Wednesday, 10 August 2022

।।श्रीहयग्रीवकवचम्।।

श्रीहयग्रीवकवचम्

अस्य श्रीहयग्रीवकवचमहामन्त्रस्य हयग्रीव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीहयग्रीवः परमात्मा देवता, ॐ श्रीं वागीश्वराय नम इति बीजं, ॐ क्लीं विद्याधराय नम इति शक्तिः, ॐ सौं वेदनिधये नमो नम इति कीलकम्, ॐ नमो हयग्रीवाय शुक्लवर्णाय विद्यामूर्तये, ओङ्कारायाच्युताय ब्रह्मविद्याप्रदाय स्वाहा । मम श्रीहयग्रीवप्रसाद सिध्यर्थे जपे विनियोगः ॥ ध्यानम् - कलशाम्बुधिसङ्काशं कमलायतलोचनम् । कलानिधिकृतावासं कर्णिकान्तरवासिनम् ॥ १॥ ज्ञानमुद्राक्षवलयशङ्खचक्रलसत्करम् । भूषाकिरणसन्दोहविराजितदिगन्तरम् ॥ २॥ वक्त्राब्जनिर्गतोद्दामवाणीसन्तानशोभितम् । देवतासार्वभौमं तं ध्याये दिष्टार्थसिद्धये ॥ ३॥ ॐ हयग्रीवश्शिरः पातु ललाटं चन्द्रमध्यगः । शास्त्रदृष्टिर्दृशौ पातु शब्दब्रह्मात्मकश्श्रुती ॥ १॥ घ्राणं गन्धात्मकः पातु वदनं यज्ञसम्भवः । जिह्वां वागीश्वरः पातु मुकुन्दो दन्तसंहतीः ॥ २॥ ओष्ठं ब्रह्मात्मकः पातु पातु नारायणोऽधरम् । शिवात्मा चिबुकं पातु कपोलौ कमला प्रभुः ॥ ३॥ विद्यात्मा पीठकं पातु कण्ठं नादात्मको मम । भुजौ चतुर्भुजः पातु करौ दैत्येन्द्रमर्दनः ॥ ४॥ ज्ञानात्मा हृदयं पातु विश्वात्मा तु कुचद्वयम् । मध्यमं पातु सर्वात्मा पातु पीताम्बरः कटिम् ॥ ५॥ कुक्षिं कुक्षिस्थविश्वो मे बलिभङ्गो वलित्रयम् । नाभिं मे पद्मनाभोऽव्याद्गुह्यं गुह्यार्थबोधकृत् ॥ ६॥ ऊरू दामोदरः पातु जानुनी मधुसूदनः । पातु जङ्घे महाविष्णुर्गुल्भौ पातु जनार्दनः ॥ ७॥ पादौ त्रिविक्रमः पातु पातु पादाङ्गुलीर्हरिः । सर्वाङ्गं सर्वगः पातु पातु रोमाणि केशवः ॥ ८॥ धातुन्नाडीगतः पातु भार्यां लक्ष्मीपतिर्मम । पुत्रान्विश्वकुटुम्बी मे पातु बन्धून्सुरेश्वरः ॥ ९॥ मित्रं मित्रात्मकः पातु वह्न्यात्मा शत्रुसंहतीः । प्राणान्वाय्वात्मकः पातु क्षेत्रं विश्वम्भरात्मकः ॥ १०॥ वरुणात्मा रसान्पातु व्योमात्मा हृद्गुहान्तरम् । दिवारात्रं हृषीकेशः पातु सर्वं जगद्गुरुः ॥ ११॥ विषमे सङ्कटे चैव पातु क्षेमङ्करो मम । सच्चिदानन्दरूपो मे ज्ञानं रक्षतु सर्वदा ॥ १२॥ प्राच्यां रक्षतु सर्वात्मा आग्नेय्यां ज्ञानदीपकः । याम्यां बोधप्रदः पातु नैरृत्यां चिद्धनप्रभः ॥ १३॥ विद्यानिधिस्तु वारुण्यां वायव्यां चिन्मयोऽवतु । कौबेर्यां वित्तदः पातु ऐशान्यां च जगद्गुरुः ॥ १४॥ उर्ध्वं पातु जगत्स्वामी पात्वधस्तात्परात्परः । रक्षाहीनन्तु यत्स्थानं रक्षत्वखिलनायकः ॥ १४॥ एवं न्यस्तशरीरोऽसौ साक्षाद्वागीश्वरो भवेत् । आयुरारोग्यमैश्वर्यं सर्वशास्त्रप्रवक्तृताम् ॥ १६॥ लभते नात्र सन्देहो हयग्रीवप्रसादतः । इतीदं कीर्तितं दिव्यं कवचं देवपूजितम् ॥ १७॥ इति हयग्रीवतन्त्रे अथर्वणवेदे मन्त्रखण्डे पूर्वसंहितायां श्रीहयग्रीवकवचं सम्पूर्णम् ॥

