Tuesday, 28 March 2017

॥ नुतन संवत्सर विलंबी ॥

दिनांक- २५/०३/२०२० बुधवार
 

शार्वरी2020-2021 नाम संवत्सर प्रारंभ।

वीष्णु विंशति संवत्सर का क्रमाक (३४)

नीचे हम आपको संवत्सर, उस संवत का फल और उसके स्वामी के बारे में बता रहे है, समझने में आसानी रहे .

भारतीय नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है और इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है.

चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता है। इस दिन हिन्दु नववर्ष का आरम्भ होता है.

इसी दिन से नया संवत्सर शुंरू होता है। अत इस तिथि को ‘नवसंवत्सर‘ भी कहते हैं.

संवत्सर, संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ 'वर्ष' होता है। हिन्दू पंचांग में ६० संवत्सर होते हैं।

क्रमांकनामवर्तमान चक्रपूर्व चक्र 1पूर्व चक्र 2
1प्रभव1987-1988 ई.1927-1928 ई.1867-1868 ई.

2विभव1988-1989 ई.1928-1929 ई.1868-1869 ई.

3शुक्ल1989-1990 ई.1929-1930 ई.1869-1870 ई.

4प्रमोद1990-1991 ई.1930-1931 ई.1870-1871 ई.

5प्रजापति1991-1992 ई.1931-1932 ई.1871-1872 ई.

6अंगिरा1992-1993 ई.1932-1933 ई.1872-1873 ई.

7श्रीमुख1993-1994 ई.1933-1934 ई.1873-1874 ई.

8भाव1994-1995 ई.1934-1935 ई.1874-1875 ई.

9युवा1995-1996 ई.1935-1936 ई.1875-1876 ई.

10धाता1996-1997 ई.1936-1937 ई.1876-1877 ई.

11ईश्वर1997-1998 ई.1937-1938 ई.1877-1878 ई.

12बहुधान्य1998-1999 ई.1938-1939 ई.1878-1879 ई.

13प्रमाथी1999-2000 ई.1939-1940 ई.1879-1880 ई.

14विक्रम2000-2001 ई.1940-1941 ई.1880-1881 ई.

15वृषप्रजा2001-2002 ई.1941-1942 ई.1881-1882 ई.

16चित्रभानु2002-2003 ई.1942-1943 ई.1882-1883 ई.

17सुभानु2003-2004 ई.1943-1944 ई.1883-1884 ई.

18तारण2004-2005 ई.1944-1945 ई.1884-1885 ई.

19पार्थिव2005-2006 ई.1945-1946 ई.1885-1886 ई.

20अव्यय2006-2007 ई.1946-1947 ई.1886-1887 ई.

21सर्वजीत2007-2008 ई.1947-1948 ई.1887-1888 ई.

22सर्वधारी2008-2009 ई.1948-1949 ई.1888-1889 ई.

23विरोधी2009-2010 ई.1949-1950 ई.1889-1890 ई.

24विकृति2010-2011 ई.1950-1951 ई.1890-1891 ई.

25खर2011-2012 ई.1951-1952 ई.1891-1892 ई.

26नंदन2012-2013 ई.1952-1953 ई.1892-1893 ई.

27विजय2013-2014 ई.1953-1954 ई.1893-1894 ई.

28जय2014-2015 ई.1954-1955 ई.1894-1895 ई.

29मन्मथ2015-2016 ई.1955-1956 ई.1895-1896 ई.

30दुर्मुख2016-2017 ई.1956-1957 ई.1896-1897 ई.

31हेमलंबी2017-2018 ई.1957-1958 ई.1897-1898 ई.

32विलंबी2018-2019 ई.1958-1959 ई.1898-1899 ई.

33विकारी2019-2020 ई.1959-1960 ई.1899-1900 ई.

34शार्वरी2020-2021 ई.1960-1961 ई.1900-1901 ई.

35प्लव2021-2022 ई.1961-1962 ई.1901-1902 ई.

36शुभकृत2022-2023 ई.1962-1963 ई.1902-1903 ई.

37शोभकृत2023-2024 ई.1963-1964 ई.1903-1904 ई.

