कृष्णजन्मस्तुतिः
रूपं यत्तत्प्राहुरव्यक्तमाद्यं ब्रह्मज्योतिर्निर्गुणं निर्विकारम् ।
सत्तामात्रं निर्विशेषं निरीहं स त्वं साक्षाद्विष्णुरध्यात्मदीपः ॥ १॥
नष्टे लोके द्विपरार्धावसाने महाभूतेष्वादिभूतं गतेषु ।
व्यक्तेऽव्यक्तं कालवेगेन याते भवानेकः शिष्यते शेषसंज्ञः ॥ २॥
योऽयं कालस्तस्य तेऽव्यक्तबन्धोश्चेष्टामाहुश्चेष्टते येन विश्वम् ।
निमेषादिर्वत्सरान्तो महीयांस्तं त्वीशानं क्षेमधाम प्रपद्ये ॥ ३॥
मर्त्यो मृत्युव्यालभीतः पलायन्सर्वांल्लोकान्निर्वृतिं नाध्यगच्छत् ।
त्वत्पादाब्जं पाप्य यदृच्छयाद्य स्वस्थः शेते मृत्युरस्मादपैति ॥ ४॥
इति श्रीमद्भागवते दशमस्कन्धे तृतीयाध्यायान्तर्गता
देवकीकृता स्तुतिः समाप्ता ।
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