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🍃🚩रक्षा बंधन 2022🚩🍃

*🍃🔅रक्षा बंधन 2022🔅🍃*
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*🙏🙏*રક્ષા બંધન વિશે શાસ્ત્રીય સ્પષ્ટતા**તારીખ 11/08/2022.*
 *ગુરુવારે સવારે 10:39 મિનિટે શ્રાવણ સુદ ચૌદશ પૂરી થાય છે*
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 *અને સવારે 10:40 થી પૂર્ણિમા તિથિ બેસે છે.*
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 *માટે રક્ષા બંધન તારીખ 11/08/2022 અને ગુરુવારે સવારે 10:40 થી જ છે.*
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*તેથી શાસ્ત્રીય મતાનુસાર યજુર્વેદ, અથર્વવેદ અને ઋગ્વેદનાં ભૂદેવોને  (તૈતરિય શાખા) તારીખ 11નાં ગુરુવારે સવારે 10:40 પછી ઉપવિત (જનોઈ, યજ્ઞોપવિત)બદલવાની છે.*
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 *ભૂદેવો ઉપરાંત જે જે ક્ષત્રિય સમાજના ભાઈઓ જનોઈ પહેરે છે તે તમામ ભાઈઓ માટે પણ આ નિયમ લાગુ પડશે.*
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*રક્ષાબંધન પર્વ નિમિત્તે ભાઈના હાથે રક્ષા બાંધવા માટે તારીખ 11/08/2022 ગુરુવારે સવારે 10:40 થી જ આખા દિવસ દરમિયાન રક્ષા બાંધી શકાય છે.*
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*અમુક લોકોના વાહિયાત મેસેજ અને વિડિયો દ્વારા ભદ્રા (વિષ્ટિ કરણ દોષ) વિશે  ડરાવવામાં આવી રહ્યા છે પરંતુ મકર રાશિમાં ચંદ્ર હોવાથી ભદ્રા પાતાળ લોકમાં વાસ કરતી હોવાથી પૃથ્વીલોક ઉપર એમનાં કોઈ પણ પ્રકારના દોષો લાગતા નથી માટે ગુરુવારે જ રક્ષા બંધન ની ઉજવણી કરવાની છે.*
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*રક્ષા બાંધવા માટે ઉત્તમ  મુહુર્ત સવારે 11વાગ્યા થી બપોરે 3:30 વાગ્યા સુધી ઉત્તમ છે ઉપરાંત સાંજે 5:15 થી રાત્રે 9:30 સુધી સારું છે.*
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*તારીખ 12/08/2022  શુક્રવારે પૂનમ અને એકમ ભેગા હોવાથી શાસ્ત્રનાં મતાનુસાર રાખડી બાંધી શકાય નહીં તે બાબત ખાસ ધ્યાનમાં રાખવી.*
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रक्षा बंधन 2022

२०२२ रक्षा बन्धन

शुभ समय एवम मुहूर्त

रक्षा बन्धन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है।

अपराह्न का समय रक्षा बन्धन के लिये अधिक उपयुक्त माना जाता है जो कि हिन्दु समय गणना के अनुसार दोपहर के बाद का समय है।