38क्रोधी2024-2025 ई.1964-1965 ई.1904-1905 ई.

39विश्वावसु2025-2026 ई.1965-1966 ई.1905-1906 ई.

40पराभव2026-2027 ई.1966-1967 ई.1906-1907 ई.

41प्ल्वंग2027-2028 ई.1967-1968 ई.1907-1908 ई.

42कीलक2028-2029 ई.1968-1969 ई.1908-1909 ई.

43सौम्य2029-2030 ई.1969-1970 ई.1909-1910 ई.

44साधारण2030-2031 ई.1970-1971 ई.1910-1911 ई.

45विरोधकृत2031-2032 ई.1971-1972 ई.1911-1912 ई.

46परिधावी2032-2033 ई.1972-1973 ई.1912-1913 ई.

47प्रमादी2033-2034 ई.1973-1974 ई.1913-1914 ई.

48आनंद2034-2035 ई.1974-1975 ई.1914-1915 ई.

49राक्षस2035-2036 ई.1975-1976 ई.1915-1916 ई.

50आनल2036-2037 ई.1976-1977 ई.1916-1917 ई.

51पिंगल2037-2038 ई.1977-1978 ई.1917-1918 ई.

52कालयुक्त2038-2039 ई.1978-1979 ई.1918-1919 ई.

53सिद्धार्थी2039-2040 ई.1979-1980 ई.1919-1920 ई.

54रौद्र2040-2041 ई.1980-1981 ई.1920-1921 ई.

55दुर्मति2041-2042 ई.1981-1982 ई.1921-1922 ई.

56दुन्दुभी2042-2043 ई.1982-1983 ई.1922-1923 ई.

57रूधिरोद्गारी2043-2044 ई.1983-1984 ई.1923-1924 ई.

58रक्ताक्षी2044-2045 ई.1984-1985 ई.1924-1925 ई.

59क्रोधन2045-2046 ई.1985-1986 ई.1925-1926 ई.

60क्षय2046-2047 ई.1986-1987 ई.1926-1927 ई.

इन 60 संवत्सरों में 20-20-20 के तीन हिस्से हैं जिनको

ब्रहाविंशति, विष्णुविंशति और शिवविंशति के नाम से जाना जाता है .

