Sunday, 25 September 2016

पितृ श्राद्ध और कुंडली

      "श्री हरि:परमानंदम्"

॥ग्रहराज ज्योतिष कार्यालय॥

जन्म कुंडली दिखा कर उचित उपचार करे पितृदोष का

ग्रहराज ज्योतिष का कहना हैकि कई बार यह भी देखने में आया है कि जन्म कुंडली में कोई दोष नहीं होता है फिर भी जातक मुश्किलों में घिरा रहता है  तो इसके लिए उसे अपने परिवार की पृष्ठभूमि  पर विचार करना चाहिए. 

क्या उनके परिवार में उनके पूर्वजों का विधिवत श्राद्ध किया जाता है क्या उसके पूर्वजों को  कहीं से मुफ्त का धन तो नहीं मिला.

कुछ लोग श्राद्ध करने की बजाय मजबूरों को भोजन करवाना अधिक उचित समझते हैं. उनका तर्क होता है कि ब्राह्मणों की बजाय ये लोग ज्यादा आशीर्वाद देंगे.

यह बात सही है कि किसी भी भूखे को भोजन करवाएंगे तो वह आशीर्वाद देगा ही. तो आशीर्वाद के लिए जरुर भोजन करवाएं. लेकिन श्राद्ध कर्म तो एक ब्राह्मण ही कर सकता है और तभी पूर्वजों का आशीर्वाद भी मिलेगा.

यह श्राद्ध करने वाले को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह सुपात्र को ही आमंत्रित करे.  मंदिर का पुजारी हो तो अधिक  उचित रहेगा नहीं तो कोई भी कर्मकांडी या जनेउ धारी ब्राह्मण होना चाहिए.
          
मुफ्त का धन जिसे  कोई निसन्तान व्यक्ति अपनी जायदाद विरासत में दे जाता है या ससुराल से मिला धन.

मैं यहाँ उस धन की बात नहीं कर रहा जो किसी स्त्री को उसके विवाह में मिला है.

यहाँ मैं कहना चाहूंगा की यह वो धन है जो ससुराल में स्त्री के पिता की मृत्यु के बाद मिला है जबकि उसके भाई ना हो.

ऐसी स्थिति में धन का उपभोग तो हो रहा है लेकिन जिसके धन का उपभोग हो रहा है उसके नाम का कोई भी दान -पुन्य नहीं किया जा रहा.

 हमारे समाज में वंश परम्परा चलती है इसी के सिलसिले में पुत्र का जन्म अनिवार्य माना गया है.अगर पुत्र ना हो तो उसकी विरासत पुत्रियों में बाँट दी जाती है.

जैसे की समाज का चलन है तो विचार भी यही  हैं कि अगर पुत्र नहीं होगा तो उसका कमाया धन लोग ही खायेंगे.

उनका नाम लेने वाला कोई नहीं होगा, जब ऐसे इन्सान के धन का उपभोग किया जाये और उसके नाम को भी याद ना किया जाये तो घर में अशांति तो होगी ही.

एक अशांत आत्मा किसी को खुश रहने का आशीर्वाद कैसे दे सकती है..

ऐसी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध तो करना ही चाहिए. 

साथ ही वर्ष में एक बार उसके नाम का कोई दान कर देना चाहिए.

जैसे किसी जरूरत मंद कन्या का विवाह , कहीं पानी की व्यवस्था , या किसी बच्चे की स्कूल की फीस आदि कुछ न कुछ धन राशि जरुर उसके नाम की निकालनी चाहिए.

जब किसी को परिवार से ही जैसे बडेभाई या  चाचा जो कि या  निसन्तान हो या अविवाहित हो- अथवा असमय अकाल मौत हुई हो और उनका कोई वारिस ना  हो तो ऐसे धन का उपभोग भी  परिवार में अशांति लाता है.

अक्सर देखा गया है कि ऐसे धन को उपभोग  वाले की सबसे  छोटी संतान अधिक संताप भोगती है.

॥ऐसे में  फिर क्या किया जाए ?॥

यहाँ भी जिसका भी धन उपभोग किया जा रहा है उसका विधिवत श्राद्ध और उसके नाम से कुछ धन राशी का दान किया जाये तो शांति  बनी रह सकती है.