 यदि अपराह्न का समय भद्रा आदि की वजह से उपयुक्त नहीं है तो प्रदोष काल का समय भी रक्षा बन्धन के संस्कार के लिये उपयुक्त माना जाता है।

भद्रा का समय रक्षा बन्धन के लिये निषिद्ध माना जाता है। हिन्दु मान्यताओं के अनुसार सभी शुभ कार्यों के लिए भद्रा का त्याग किया जाना चाहिये। 

सभी हिन्दु ग्रन्थ और पुराण, विशेषतः व्रतराज, भद्रा समाप्त होने के पश्चात रक्षा बन्धन विधि करने की सलाह देते हैं।

भद्रा पूर्णिमा तिथि के पूर्व-अर्ध भाग में व्याप्त रहती है। अतः भद्रा समाप्त होने के बाद ही रक्षा बन्धन किया जाना चाहिये। 

उत्तर भारत में ज्यादातर परिवारों में सुबह के समय रक्षा बन्धन किया जाता है जो कि भद्रा व्याप्त होने के कारण अशुभ समय भी हो सकता है। 

इसीलिये जब प्रातःकाल भद्रा व्याप्त हो तब भद्रा समाप्त होने तक रक्षा बन्धन नहीं किया जाना चाहिये।

कुम्भ कर्क द्वये मर्त्ये स्वर्गेऽब्जेऽजात्त्रयेऽलिंगे।
स्त्री धनुर्जूकनक्रेऽधो भद्रा तत्रैव तत्फलं।।

जब चंद्रमा मेष, वृषभ, मिथुन और वृश्चिक राशि में होता है तो भद्रा स्वर्ग लोक में मानी जाती है और उर्ध्वमुखी होती है। 

जब चंद्रमा कन्या, तुला, धनु और मकर राशि में होता है तो भद्रा का वास पाताल में माना जाता है और ऐसे में भद्रा अधोमुखी होती है। 

वहीं जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि में स्थित होता है तो भद्रा का निवास भूलोक अर्थात पृथ्वी लोक पर माना जाता है और ऐसे में भद्रा सम्मुख होती है। 

उर्ध्वमुखी होने के कारण भद्रा का मुंह ऊपर की ओर होगा तथा अधोमुखी होने के कारण नीचे की तरफ।

 लेकिन दोनों ही परिस्थितियों में भद्रा शुभ प्रभाव लेगी। इसके साथ ही सम्मुख होने पर भद्रा पूर्ण रूप से प्रभाव दिखाएगी।

ईयं भद्रा शुभ-कार्येषु अशुभा भवति।

अर्थात किसी भी शुभ कार्य में भद्रा अशुभ मानी जाती है। हमारे ऋषि मुनियों ने भी भद्रा काल को अशुभ तथा दुखदायी बताया है:—

न कुर्यात मंगलं विष्ट्या जीवितार्थी कदाचन।
कुर्वन अज्ञस्तदा क्षिप्रं तत्सर्वं नाशतां व्रजेत।।
 ---महर्षि कश्यप

महर्षि कश्यप के अनुसार जो कोई भी प्राणी अपना जीवन सुखी बनाना चाहता है और आनंद पूर्वक जीवन बिताना चाहता है उसे भद्रा काल के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। यदि भूलवश कोई ऐसा कार्य हो जाए तो उसका शुभ फल नष्ट हो जाता है।

भद्रा काल के दौरान मुख्य रूप से मुंडन संस्कार, विवाह संस्कार, गृहारंभ, कोई नया व्यवसाय आरंभ करना, गृह प्रवेश, शुभ यात्रा, शुभ उदेश्य से किए जाने वाले सभी कार्य तथा रक्षाबंधन आदि मांगलिक कार्यों को नहीं करना चाहिए।