1-20 तक – ब्रहाविंशति

21-40 तक – विष्णुविंशति

41-60 तक – शिवविंशति
___________________________
*ब्रह्मविंशति*

संवत्सर का नाम

वर्ष फल
स्वामी

01) प्रभव

प्रजा में यज्ञादि शुभ कार्यों की भावना हो
विष्णु

02) विभव

प्रजा में सुख समृद्धि हो
बृहस्पति

03) शुक्ल

प्रजा में धान्य प्रचुर मात्रा में हो
इंद्र

04) प्रमोद

प्रजा में आमोद प्रमोद, सुख, वैभव की वृद्धि हो
लोहित

05) प्रजापति

प्रजा में चतुर्विद उन्नति हो
त्वष्टा

06) अंगीरा

भोग-विलास की वृद्धि हो
अहिर्बुधन्य

07) श्री मुख

जनसंख्या में अधिक वृद्धि हो
पितर

08) भाव

प्राणियों में सद्भावना बढे
विश्वेदेव

09) युवा

मेघों द्वारा प्रचुर वृष्टि हो
चन्द्र

10) धाता

औषधियों की वृद्धि हो
इन्द्राग्नी

11) ईश्वर

आरोग्य व क्षेम की प्राप्ति हो
अश्विनीकुमार

12) बहुधान्य

अन्न की प्रचुरता हो
भग

13) प्रमाथी

शुभाशुभ प्रकार का मध्यम वर्ष हो
विष्णु

14) विक्रम

अन्न की अधिकता रहे
बृहस्पति

15) वृषभ 

जनों का पोषण हो
इंद्र

16) चित्र भानु

विचित्र घटनाओं की अधिकतालोहित
17) सुभानु

आरोग्यकारक व कल्याणकारी वर्ष

त्वष्टा

18) तारण

मेघों द्वारा शुभकारक वर्षा हो
अहिर्बुधन्य

19) पार्थिव

प्रजा की संपत्ति में वृद्धि हो
पितर

20) व्यय

अतिवृष्टि होविश्वेदेव
____________________________
*विष्णुविंशति*

21) सर्वजीत

उत्तम वृष्टि का योग

चन्द्र

22) सर्वधारी

धान्यों की अधिकता
इन्द्राग्नी

23) विरोधी

अनावृष्टि
अश्विनीकुमार

24) विकृति

भयकारक घटनाएं
भग

25) खर

पुरुषों में साहस व वीरता का संचार
विष्णु

26) नंदन

प्रजा में आनंद
बृहस्पति

27) विजय

दुष्टों का नाश
इंद्र

28) जय

रोगों का शमन
लोहित

29)मन्मथ

विश्व में ज्वर का प्रकोप
त्वष्टा

30) दुर्मुख

मनुष्यों की वाणी में कटुता
अहिर्बुधन्य

31) हेमलंब

सम्प्रदा की वृद्धि
पितर

32) विलम्ब

अन्न की प्रचुरता
विश्वेदेव

33) विकारी

दुष्ट व शत्रु कुपित हो
चन्द्र

34) शर्वरी

कृषि में वृद्धि
इन्द्राग्नी

35) प्लव

नदियों में बाढ़ का प्रकोप
अश्विनीकुमार

36) शुभकृत

प्रजा में शुभता
भग

37) शोभन

शुभ फलों की वृद्धि
विष्णु

38) क्रोधी

स्त्री-पुरुषों में बैर, रोग वृद्धि
बृहस्पति

39) विश्वावसु

महंगाई बढ़ना, राजा लोभी, रोग व चोरों की वृद्धिइंद्र
40) पराभव

रोग वृद्धि, प्रचुर वृष्टि, राजा का तिरस्कार
लोहित
____________________________
*शिव विंशति*

41) प्लवंग

कृषि हानि, प्रजा में रोग व चोरी, राजों का युद्ध
त्वष्टा

42) कीलक

      पित्त-विकार, मध्यम वर्षा, सर्प भय, प्रजा में कलह
अहिर्बुधन्य

43) सौम्य

राजा प्रसन्न, शीत प्रकृति के रोग, मध्यम वर्षा, सर्प भयपितर
44) साधारण
राजा व प्रजा सुखी, वर्षा उत्तम

विश्वेदेव

45) विरोधकृत

राजाओं में बैर भाव, मध्यम वर्षा, प्रजा प्रसन्न

चन्द्र

46) परिधावी

अन्न महंगा, मध्यम वर्षा, प्रजा में रोग, उपद्रव
इन्द्राग्नी

47) प्रमादी

जनता में आलस्य व प्रमाद की वृद्धि
अश्विनीकुमार

48) आनंद

जनता में सुख और आनंद
भग

49) राक्षस

प्रजा में निष्ठुरता की वृद्धि
विष्णु

50) नल

विविध धान्यों की वृद्धि
बृहस्पति

51) पिंगल

कहीं उत्तम और कहीं मध्यम वृष्टि
इंद्र

52) काल

धन-धान्य की हानि
लोहित

53) सिद्दार्थ

सम्पूर्ण कार्यों की सिद्धित्वष्टा
54) रौद्रविश्व में रौद्र भाव की अधिकता
अहिर्बुधन्य

55) दुर्मति

मध्यम वृष्टिपितर
56) दुदुम्भी

धन-धान्य की वृद्धि

विश्वेदेव
57) रुधिरोद्गारी

हिंसक घटनाओं से रक्तपात

चन्द्र

58) रक्त्राक्ष

रक्तपात से जन हानि
इन्द्राग्नी

59) क्रोधन

शासकों को विजय प्राप्त
अश्विनीकुमार

60) क्षय

प्रजा का धन क्षीण

इसी दिन से नया संवत्सर शुंरू होता है। अत इस तिथि को ‘नवसंवत्सर‘ भी कहते और ‘उगादि‘ के दिन ही पंचांग तैयार होता है।

