व्यासमुखात्तु निस्सृतं संध्यात्रये ये पुरुषाः पठन्ति ।
ते धौतपाण्डुरपटा इव राजहंसाः संसारसागरमपेतभयास्तरन्ति ॥ ३६॥

इति श्रीनरसिंहपुराणे अष्टाक्षरमाहात्म्यं नाम सप्तदशोऽध्यायः ॥ १७॥

सुचना 📵यह लेख पौराणिक ग्रंथों अथवा मान्यताओं पर आधारित है अत: इसमें वर्णित सामग्री के वैज्ञानिक प्रमाण होने का आश्वासन नहीं दिया जा सकता। विस्तार में आप कार्यालय पर संपर्क करें।
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