भद्रा का वास- 

उपरोक्त दी गई तिथियों में भद्रा आरंभ होने से पहले 2 घंटे तक मुख में, 

48 मिनट कंठ में, 

4 घंटे 24 मिनट हृदय में, 

एक घंटा 36 मिनट नाभि में,

 2 घंटे कमर में और 

1 घंटे 12 मिनट पुच्छ भाग में रहता है।


भद्रा का वास और उसका फल

मुख में भद्रा का वास रहे तो कार्य नाश, 

कंठ में रहे तो धन का नाश, 

हृदय में प्राण का नाश करती हैं,

 नाभि में कलह कराती हैं और 

कमर में मान हानि कराती हैं। 

पुच्छ भाग में भद्रा का वास हो तो विजय और कार्य सिद्धि दिलाती हैं। 

इस प्रकार 12 घंटे में केवल 1 घंटा 12 मिनट का अंतिम समय ही भद्रा वास में कार्य करना शुभ रहता है।


भद्रा के प्रकार और सामान्य ज्ञान

मुहूर्तग्रंथों में कृष्ण पक्ष की भद्रा को सर्पिणी और शुक्ल पक्ष की भद्रा को वृश्चिकी कहा गया है। 

अतः सर्पिणी भद्रा के मुख एवं वृश्चिकी भद्रा के पुच्छ भाग को मंगल कार्यों के लिए निषेध माना गया है। 

अतः इसका चिंतन करके यदि हम अपने मांगलिक कार्यों, उद्योग-व्यापार यात्रा आदि करें तो सफलता की संभावना सर्वाधिक रहेगी।


रक्षा बन्धन

11,अगस्त,2022 बृहस्पतिवार

रक्षा बन्धन के लिये प्रदोष काल का मुहूर्त - २०:५१ से २१:३८
(राखी बांधने का समय मुहूर्त)

अवधि - ०० घण्टे ४७ मिनट्स

रक्षा बन्धन भद्रा अन्त समय - २०:५१

रक्षा बन्धन भद्रा पूँछ - १७:१७ से १८:१८

रक्षा बन्धन भद्रा मुख - १८:१८ से २०:००

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - अगस्त ११, २०२२ को १०:३८ बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त - अगस्त १२, २०२२ को ०७:०५ बजे

विशेष स्थानिक समय तालिका देवभूमि द्वारका (गुजरात)
से है। स्थानीय समय में सामान्य परिवर्तन हो सकता है।

विशेष मुहूर्त रक्षा बंधन के लिए

शुभ समय

१२:३१ से १३:२२

अमृत काल
१८:५५ से २०:२०

रवि योग
०६:२७ से ०६:५३

विजय मुहूर्त
१५:०६ से १५:५८

गोधूलि मुहूर्त
१९:१३ से १९:३७

सायाह्न सन्ध्या
१९:२६ से २०:३२

निशिता मुहूर्त
००:३५, अगस्त १२ से ०१:१९, अगस्त १२

ब्रह्म मुहूर्त
०४:५९ से ०५:४३

प्रातः सन्ध्या
०५:२१ से ०६:२७

चौघड़िया अनुसार मुहूर्त
📆Date: 11/08/2022 

✴दिन के चौघड़िया
🔸शुभ 06:26 am 08:04 am
🔸रोग 08:04 am 09:41 am
🔸उद्वेग 09:41 am 11:19 am
🔸चर 11:19 am 12:56 pm
🔸लाभ 12:56 pm 02:33 pm
🔸अमृत 02:33 pm 04:11 pm
🔸काल 04:11 pm 05:48 pm
🔸शुभ 05:48 pm 07:25 pm

✴रात के चौघड़िया
🔸अमृत 07:25 pm 08:48 pm
🔸चर 08:48 pm 10:11 pm
🔸रोग 10:11 pm 11:33 pm
🔸काल 11:33 pm 12:56 am
🔸लाभ 12:56 am 02:19 am
🔸उद्वेग 02:19 am 03:41 am
🔸शुभ 03:41 am 05:04 am
🔸अमृत 05:04 am 06:27 am

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     छाया रोड बालाजी कोम्प्लेक्स -3 माला
भारतीय विद्यालय के सामने पोरबंदर-गुजरात

                 रविवार एवं सोमवार
                   9727972119
              शास्त्री  एच एच राजगुरू
          *ज्योतिष-वास्तु-धार्मिकपुजा*
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