Thursday, 22 June 2017

शनिवार और अमावस्या

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*शनिवार और अमावस्या*
दिनांक - २८/०९/२०१९ शनिवार

हिन्दू धर्म में अमावस्या तिथि को दान-पुण्य और पूजा आदि के लिए शुभ माना जाता है अगर यह अमावस्या शनिवार को पड़े तो इसे और भी शुभ माना जाता है शनिवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या को शनि अमावस्या  कहते हैं।

शनि अमावस्या  को बेहद दुर्लभ माना जाता है एक साल में लगभग १२ अमावस्या होती हैं लेकिन शनि अमावस्या बेहद कम होती है इस दिन भगवान शनि देव की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

*शनि अमावस्या पूजा विधि शास्त्रार्थ*

भविष्य पुराण के अनुसार प्रत्येक माह की पूर्णिमा और अमावस्या को पितर-शांति के लिए विशेष पूजा करनी चाहिए अधिकतर ज्योतिषी शनि अमावस्या के दिन अन्य अमावस्या की तरह ही पूजा करने की सलाह देते हैं इस दिन शनिदेव का विशेष पूजन करना चाहिए  इस दिन प्रात: काल पीपल के पेड़ पर या शनिदेव की प्रतिमा पर काला तिल युक्त जल अर्पित करना चाहिए  शनिदेव की प्रतिमा पर तेल अर्पित कर उनसे प्रार्थना करनी चाहिए.

पुराणों में वर्णित है कि शनिदेव की महादशा या साड़ेसाती से परेशान जातकों को शनि अमावस्या के दिन शनिदेव की पूजा जरूर करनी चाहिए इस दिन पूजा करने से शनिदेव आसानी से प्रसन्न होते हैं.

*शनि अमावस्या के दिन निम्न कार्य करने का भी प्रयास करना चाहिए जैसे*

शनिदेव से जुड़ी चीजों का दान: तिल, कंबल, तेल, काला छाता या काले कपड़े शनिदेव से जोड़ कर देखे जाते हैं। इस दिन ऐसी वस्तुओं का दान देना चाहिए।

*पितृ शांति उपाय* इस दिन पितरों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए साथ ही कई ज्योतिषी इस दिन को कालसर्प योग और पितृदोष शांति उपाय करने के लिए शुभ मानते हैं.

*पीपल के पेड़ पर जल देना* पीपल के पेड़ पर सभी देवताओं का वास होता है, साथ ही पितरों की शांति के लिए भी पीपल के पेड़ को ही महत्वपूर्ण माना जाता है इस दिन पीपल के पेड़ पर अवश्य जल चढ़ाना चाहिए.

*शनि चालीसा मंत्र आदि का जाप* हिन्दू पुराणों के अनुसार शनि स्तोत्र की रचना स्वयं राजा दशरथ ने शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए की थी भगवान शनि ने राजा दशरथ को आशीष दिया था कि भविष्य में जो भी शनि स्तोत्र का पाठ करेगा मैं उस पर प्रसन्न होऊंगा  इस दिन संभव हो सके तो शनि चालीसा, शनि मंत्र या शनि देव की आरती का पाठ अवश्य करना चाहिए.
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*हनुमान जी की पूजा*शनि अमावस्या के दिन हनुमान चालीसा या सुंदर कांड का अवश्य पाठ करना चाहिए.

*यदि जन्म कुंडली में पितृ दोष हो शनिवार और अमावस्या के दिन निवार्ण हो सकता है*

*१.*कुंडली में यदि सूर्य खराब अशुभ स्थिति में हो, राहु केतु शनि से दूषित पीड़ित (अशुभ योग संबंध केंद्र षडाष्टक, द्विद्वादश, प्रतियोग) में हो तो सूर्य जिस वस्तु का कारक है जैसे खनिज पत्थर, शिव, पशु, वन पर्वत, वृक्ष-वनस्पति को घर या घर के सामने अथवा आसपास में स्थापित करें.

*२.*आयु और ज्ञान में श्रेष्ठ व्यक्ति की मजाक, हंसी, नकल उतारने से भी सूर्य दूषित पीड़ित होता है अत: इससे बचें.

*पितृदोष के अनेक कारण हो सकते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं.*

*बहन पुत्री का ऋण :* बहन या पुत्री के साथ धोखा करना, उनकी इज्जत लूटना, जुल्म अत्याचार करना, हक दबाना, छीनना, हत्या करना, लालच में आकर उसे बेच देना। यह सभी कृत्य भयंकर पाप की श्रेणी में आते हैं तथा श्राप (ऋण) के रूप में भोगने ही पड़ते हैं.

जातक के परिवार में प्रत्यक्ष लक्षण: आर्थिक तंगी, घर की बहन पुत्री के विवाह के समय दुर्घटना, मृत्यु, समय  से पहले वृद्धावस्था के लक्षण पिचके गाल, सफेद बाल, झुर्रियां पडऩा आदि दिखाई पडऩा, जीने की इच्छा न रहना, स्त्री का सुख न मिलना, ननिहाल या ससुराल के वंश का नाश होना, कोई नाम लेने वाला भी न रहना।

कुंडली की ग्रह स्थिति से पहचान:  कुंडली के ३या ६ भाव में चंद्रमा होने पर बुध दूषित पीड़ित होता है और बुध ही ऊपर लिखे अशुभ फल देता है।