कई बार परिवार के कुलदेवता का अनादर भी परिवार में अशांति  का कारण बनती है.

ये जो  कुल देवता या पितृ होते हैं , वे हमारे और ईश्वर के मध्य संदेशवाहक का कार्य हैं. 

यदि ये प्रसन्न होंगे तो ईश्वर की कृपा जल्दी प्राप्त होती है.

कई बार कोई व्यक्ति किसी निसंतान दम्पति द्वारा  गोद लिया जाता है-ऐसे में उसे , वह जिस परिवार में जन्मा है , उस परिवार के कुल देवताओं की पूजा भी करने पड़ती है.

क्यूंकि उसमें उस परिवार का (जहाँ जन्म लिया है उसने ) भी ऋण चुकाना होता है- जहाँ वह रहता है वहां के कुल देवता की भी पूजा करनी होती है उसे- तभी उसके जीवन में शांति बनी रहती है.

॥ दोष है तो हल भी है ॥

॥ १ -श्राद्ध कर के ब्राह्मण को वस्त्र -दक्षिणा आदि दीजिये॥

॥२ - गाय की सेवा कीजिये- इसके लिए किसी भी मजबूर व्यक्ति की गाय के लिए साल भर के लिए चारे की व्यवस्था कीजिये ॥

॥३ -चिड़ियों को बाजरी के दाने  डालिए॥

॥४ -कोवों को रोटी॥

॥५ -हर अमावस्या को मंदिर में सूखी रसोई और दूध का दान कीजिये॥

॥६ - हर मौसम में जो भी नई सब्जी और फल हो उसे पहले अपने पितरों और कुल देवताओं के नाम मंदिर में दान दीजिये॥

॥७ - हर अमावस्या को गाय को हरा घास(चरा)डलवायें॥

॥८ - किसी धार्मिक स्थल पर आम और पीपल का वृक्ष लगवा दे॥

॥९ -तुलसी की सेवा करे॥

॥१०-अपने पूर्वजों के नाम पर जल की व्यवस्था करनी चाहिए(सेवाकिय प्रवृत्ति)॥

॥--पितरो  के निमित्त विशेष--॥

हमारी व्यवस्था होसके तो तिथॅ मे जाके श्राद्ध कमॅ करना चाहिए.

*पंचबलि श्राद्ध
*महालय श्राद्ध
*प्रेतबलि श्राद्ध
*वायु-भुतबलि श्राद्ध
*नारायण नागबलि श्राद्ध
*कागबलि श्राद्ध
*श्वानबलि श्राद्ध
*पूणिॅमां श्राद्ध
*अमावस्या सवॅपितृ श्राद्ध
*मातृगया एवं पितृगया श्राद्ध
*नित्य श्राद्ध
*काम्य श्राद्ध
*वृद्ध श्राद्ध
*पावॅ श्राद्ध
*गौष्ठ श्राद्ध
*शुद्धि श्राद्ध
*दैविक श्राद्ध
*कमाॅग श्राद्ध
*तुष्ठी श्राद्ध
*त्रिपंडी श्राद्ध
*पंचायतन देव श्राद्ध

-विशेष जानकारी हेतु ग्रहराज कार्यालय का संपकॅ करे
केवल रविवार एवं सोमवार

-मिलने से पहले फोन करके एपोईमेन्ट लेना आवस्यक है.

------॥ओफिस॥------
" ग्रहराज ज्योतिष कार्यालय "
छाया चोक्की, रोनक कोम्प्लेक्ष
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       ॥हरिॐतत्सत्॥

Thursday, 22 September 2016

श्राद्ध कालिन समय

॥ग्रहराज श्राद्धपक्ष विशेष ॥

*भोजन दान उत्तमोत्म्
*वस्त्र एवं वस्तु दान
*सामग्री अन्य पुवॅजो कि प्रिय वस्तु दान

अपने स्वर्गीय परिजनों की निर्वाण तिथि पर जरूरतमंदों अथवा  ब्राह्मणों को भोजन कराए.

भोजन में मृतात्मा की कम से कम एक पसंद की वस्तु अवश्य बनाएं.

*सात्वीक भोजन होना चाहिए
*भोजन पश्चात दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए
*दुध- खीर , मिष्ठान, आदि वगेरे
*जो दिन पितृकी तिथि या दिनांक हो उस दिन होसके तो तिथॅ स्नान एवं तपॅण करे.

