दिनांक- २५/०३/२०२० बुधवार
शार्वरी2020-2021 नाम संवत्सर प्रारंभ।
वीष्णु विंशति संवत्सर का क्रमाक (३४)
नीचे हम आपको संवत्सर, उस संवत का फल और उसके स्वामी के बारे में बता रहे है, समझने में आसानी रहे .
भारतीय नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है और इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है.
चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता है। इस दिन हिन्दु नववर्ष का आरम्भ होता है.
इसी दिन से नया संवत्सर शुंरू होता है। अत इस तिथि को ‘नवसंवत्सर‘ भी कहते हैं.
संवत्सर, संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ 'वर्ष' होता है। हिन्दू पंचांग में ६० संवत्सर होते हैं।
क्रमांकनामवर्तमान चक्रपूर्व चक्र 1पूर्व चक्र 2
1प्रभव1987-1988 ई.1927-1928 ई.1867-1868 ई.
2विभव1988-1989 ई.1928-1929 ई.1868-1869 ई.
3शुक्ल1989-1990 ई.1929-1930 ई.1869-1870 ई.
4प्रमोद1990-1991 ई.1930-1931 ई.1870-1871 ई.
5प्रजापति1991-1992 ई.1931-1932 ई.1871-1872 ई.
6अंगिरा1992-1993 ई.1932-1933 ई.1872-1873 ई.
7श्रीमुख1993-1994 ई.1933-1934 ई.1873-1874 ई.
8भाव1994-1995 ई.1934-1935 ई.1874-1875 ई.
9युवा1995-1996 ई.1935-1936 ई.1875-1876 ई.
10धाता1996-1997 ई.1936-1937 ई.1876-1877 ई.
11ईश्वर1997-1998 ई.1937-1938 ई.1877-1878 ई.
12बहुधान्य1998-1999 ई.1938-1939 ई.1878-1879 ई.
13प्रमाथी1999-2000 ई.1939-1940 ई.1879-1880 ई.
14विक्रम2000-2001 ई.1940-1941 ई.1880-1881 ई.
15वृषप्रजा2001-2002 ई.1941-1942 ई.1881-1882 ई.
16चित्रभानु2002-2003 ई.1942-1943 ई.1882-1883 ई.
17सुभानु2003-2004 ई.1943-1944 ई.1883-1884 ई.
18तारण2004-2005 ई.1944-1945 ई.1884-1885 ई.
19पार्थिव2005-2006 ई.1945-1946 ई.1885-1886 ई.
20अव्यय2006-2007 ई.1946-1947 ई.1886-1887 ई.
21सर्वजीत2007-2008 ई.1947-1948 ई.1887-1888 ई.
22सर्वधारी2008-2009 ई.1948-1949 ई.1888-1889 ई.
23विरोधी2009-2010 ई.1949-1950 ई.1889-1890 ई.
24विकृति2010-2011 ई.1950-1951 ई.1890-1891 ई.
25खर2011-2012 ई.1951-1952 ई.1891-1892 ई.
26नंदन2012-2013 ई.1952-1953 ई.1892-1893 ई.
27विजय2013-2014 ई.1953-1954 ई.1893-1894 ई.
28जय2014-2015 ई.1954-1955 ई.1894-1895 ई.
29मन्मथ2015-2016 ई.1955-1956 ई.1895-1896 ई.
30दुर्मुख2016-2017 ई.1956-1957 ई.1896-1897 ई.
31हेमलंबी2017-2018 ई.1957-1958 ई.1897-1898 ई.
32विलंबी2018-2019 ई.1958-1959 ई.1898-1899 ई.
33विकारी2019-2020 ई.1959-1960 ई.1899-1900 ई.
34शार्वरी2020-2021 ई.1960-1961 ई.1900-1901 ई.
35प्लव2021-2022 ई.1961-1962 ई.1901-1902 ई.
36शुभकृत2022-2023 ई.1962-1963 ई.1902-1903 ई.
37शोभकृत2023-2024 ई.1963-1964 ई.1903-1904 ई.
38क्रोधी2024-2025 ई.1964-1965 ई.1904-1905 ई.
39विश्वावसु2025-2026 ई.1965-1966 ई.1905-1906 ई.
40पराभव2026-2027 ई.1966-1967 ई.1906-1907 ई.
41प्ल्वंग2027-2028 ई.1967-1968 ई.1907-1908 ई.
