Monday, 22 June 2020

।।श्रीजगन्नाथाष्टकम्।।

श्रीजगन्नाथाष्टकम्

कदाचित्कालिन्दीतटविपिनसङ्गीतकरवो  
कवरो
मुदा गोपीनारीवदनकमलास्वादमधुपः ।  
भीरी
रमाशम्भुब्रह्मामरपतिगणेशार्चितपदो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ १ ॥

भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखिपिंछं कटितटे
पिच्छिं
दुकूलं नेत्रान्ते सहचरकटाक्षं विदधते ।
सदा श्रीमद्वृन्दावनवसतिलीलापरिचयो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु ने ॥ २ ॥

महाम्भोधेस्तीरे कनकरुचिरे नीलशिखरे
वसन् प्रासादान्तस्सहजबलभद्रेण बलिना ।
सुभद्रामध्यस्थस्सकलसुरसेवावसरदो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ३ ॥

कृपापारावारास्सजलजलदश्रेणिरुचिरो
रमावाणीसौमस्सुरदमलपद्मोद्भवमुखैः ।
वाणीरामस्
सुरेन्द्रैराराध्यः श्रुतिगणशिखागीतचरितो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ४ ॥

रथारूढो गच्छन् पथि मिलितभूदेवपटलैः
स्तुतिप्रादुर्भावं प्रतिपद मुपाकर्ण्य सदयः ।
दयासिन्धुर्बन्धुस्सकलजगता सिन्धुसुतया
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ५ ॥

परब्रह्मापीडः कुवलयदलोत्फुल्लनयनो
निवासी नीलाद्रौ निहितचरणोऽनन्तशिरसि ।
रसानन्दो राधासरसवपुरालिङ्गनसखो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ६ ॥

न वै प्रार्थ्यं राज्यं न च कनकतां भोगविभवं
न याचेऽहं रम्यां निखिलजनकाम्यां वरवधूं ।
सदा काले काले प्रमथपतिना गीतचरितो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ७ ॥

हर त्वं संसारं द्रुततरमसारं सुरपते
हर त्वं पापानां विततिमपरां यादवपते ।
अहो दीनानाथं निहितमचलं निश्चितपदं
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ८ ॥

इति श्रीमद् शङ्कराचार्यप्रणीतं जगन्नाथाष्टकं सम्पूर्णं॥

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Monday, 1 June 2020

गायत्रीकवचम्

।।गायत्रीकवचम्।।

ॐ अस्य श्रीगायत्रीकवचस्य, ब्रह्मा ऋषिः,
गायत्री छन्दः, गायत्री देवता, भूः बीजम्,
भुवः शक्तिः, स्वः कीलकम्,
गायत्री प्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।

अथ ध्यानं

पञ्चवक्त्रां दशभुजां सूर्यकोटिसमप्रभाम् ।
सावित्रीं ब्रह्म वरदां चन्द्रकोटिसुशीतलाम् ॥

त्रिनेत्रां सितवक्त्रां च मुक्ताहारविराजिताम् ।
वराभयाङ्कुशकशाहेमपत्राक्षमालिकाम् ॥

शङ्खचक्राब्जयुगलं कराभ्यां दधतीं वराम् ।
सितपङ्कजसंस्थां च हंसारूढां सुखस्मिताम् ॥

ध्यात्वैवं मानसाम्भोजे गायत्रीकवचं जपेत् ॥

ॐ ब्रह्मोवाच ।

विश्वामित्र महाप्राज्ञ गायत्रीकवचं श‍ृणु ।
यस्य विज्ञानमात्रेण त्रैलोक्यं वशयेत्क्षणात् ॥ १॥

सावित्री मे शिरः पातु शिखायाममृतेश्वरी ।
ललाटं ब्रह्मदैवत्या भ्रुवौ मे पातु वैष्णवी ॥ २॥

कर्णौ मे पातु रुद्राणी सूर्या सावित्रिकाऽम्बिका ।
गायत्री वदनं पातु शारदा दशनच्छदौ ॥ ३॥

द्विजान् यज्ञप्रिया पातु रसनायां सरस्वती ।
साङ्ख्यायनी नासिकां मे कपोलौ चन्द्रहासिनी ॥ ४॥

चिबुकं वेदगर्भा च कण्ठं पात्वघनाशिनी ।
स्तनौ मे पातु इन्द्राणी हृदयं ब्रह्मवादिनी ॥ ५॥

उदरं विश्वभोक्त्री च नाभौ पातु सुरप्रिया ।
जघनं नारसिंही च पृष्ठं ब्रह्माण्डधारिणी ॥ ६॥

पार्श्वौ मे पातु पद्माक्षी गुह्यं गोगोप्त्रिकाऽवतु ।
ऊर्वोरोङ्काररूपा च जान्वोः सन्ध्यात्मिकावतु ॥ ७॥

जङ्घयोः पातु अक्षोभ्या गुल्फयोर्ब्रह्मशीर्षका ।
सूर्या पदद्वयं पातु चन्द्रा पादाङ्गुलीषु च ॥ ८॥

सर्वाङ्गं वेदजननी पातु मे सर्वदानघा ।
इत्येतत्कवचं ब्रह्मन् गायत्र्याः सर्वपावनम् ।
पुण्यं पवित्रं पापघ्नं सर्वरोगनिवारणम् ॥ ९॥

त्रिसन्ध्यं यः पठेद्विद्वान् सर्वान् कामानववाप्नुयात् ।
सर्वशास्त्रार्थतत्तवज्ञः स भवेद्वेदवित्तमः ॥ १०॥

सर्वयज्ञफलं प्राप्य ब्रह्मान्ते समवाप्नुयात् ।
प्राप्नोति जपमात्रेण पुरुषार्थांश्चतुर्विधान् ॥ ११॥

इति श्रीविश्वामित्रसंहितोक्तं गायत्रीकवचं सम्पूर्णम् ॥

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