  इसदिन ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का सृजन
मर्यादा पुरूषोत्‍तम श्रीराम का राज्‍याभिषेक
माँ दुर्गा की उपासना की नवरात्र व्रत का प्रारम्‍भ
युगाब्‍द (युधिष्‍ठिर संवत्) का आरम्‍भ
उज्‍जयिनी सम्राट- विक्रमादित्‍य द्वारा विक्रमी संवत् प्रारम्‍भ
शालिवाहन शक संवत् (भारत सरकार का राष्‍ट्रीय पंचांग)
महर्षि दयानन्द द्वारा आर्य समाज की स्‍थापना
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्‍थापक केशव बलिराम हेडगेवार का जन्‍मदिन।

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Friday, 10 March 2017

॥होली का दहन मुहूर्त॥

॥होलिका दहन २०१७॥
ग्रहराज ज्योतिष कार्यालय

हिन्दु धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, होलिका दहन, जिसे होलिका दीपक और छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है, को सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष के समय, जब पूर्णिमा तिथि व्याप्त हो, करना चाहिये।

भद्रा, जो पूर्णिमा तिथि के पूर्वाद्ध में व्याप्त होती है, के समय होलिका पूजा और होलिका दहन नहीं करना चाहिये।

सभी शुभ कार्य भद्रा में वर्जित हैं।

होलिका दहन के मुहूर्त के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये

भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम मानी जाती है।

यदि भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा का अभाव हो परन्तु भद्रा मध्य रात्रि से पहले ही समाप्त हो जाए तो प्रदोष के पश्चात जब भद्रा समाप्त हो तब होलिका दहन करना चाहिये।

यदि भद्रा मध्य रात्रि तक व्याप्त हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूँछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता है।

परन्तु भद्रा मुख में होलिका दहन कदाचित नहीं करना चाहिये।

धर्मसिन्धु में भी इस मान्यता का समर्थन किया गया है।

धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भद्रा मुख में किया होली दहन अनिष्ट का स्वागत करने के जैसा है जिसका परिणाम न केवल दहन करने वाले को बल्कि शहर और देशवासियों को भी भुगतना पड़ सकता है।

किसी-किसी साल भद्रा पूँछ प्रदोष के बाद और मध्य रात्रि के बीच व्याप्त ही नहीं होती तो ऐसी स्थिति में प्रदोष के समय होलिका दहन किया जा सकता है।

कभी दुर्लभ स्थिति में यदि प्रदोष और भद्रा पूँछ दोनों में ही होलिका दहन सम्भव न हो तो प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिये।

होलिका दहन का मुहूर्त किसी त्यौहार के मुहूर्त से ज्यादा महवपूर्ण और आवश्यक है।

यदि किसी अन्य त्यौहार की पूजा उपयुक्त समय पर न की जाये तो मात्र पूजा के लाभ से वञ्चित होना पड़ेगा परन्तु होलिका दहन की पूजा अगर अनुपयुक्त समय पर हो जाये तो यह दुर्भाग्य और पीड़ा देती है।

इस पृष्ठ पर दिया मुहूर्त धर्म-शास्त्रों के अनुसार निर्धारित है।

हम होलिका दहन के श्रेष्ठ मुहूर्त को प्रदान करते हैं।

इस पृष्ठ पर दिया मुहूर्त हमेशा भद्रा मुख का त्याग करके निर्धारित होता है क्योंकि भद्रा मुख में होलिका दहन सर्वसम्मति से वर्जित है।

होलिका दहन के साथ-साथ इस पृष्ठ पर भद्रा मुख और भद्रा पूँछ का समय भी दिया गया है जिससे भद्रा मुख में होलिका दहन से बचा जा सके।

यदि भद्रा पूँछ प्रदोष से पहले और मध्य रात्रि के पश्चात व्याप्त हो तो उसे होलिका दहन के लिये नहीं लिया जा सकता क्योंकि होलिका दहन का मुहूर्त सूर्यास्त और मध्य रात्रि के बीच ही निर्धारित किया जाता है।