42कीलक2028-2029 ई.1968-1969 ई.1908-1909 ई.
43सौम्य2029-2030 ई.1969-1970 ई.1909-1910 ई.
44साधारण2030-2031 ई.1970-1971 ई.1910-1911 ई.
45विरोधकृत2031-2032 ई.1971-1972 ई.1911-1912 ई.
46परिधावी2032-2033 ई.1972-1973 ई.1912-1913 ई.
47प्रमादी2033-2034 ई.1973-1974 ई.1913-1914 ई.
48आनंद2034-2035 ई.1974-1975 ई.1914-1915 ई.
49राक्षस2035-2036 ई.1975-1976 ई.1915-1916 ई.
50आनल2036-2037 ई.1976-1977 ई.1916-1917 ई.
51पिंगल2037-2038 ई.1977-1978 ई.1917-1918 ई.
52कालयुक्त2038-2039 ई.1978-1979 ई.1918-1919 ई.
53सिद्धार्थी2039-2040 ई.1979-1980 ई.1919-1920 ई.
54रौद्र2040-2041 ई.1980-1981 ई.1920-1921 ई.
55दुर्मति2041-2042 ई.1981-1982 ई.1921-1922 ई.
56दुन्दुभी2042-2043 ई.1982-1983 ई.1922-1923 ई.
57रूधिरोद्गारी2043-2044 ई.1983-1984 ई.1923-1924 ई.
58रक्ताक्षी2044-2045 ई.1984-1985 ई.1924-1925 ई.
59क्रोधन2045-2046 ई.1985-1986 ई.1925-1926 ई.
60क्षय2046-2047 ई.1986-1987 ई.1926-1927 ई.
इन 60 संवत्सरों में 20-20-20 के तीन हिस्से हैं जिनको
ब्रहाविंशति, विष्णुविंशति और शिवविंशति के नाम से जाना जाता है .
1-20 तक – ब्रहाविंशति
21-40 तक – विष्णुविंशति
41-60 तक – शिवविंशति
___________________________
*ब्रह्मविंशति*
संवत्सर का नाम
वर्ष फल
स्वामी
01) प्रभव
प्रजा में यज्ञादि शुभ कार्यों की भावना हो
विष्णु
02) विभव
प्रजा में सुख समृद्धि हो
बृहस्पति
03) शुक्ल
प्रजा में धान्य प्रचुर मात्रा में हो
इंद्र
04) प्रमोद
प्रजा में आमोद प्रमोद, सुख, वैभव की वृद्धि हो
लोहित
05) प्रजापति
प्रजा में चतुर्विद उन्नति हो
त्वष्टा
06) अंगीरा
भोग-विलास की वृद्धि हो
अहिर्बुधन्य
07) श्री मुख
जनसंख्या में अधिक वृद्धि हो
पितर
08) भाव
प्राणियों में सद्भावना बढे
विश्वेदेव
09) युवा
मेघों द्वारा प्रचुर वृष्टि हो
चन्द्र
10) धाता
औषधियों की वृद्धि हो
इन्द्राग्नी
11) ईश्वर
आरोग्य व क्षेम की प्राप्ति हो
अश्विनीकुमार
12) बहुधान्य
अन्न की प्रचुरता हो
भग
13) प्रमाथी
शुभाशुभ प्रकार का मध्यम वर्ष हो
विष्णु
14) विक्रम
अन्न की अधिकता रहे
बृहस्पति
15) वृषभ
जनों का पोषण हो
इंद्र
16) चित्र भानु
विचित्र घटनाओं की अधिकतालोहित
17) सुभानु
आरोग्यकारक व कल्याणकारी वर्ष
त्वष्टा
18) तारण
मेघों द्वारा शुभकारक वर्षा हो
अहिर्बुधन्य
19) पार्थिव
प्रजा की संपत्ति में वृद्धि हो
पितर
20) व्यय
अतिवृष्टि होविश्वेदेव
____________________________
*विष्णुविंशति*
21) सर्वजीत
उत्तम वृष्टि का योग
चन्द्र
22) सर्वधारी
धान्यों की अधिकता
इन्द्राग्नी
23) विरोधी
अनावृष्टि
अश्विनीकुमार
24) विकृति
भयकारक घटनाएं
भग
25) खर
पुरुषों में साहस व वीरता का संचार
विष्णु
26) नंदन
प्रजा में आनंद
बृहस्पति
27) विजय
दुष्टों का नाश
इंद्र
28) जय
रोगों का शमन
लोहित
29)मन्मथ
विश्व में ज्वर का प्रकोप
