Monday, 28 December 2020

।। दत्तबावनी ।।

श्री दत्तबावनी मूल गुजराती

जय योगीश्वर दत्त दयाळ । तु ज एक जगमां प्रतिपाळ ॥ १॥ अत्र्यनसूया करी निमित्त । प्रगट्यो जगकारण निश्चित ॥ २॥ ब्रम्हाहरिहरनो अवतार । शरणागतनो तारणहार ॥ ३॥ अन्तर्यामि सतचितसुख । बहार सद्गुरु द्विभुज सुमुख् ॥ ४॥ झोळी अन्नपुर्णा करमाह्य । शान्ति कमन्डल कर सोहाय ॥ ५॥ क्याय चतुर्भुज षडभुज सार । अनन्तबाहु तु निर्धार ॥ ६॥ आव्यो शरणे बाळ अजाण । उठ दिगंबर चाल्या प्राण ॥ ७॥ सुणी अर्जुण केरो साद । रिझ्यो पुर्वे तु साक्शात ॥ ८॥ दिधी रिद्धि सिद्धि अपार । अंते मुक्ति महापद सार ॥ ९॥ किधो आजे केम विलम्ब । तुजविन मुजने ना आलम्ब ॥ १०॥ विष्णुशर्म द्विज तार्यो एम । जम्यो श्राद्ध्मां देखि प्रेम ॥ ११॥ जम्भदैत्यथी त्रास्या देव । किधि म्हेर ते त्यां ततखेव ॥ १२॥ विस्तारी माया दितिसुत । इन्द्र करे हणाब्यो तुर्त ॥ १३॥ एवी लीला क इ क इ सर्व । किधी वर्णवे को ते शर्व ॥ १४॥ दोड्यो आयु सुतने काम । किधो एने ते निष्काम ॥ १५॥ बोध्या यदुने परशुराम । साध्यदेव प्रह्लाद अकाम ॥ १६॥ एवी तारी कृपा अगाध । केम सुने ना मारो साद ॥ १७॥ दोड अंत ना देख अनंत । मा कर अधवच शिशुनो अंत ॥ १८॥ जोइ द्विज स्त्री केरो स्नेह । थयो पुत्र तु निसन्देह ॥ १९॥ स्मर्तृगामि कलिकाळ कृपाळ । तार्यो धोबि छेक गमार ॥ २०॥ पेट पिडथी तार्यो विप्र । ब्राम्हण शेठ उगार्यो क्षिप्र ॥ २१॥ करे केम ना मारो व्हार । जो आणि गम एकज वार ॥ २२॥ शुष्क काष्ठणे आंण्या पत्र । थयो केम उदासिन अत्र ॥ २३॥ जर्जर वन्ध्या केरां स्वप्न । कर्या सफळ ते सुतना कृत्स्ण ॥ २४॥ करि दुर ब्राम्हणनो कोढ । किधा पुरण एना कोड ॥ २५॥ वन्ध्या भैंस दुझवी देव । हर्यु दारिद्र्य ते ततखेव ॥ २६॥ झालर खायि रिझयो एम । दिधो सुवर्ण घट सप्रेम ॥ २७॥ ब्राम्हण स्त्रिणो मृत भरतार । किधो संजीवन ते निर्धार ॥ २८॥ पिशाच पिडा किधी दूर । विप्रपुत्र उठाड्यो शुर ॥ २९॥ हरि विप्र मज अंत्यज हाथ । रक्षो भक्ति त्रिविक्रम तात ॥ ३०॥ निमेष मात्रे तंतुक एक । पहोच्याडो श्री शैल देख ॥ ३१॥ एकि साथे आठ स्वरूप । धरि देव बहुरूप अरूप ॥ ३२॥ संतोष्या निज भक्त सुजात । आपि परचाओ साक्षात ॥ ३३॥ यवनराजनि टाळी पीड । जातपातनि तने न चीड ॥ ३४॥ रामकृष्णरुपे ते एम । किधि लिलाओ कई तेम ॥ ३५॥ तार्या पत्थर गणिका व्याध । पशुपंखिपण तुजने साध ॥ ३६॥ अधम ओधारण तारु नाम । गात सरे न शा शा काम ॥ ३७॥ आधि व्याधि उपाधि सर्व । टळे स्मरणमात्रथी शर्व ॥ ३८॥ मुठ चोट ना लागे जाण । पामे नर स्मरणे निर्वाण ॥ ३९॥ डाकण शाकण भेंसासुर । भुत पिशाचो जंद असुर ॥ ४०॥ नासे मुठी दईने तुर्त । दत्त धुन सांभाळता मुर्त ॥ ४१॥ करी धूप गाये जे एम । दत्तबावनि आ सप्रेम ॥ ४२॥ सुधरे तेणा बन्ने लोक । रहे न तेने क्यांये शोक ॥ ४३॥ दासि सिद्धि तेनि थाय । दुःख दारिद्र्य तेना जाय ॥ ४४॥ बावन गुरुवारे नित नेम । करे पाठ बावन सप्रेम ॥ ४५॥ यथावकाशे नित्य नियम । तेणे कधि ना दंडे यम ॥ ४६॥ अनेक रुपे एज अभंग । भजता नडे न माया रंग ॥ ४७॥ सहस्र नामे नामि एक । दत्त दिगंबर असंग छेक ॥ ४८॥ वंदु तुजने वारंवार । वेद श्वास तारा निर्धार ॥ ४९॥ थाके वर्णवतां ज्यां शेष । कोण रांक हुं बहुकृत वेष ॥ ५०॥ अनुभव तृप्तिनो उद्गार । सुणि हंशे ते खाशे मार ॥ ५१॥ तपसि तत्वमसि ए देव । बोलो जय जय श्री गुरुदेव ॥ ५२॥ ॥ अवधूत चिंतन श्री गुरुदेव दत्त ॥

सुचना 📵यह लेख पौराणिक ग्रंथों अथवा मान्यताओं पर आधारित है अत: इसमें वर्णित सामग्री के वैज्ञानिक प्रमाण होने का आश्वासन नहीं दिया जा सकता। विस्तार में आप कार्यालय पर संपर्क करें।
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