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Tuesday, 20 September 2016

देव-ऋषि और मनुष्य श्राद्ध

    क्यूँ श्राद्ध करना जरुरी है?
॥ग्रहराज ज्योतिष कार्यालय॥

॥ पितृ एवं ऋषि ऋण के विषय में एक पारिवारिक साध्य विचार ॥

ऋषि ऋण के विषय में भी लिखना आवश्यक है.

जिस ऋषि के गोत्र में हम जन्में हैं, उसी का तर्पण करने से हम वंचित रह जाते हैं.

हम लोग अपने गोत्र को भूल चुके हैं.

हमारे पूर्वजों की इतनी उपेक्षा से उनका श्राप हमें पीढ़ी दर पीढ़ी परेशान करेगा.

इसमें कभी संदेह नहीं करना चाहिए.

जो लोग इन ऋणों से मुक्त होने के लिए उपाय करते हैं, वे प्रायः अपने जीवन के हर क्षेत्र में सफल हो जाते हैं.

परिवार में ऋण नहीं है, रोग नहीं है, गृह क्लेश नहीं है, पत्नी-पति के विचारों में प्रमाणिक्ता व एकरूपता है संताने माता-पिता का सम्मान करती हैं.

परिवार के सभी लोग परस्पर मिल जुल कर प्रेम से रहते हैं.

अपने सुख-दुख बांटते हैं.

अपने अनुभव एक-दूसरे को बताते हैं.

ऐसा परिवार ही सुखी परिवार होता है.

दूसरी ओर, कोई-कोई परिवार तो इतना शापित होता है कि उसके मनहूस परिवार की संज्ञा दी जाती है.

सारे के सारे सदस्य तीर्थ यात्रा पर जाते हैं अथवा कहीं सैर सपाटे पर भ्रमण के लिए निकल जाते हैं और गाड़ी की दुर्घटना में सभी एक साथ मृत्यु को प्राप्त करते हैं.

पीछे बच जाता है परिवार का कोई एक सदस्य समस्त जीवन उनका शोक मनाने के लिए.

इस प्रकार पूरा का पूरा वंश ही शापित होता है.

इस प्रकार के लोग कारण तलाशते हैं.

जब सुखी थे तब न जाने किस-किस का हिस्सा हड़प लिया था.

किस की संपत्ति पर अधिकार जमा लिया था.

किसी निर्धन कमजोर पड़ोसी को दुख दिया था अथवा अपने वृद्धि माता-पिता की अवहेलना और दुर्दशा भी की और उसकी आत्मा से आह निकलती रही कि जा तेरा वंश ही समाप्त हो जाए.

कोई पानी देने वाला भी न रहे तेरे वंश में.

अतएव अपने सुखी जीवन में भी मनुष्य को डर कर चलना चाहिए.

मनुष्य को पितृ ऋण ऋषि ऋण उतारने का सतत प्रयास करना चाहिए.

जिस परिवार में कोई दुखी होकर आत्महत्या करता है या उसे आत्महत्या के लिए विवश किया जाता है तो इस परिवार का बाद में क्या हाल होगा? इस पर विचार करें.

आत्महत्या करना सरल नहीं है, अपने जीवन को कोई यूं ही तो नहीं मिटा देता, उसकी आत्मा तो वहीं भटकेगी.

वह आप को कैसे चैन से सोने देगी, थोड़ा विचार करें.

किसी कन्या का अथवा स्त्री का बलात्कार किया जाए तो वह आप को श्राप क्यों न देगी, इस पर विचार करें.

वह यदि आत्महत्या करती है, तो कसूर किसका है.

उसकी आत्मा पूरे वंश को श्राप देगी. वो आत्मा के श्राप से बचना सहज नहीं है.

आपके वंश को इसे भुगतना ही पड़ेगा, यही प्रेत बाधा दोष व यही पितृ दोष है.

इसे समझें और श्रद्धा से भावसे श्राद्ध कमॅ करे.