*मुक्ति का उपाय :*परिवार के सभी सदस्यों के समान रूप से चंदे का पैसा  इकट्ठा कर बुध के दिन यथाशक्ति ११ से लेकर १०१ कन्याओं को हलवा, पुड़ी, खिलाकर दक्षिणा देने तथा कन्याओं का आशीर्वाद लेने से ऋण मुक्ति हो जाती है। ध्यान रहे कि यह कार्य पूर्ण श्रद्धा से किया जाए तथा बेमन बेगार की तरह न भुगता जाए।

*स्त्री ऋण :* किसी लालच के कारण गर्भवती स्त्री की हत्या करना, उसे मारना, पीटना, लूटना, उसका अपमान करना या बलात्कार करना। यह सभी कृत्य भयंकर पाप की श्रेणी में आते हैं तथा इन पापों का परिणाम भोगना ही पड़ता है।

जातक के परिवार में प्रत्यक्ष लक्षण: सुख के समय मांगलिक बेला में किसी की मृत्यु होने पर दुख भोगना, अकारण रोने लगना। कुंडली में जब शुक्र पीड़ित होता है तो ऊपर लिखे फल भोगने पड़ते हैं।

कुंडली में सूर्य चंद्रमा राहु 2 या 7 भाव में होने से शुक्र दूषित होकर पीड़ित होता है यदि शुक्र 7 या 8  भाव में न हो। इसे स्त्रीऋण का कुंडली में प्रकट लक्षण समझना चाहिए।

*मुक्ति का उपाय :*परिवार के सभी सदस्यों समान पैसे चंदे के रूप में इकट्ठा करके एक ही दिन एक ही समय में १०१गायों को चारा दाना खिलाने से मुक्ति मिल सकती है किन्तु ध्यान रहे कि कोई भी गाय अंगहीन न हो।

*निर्दयी का ऋण :*किसी जीव की हत्या करना, किसी भी अचल  सम्पत्ति मकान, दुकान धोखे से छल से हड़प लेना, निराश्रितों को उनके आश्रय से भगाकर मकान दुकान बनवाना।

*प्रत्यक्ष लक्षण  :* मकान बनवाते समय वर्षा शुरू होकर लगातार होती रहे, बंद न हो, जातक के परिवार में दुर्घटना, पलकों और भौहों के बाल झड़ाना, जातक के अपराध के कारण उसके परिवार या ससुराल वालों को पुलिस सताए, परिवार के सदस्य मृत्यु के कारण एक-एक कर काम होते जाना।

जातक की कुंडली की ग्रह स्थिति से पहचान : कुंडली के १० या ११ भाव में सूर्य चंद्रमा मंगल के बैठने पर शनि दूषित पीड़ित होता है तथा इससे निर्दयी का ऋण प्रकट होता है।

*मुक्ति के उपाय*(शाकाहारी जातकों के लिए) परिवार के सभी सदस्यों के समान पैसा चंदे के रूप में एकत्रित कर किसी दिन एक साथ एक ही समय में १००से अधिक मजदूरों को भोजन कराएं अथवा कौओं को लगातार ४३ दिन तक भोजन खिलाएं। (मासांहारी जातकों के लिए) सौ स्थानों की मछलियों को खाने हेतु आटे की सूखी गोलियां डालें।

इन उपायों से शनि के दोष का निवारण होता है।

*ईश्वरीय ऋण :* बुरी नीयत से कुत्तों को मारना या मरवाना, फकीरों साधुओं को कष्ट देना, धोखा, विश्वासघात षड्यंत्र कर किसी के वंशजों की हत्या करना, कबूतर मारना, व्यर्थ की जीव हत्या करना।

*प्रत्यक्ष लक्षण :* जातक को दूसरों के पुत्रों का पालन करना पड़ रहा हो। यात्रा में या प्रवास में धन खो जाए या चोरी ठगी करके हड़प लिया जाए। परिवार में पुत्र संतान जन्म न ले, जन्म लेते ही लगातार रोगी रहे।

जातक की कुंडली की ग्रह स्थिति से पहचान : बृहस्पति केंद्र (१,४,७,१०) में हो तथा शनि २,३,६ भाव में हो अथवा शुक्र ५,६ भाव में हो अथवा बुध ३,६ भाव में हो तो बृहस्पति दूषित (पीड़ित) होने से ऊपर लिखे ईश्वरीय ऋण के लक्षण  प्रकट होते हैं।

*मुक्ति के उपाय*परिवार के सभी सदस्यों से समान पैसा चंदा करके एक ही दिन में लगभग १०० कुत्तों को रोटी खिलाएं। विधवा स्त्री की सेवा करें। कोई काम करने से पहले नाक साफ करें। बृहस्पति की पूजा करें। पितरों का श्राद्ध  करें।

*इसके अलावा यह दिन विशेष अनेकों प्रकार के पुजा पाठ किया जाएं तो अच्छा शुभ फल मिलता है.*

*१.कालसर्प योग शांति*
*२.शनिवालि अमावस्या शांति*
*३.राहु + सूर्य ग्रहण योग शांति*
*४.श्रापित दोष निवारण*
*५.पितृ दोष निवारण*
*६.केतु + सूर्य शांति*
*७.मलिन दोष निवारण*
*८.शनि ग्रह शांति*
*९.यम यातना से मुक्ति साधना*
*१०.विष्णु प्रधान पुजा*
*११.जन्म अमावस्या नक्षत्र शांति*


सुचना 📵यह लेख पौराणिक ग्रंथों अथवा मान्यताओं पर आधारित है अत: इसमें वर्णित सामग्री के वैज्ञानिक प्रमाण होने का आश्वासन नहीं दिया जा सकता। विस्तार में आप कार्यालय पर संपर्क करें।


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