त्वष्टा
30) दुर्मुख
मनुष्यों की वाणी में कटुता
अहिर्बुधन्य
31) हेमलंब
सम्प्रदा की वृद्धि
पितर
32) विलम्ब
अन्न की प्रचुरता
विश्वेदेव
33) विकारी
दुष्ट व शत्रु कुपित हो
चन्द्र
34) शर्वरी
कृषि में वृद्धि
इन्द्राग्नी
35) प्लव
नदियों में बाढ़ का प्रकोप
अश्विनीकुमार
36) शुभकृत
प्रजा में शुभता
भग
37) शोभन
शुभ फलों की वृद्धि
विष्णु
38) क्रोधी
स्त्री-पुरुषों में बैर, रोग वृद्धि
बृहस्पति
39) विश्वावसु
महंगाई बढ़ना, राजा लोभी, रोग व चोरों की वृद्धिइंद्र
40) पराभव
रोग वृद्धि, प्रचुर वृष्टि, राजा का तिरस्कार
लोहित
____________________________
*शिव विंशति*
41) प्लवंग
कृषि हानि, प्रजा में रोग व चोरी, राजों का युद्ध
त्वष्टा
42) कीलक
पित्त-विकार, मध्यम वर्षा, सर्प भय, प्रजा में कलह
अहिर्बुधन्य
43) सौम्य
राजा प्रसन्न, शीत प्रकृति के रोग, मध्यम वर्षा, सर्प भयपितर
44) साधारण
राजा व प्रजा सुखी, वर्षा उत्तम
विश्वेदेव
45) विरोधकृत
राजाओं में बैर भाव, मध्यम वर्षा, प्रजा प्रसन्न
चन्द्र
46) परिधावी
अन्न महंगा, मध्यम वर्षा, प्रजा में रोग, उपद्रव
इन्द्राग्नी
47) प्रमादी
जनता में आलस्य व प्रमाद की वृद्धि
अश्विनीकुमार
48) आनंद
जनता में सुख और आनंद
भग
49) राक्षस
प्रजा में निष्ठुरता की वृद्धि
विष्णु
50) नल
विविध धान्यों की वृद्धि
बृहस्पति
51) पिंगल
कहीं उत्तम और कहीं मध्यम वृष्टि
इंद्र
52) काल
धन-धान्य की हानि
लोहित
53) सिद्दार्थ
सम्पूर्ण कार्यों की सिद्धित्वष्टा
54) रौद्रविश्व में रौद्र भाव की अधिकता
अहिर्बुधन्य
55) दुर्मति
मध्यम वृष्टिपितर
56) दुदुम्भी
धन-धान्य की वृद्धि
विश्वेदेव
57) रुधिरोद्गारी
हिंसक घटनाओं से रक्तपात
चन्द्र
58) रक्त्राक्ष
रक्तपात से जन हानि
इन्द्राग्नी
59) क्रोधन
शासकों को विजय प्राप्त
अश्विनीकुमार
60) क्षय
प्रजा का धन क्षीण
इसी दिन से नया संवत्सर शुंरू होता है। अत इस तिथि को ‘नवसंवत्सर‘ भी कहते और ‘उगादि‘ के दिन ही पंचांग तैयार होता है।
इसदिन ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का सृजन
मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक
माँ दुर्गा की उपासना की नवरात्र व्रत का प्रारम्भ
युगाब्द (युधिष्ठिर संवत्) का आरम्भ
उज्जयिनी सम्राट- विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत् प्रारम्भ
शालिवाहन शक संवत् (भारत सरकार का राष्ट्रीय पंचांग)
महर्षि दयानन्द द्वारा आर्य समाज की स्थापना
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार का जन्मदिन।
-विशेष माहिती हेतु कार्यालय का संपॅक करे
॥ग्रहराज ज्योतिष कार्यालय॥
छाया चोक्की, बालाजी कोम्प्लेक्ष
३माला- पोरबंदर-गुजरात
+919727972119/ +919004225454
एच एच राजगुरु
ज्योतिष-वास्तु-धामिॅकपुजा
Email- Hitu9grahgochar@gmail.com
https://www.facebook.com/grahraj.astrology/
॥॥हरिॐतत्सत्॥॥