* प्रेतदोष - प्रेतऋण दोष
* श्रापित प्रेतदोष
* मिलन प्रेतदोष
* छाया मलिन प्रेतबाधा
* पितृ दोष - गौत्र का
* पितृ ऋण श्रापित दोष
* मांगल्य अतृप्तजीव पितृ दोष
* पशु-पक्षी एवं अन्य जीवआत्मा का श्राप
* बाल्य अवस्था मे मुत्यु या भ्रूण हत्या दोष

श्राद्ध पक्ष मे अवश्य यथा योग्य उशके प्रति सद्भावना से सद् कमॅ करे.

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        हरिॐतत्सत्

Saturday, 17 September 2016

॥पितृ दोष क्या है॥

*��ग्रहराज पितृ दोष कुंडली��*

॥पितृ दोष जातक की जन्म कुण्डली॥

व्यक्ति की जन्म कुण्डली में उत्तम ग्रह योग होते है व्यक्ति बहुत परिश्रम भी करता है उसके घर का वास्तु भी ठीक होता है, वह धर्म का पालन भी करता है परन्तु फिर भी वह जीवन में अस्थिरता, परेशानियां, घर में बीमारी, कलह, धन की न्यूनता या खूब धनार्जन के बाद भी अत्याधिक खर्चा, अचानक अपयश, विवाह में विलम्ब आदि से पीड़ित रहता है तो इसका अर्थ है कि वे वर्तमान समय कलीयुग के सबसे घातक दोष पितृ दोष से पीड़ित है.
आपके भाग्य मे जो पितृ एवं प्रेतदोष है तो उसका समाधान इस मास मे महा समाधान है.

*एक पितृ के पिछे दो ब्राह्मण भोजन कराए
*पिपल के वृक्षारोपण करे एवं
वृक्षों को पानि चठाए
*भगवत् कथाओं सुने एवं विष्णु भगवान की उपासना करे
*ऋण मुक्ति हेतु श्राद्ध पक्षमे एकबार मुड़न करवाई

*क्रमशः*

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Friday, 16 September 2016

श्रद्धा कि भावना श्राद्ध

॥ग्रहराज श्रद्धा और श्राद्ध॥

श्राद्ध श्रद्धा शब्द से बना है

श्रद्धापूर्वक किये गये कर्म को श्राद्ध कहते है. पित्तरों का श्राद्ध करने से कुछ लाभ है अथवा नहीं इसका उत्तर है कि लाभ है अवश्य है और यह लाभ श्राद्ध करने वाले को अत्यधिक तथा पित्तरों को उसका सूक्ष्म अंश मिलता है

जिससे वह अत्यधिक शक्ति, प्रसन्नता एवं सन्तोष का अनुभव करते हैं क्योंकि इस संसार में प्रत्येक जीव या आत्मा किसी ना किसी रूप में विद्यमान अवश्य रहती है.

श्राद्ध के समय पित्तरों के द्वारा जो हमारे ऊपर उपकार हुये है उनका स्मरण करके उनके प्रति अपनी श्रद्धा एवं भावना जरूर व्यक्त करनी चाहिये.

(श्रद्धावान् क्रियते सश्राद्धः)
-श्रद्धासे किया हुवा कमॅ को श्राद्ध कहते है.
*क्रमशः*

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Thursday, 15 September 2016

॥श्राद्ध मास महत्व॥

��ग्रहराज श्राद्ध महत्व��

*《पितरों का श्राद्ध कर्म》*

हिन्दू धर्म शास्त्र में कहा गया भी गया है कि जो मनुष्य श्राद्ध करता है वह पित्तरों के आशीर्वाद से आयु, पुत्र, यश, बल, वैभव, सुख तथा धन-धान्य प्राप्त करता है.

इसीलिये हिन्दू लोग भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन नियम पूर्वक स्नान करके पित्तरों का तर्पण करते है तथा जो दिन उनके पितृ की मृत्यु का होता है उस दिन अपनी शक्ति के अनुसार दान एवं ब्राहमणों को भोजन कराते है.

पहले समय में इस देश में श्राद्ध कर्म का बहुत प्रचार था लोग अपने कर्त्तव्य पालन के लिये सुध-बुध भूल जाते थे, लोग सम्पूर्ण पितृ पक्ष में दाढ़ी, बाल नहीं बनाते थे, तेल नहीं लगाते थे, किसी प्रकार का नशा नहीं करते थे तथा पित्तरों को पुण्य प्रदान करने के लिये सत्कर्म, दान, पुण्य, पूजा-अर्चना में लगे रहते थे.
*क्रमशः*....