होलिका दहन मुहूर्त =सायं 06:31pm से 08:23pm
अवधि = 1 घण्टा 52 मिनट्स

॥भद्रा काल विचार॥

भद्रा भगवान सूर्य देव की पुत्री और शनिदेव की बहन है।

शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी क्रूर बताया गया है।

इस उग्र स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उसे कालगणना या पंचाग के एक प्रमुख अंग करण में स्थान दिया।

जहां उसका नाम विष्टी करण रखा गया।

भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया।किंतु भद्रा काल में तंत्र कार्य, अदालती और राजनैतिक चुनाव कार्य सुफल देने वाले माने गए हैं।

पंचक (तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण) की तरह ही भद्रा योग को भी देखा जाता है।

तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं. इस तरह एक तिथि के दो करण होते हैं. कुल 11 करण माने गए हैं

जिनमें बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि चर करण और शकुनि, चतुष्पद, नाग और किस्तुघ्न अचर करण होते हैं.

विष्टि करण को ही भद्रा भी कहा जाता है. कृष्णपक्ष की तृतीया, दशमी और शुक्लपक्ष की चतुर्थी, एकादशी के उत्तरार्ध में एवं कृष्णपक्ष की सप्तमी, चतुर्दशी, शुक्लपक्ष की अष्टमी और पूर्णिमा के पूर्वार्ध में भद्रा रहती है.

भद्राकाल में विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश, यज्ञोपवित, रक्षाबंधन या कोई भी नया काम शुरू करना वर्जित माना गया है.

लेकिन भद्राकाल में ऑपरेशन करना, मुकदमा करना, किसी वस्तु का कटना, यज्ञ करना, वाहन खरीदना स्त्री प्रसंग संबंधी कर्म शुभ माने गए हैं.

सोमवार व शुक्रवार की भद्रा कल्याणी,

शनिवार की भद्रा वृश्चिकी,

गुरुवार की भद्रा पुण्यैवती,

रविवार, बुधवार व मंगलवार की भद्रा भद्रिका कहलाती है.

शनिवार की भद्रा अशुभ मानी जाती है.

चोघडिया, होलिका रात्रि

चोघडिया -  समय -   फल
शुभ 18:46 - 20:17 शुभ

अमृत 20:17 - 21:47 शुभ

चाल 21:47 - 23:17 शुभ

रोग 23:17 - 24:48 अशुभ

काल 24:48 - 26:18अशुभ

लाभ 26:18 - 27:49 शुभ

उद्वेग 27:49 - 29:19अशुभ

शुभ 29:19- 30:50शुभ

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Wednesday, 1 March 2017

॥होलाष्टक 2017 होली॥

*होलाष्टक प्रारंभ दिनांक*
*��ग्रहराज ज्योतिष कार्यालय��*

इस समय होलाष्टक को ज्योतिष की दृष्टि एक होलाष्टक दोष माना जाता है

जिसमें विवाह, गर्भाधान, गृह प्रवेश, निर्माण, आदि शुभ कार्य वर्जित हैं

इस वर्ष विक्रम संवत् २०७३ और तथा इस वर्ष 2017 का होलाष्टक 05 मार्च फाल्गुन शुक्ल पक्ष (सुदी) अष्टमी तिथि, दिन रविवार को प्रारंभ हो रहा है जो 12 मार्च होलिका दहन के साथ ही समाप्त हो जाएगा अर्थात्‌ आठ दिनों का यह होलाष्टक दोष रहेगा

जिसमें सभी शुभ कार्य वर्जित है।

विशेष रूप से इस समय विवाह, नए निर्माण व नए कार्यों को आरंभ नहीं करना चाहिए

ऐसा ज्योतिष शास्त्र का कथन है

अर्थात्‌ इन दिनों में किए गए कार्यों से कष्ट, अनेक पीड़ाओं की आशंका रहती है तथा विवाह आदि संबंध विच्छेद और कलह का शिकार हो जाते हैं या फिर अकाल मृत्यु का खतरा या बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है
*�� Dt-05/03/2017 (07:05am) से*
       *-dt 12/03/2017(08:24pm)तक��*

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