Tuesday, 12 April 2022

।।🚩ब्रह्मकृतं वामनस्तोत्रम्🚩।।

ब्रह्मकृतं वामनस्तोत्रम्

।।वामन स्तोत्र।।
तं जातमात्रं भगवान्ब्रह्मा लोकपितामहः । जातकर्मादिकाः कृत्वा क्रियास्तुष्टाव पार्थिव ॥ ६७॥ ब्रह्मोवाच - जयाद्येश जयाजेय जय सर्वात्मकात्मक । जय जन्मजरापेत जयानन्त जयाच्युत ॥ ६८॥ जयाजित जयाशेष जयाव्यक्तस्थिते जय । परमार्थार्थ सर्वज्ञ ज्ञानज्ञेयात्मनिःसृत ॥ ६९॥ जयाशेषजगत्साक्षिञ्जय कर्तर्जगद्गुरो । जगतो जगदन्तेऽन्तःस्थितौ पालयिता जय ॥ ७०॥ जयाखिल जयाशेष जयाखिलहृदि स्थित । जयादिमध्यान्तमय सर्वज्ञानमयोत्तम ॥ ७१॥ मुमुक्षुभिरनिर्देश्य स्वयन्दृष्ट जयेश्वर । योगिभिर्मुक्तिफलद दमादिगुणभूषणैः ॥ ७२॥ जयातिसूक्ष्म दुर्ज्ञेय जगत्स्थूल जगन्मय । जय स्थूलातिसूक्ष्म त्वं जयातीन्द्रिय सेन्द्रिय ॥ ७३॥ जय स्वमाया योगस्थ शेषभोगशयाक्षर । जयैकदंष्ट्राप्रान्तान्त समुद्धृतवसुन्धर ॥ ७४॥ नृकेसरिञ्जयारातिवक्षःस्थलविदारण । साम्प्रतं जय विश्वात्मन्मायावामन केशव ॥ ७५॥ निजमायापटच्छन्न जगद्धातर्जनार्दन । जयाचिन्त्य जयानेकस्वरूपैकविध प्रभो ॥ ७६॥ वर्धस्व वर्धितानेकविकारप्रकृते हरे । त्वय्येषा जगतामीश संस्थिता धर्मपद्धतिः ॥ ७७॥ न त्वामहं न चेशानो नेन्द्राद्यास्त्रिदशा हरे । ज्ञातुमीशा न मुनयः सनकाद्या न योगिनः ॥ ७८॥ त्वन्मायापटसंवीते जगत्यत्र जगत्पते । कस्त्वां वेत्स्यति सर्वेशं त्वत्प्रसादं विना नरः ॥ ७९॥ त्वमेवाराधितो यस्य प्रसादसुमुखः प्रभो । स एव केवलं देव वेत्ति त्वां नेतरो जनः ॥ ८०॥ तदीश्वरेश्वरेशान विभो वर्धस्व भावन । प्रभावायास्य विश्वस्य विश्वात्मन्पृथुलोचन ॥ ८१॥ इति विष्णुधर्मेषु षट्सप्ततितमोऽध्यायान्तर्गतं ब्रह्मकृतं वामनस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

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