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Sunday, 4 September 2016

॥श्री गणपति अथवॅशीषॅ स्तोत्र पाठ॥

॥ग्रहराज एस्ट्रोलोझी॥

॥श्री गणपति अथर्वशीर्ष॥

ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि
त्वमेव केवलं कर्ताऽ सि
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि
त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।1।

ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।2।

अव त्व मां। अव वक्तारं।
अव श्रोतारं। अव दातारं।
अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं।
अव पश्चातात। अव पुरस्तात।
अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्।
अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।।
सर्वतो माँ पाहि-पाहि समंतात्।3।

त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:।
त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:।
त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽषि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्माषि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽषि।4।

सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:।
त्वं चत्वारिकाकूपदानि।5।

त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं
रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं
ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।6।

गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।
अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं।
तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं।
गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं।
नाद: संधानं। सँ हितासंधि:
सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि:
निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता।
ॐ गं गणपतये नम:।7।

एकदंताय विद्‍महे।
वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दंती प्रचोदयात।8।

एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्।
रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्।
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।
रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।।
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।
आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृ‍ते पुरुषात्परम्।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।9।

नमो व्रातपतये। नमो गणपतये।
नम: प्रमथपतये।
नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय।
विघ्ननाशिने शिवसुताय।
श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।10।

एतदथर्वशीर्ष योऽधीते।
स ब्रह्मभूयाय कल्पते।
स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते।
स सर्वत: सुखमेधते।
स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते।11।

सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।
सायंप्रात: प्रयुंजानोऽपापो भवति।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।
धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति।12।

इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्।
यो यदि मोहाद्‍दास्यति स पापीयान् भवति।
सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्।13।

अनेन गणपतिमभिषिंचति
स वाग्मी भवति
चतुर्थ्यामनश्र्नन जपति
स विद्यावान भवति।
इत्यथर्वणवाक्यं।
ब्रह्माद्यावरणं विद्यात्
न बिभेति कदाचनेति।14।

यो दूर्वांकुरैंर्यजति
स वैश्रवणोपमो भवति।
यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति
स मेधावान भवति।
यो मोदकसहस्रेण यजति
स वाञ्छित फलमवाप्रोति।
य: साज्यसमिद्भिर्यजति
स सर्वं लभते स सर्वं लभते।15।

अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा
सूर्यवर्चस्वी भवति।
सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ
वा जप्त्वा सिद्धमंत्रों भवति।
महाविघ्नात्प्रमुच्यते।
महादोषात्प्रमुच्यते।
महापापात् प्रमुच्यते।
स सर्वविद्भवति से सर्वविद्भवति।
य एवं वेद इत्युपनिषद्‍।16।

गणपति बाप्पा मोरिया......
    मंगल मूतिॅ मोरिया..।


सुचना 📵यह लेख पौराणिक ग्रंथों अथवा मान्यताओं पर आधारित है अत: इसमें वर्णित सामग्री के वैज्ञानिक प्रमाण होने का आश्वासन नहीं दिया जा सकता। विस्तार में आप कार्यालय पर संपर्क करें।


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       *🙏🏻 हरि: ॐ तत्सत् 🙏🏻*


गणेश मंगल प्राथॅना

॥वंन्दे वाणी विनायकौ॥

��गणपति बाप्पा मोरिया��

गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः।
द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः॥

विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्‌॥

विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत्‌ क्वचित्

  ��मंगल मूतिॅ मोरया��
    Grah raj astrology
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Saturday, 3 September 2016

॥श्री गणेशस्तोत्र॥

     ~ग्रहराज ज्योतिष कार्यालय~

    ॥श्री गणेशसंकटनाशन स्तोत्र ॥
 
प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।
भक्तावासं:स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।

 प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।
तृतीयं कृष्णं पिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम।।

लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ।।

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम।।

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्।।

जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।

॥ इति श्रीनारदपुराणे संकष्टनाशनं गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम्‌ ॥

       ॥~ग्रहराज ज्योतिष कार्यालय~॥
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              शास्त्री एच एच राजगुरु
      ॥ज्योतिष ~ वास्तु ~ धामिॅकपुजा॥
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                   ॥हरिॐतत्सत्॥