Sunday, 23 December 2018

॥ श्रीकाशीविश्वेश्वरादिस्तोत्रम् ॥

हर हर महादेव हर हर
ॐ नमः शिवाय
    हरि:ॐ

श्रीगणेशाय नमः ॥

नमः श्रीविश्वनाथाय देववन्द्यपदाय ते ।
काशीशेशावतारे मे देवदेव ह्युपादिश ॥ १॥

मायाधीशं महात्मानं सर्वकारणकारणम् ।
वन्दे तं माधवं देवं यः काशीं चाधितिष्ठति ॥ २॥

वन्दे तं धर्मगोप्तारं सर्वगुह्यार्थवेदिनम् ।
गणदेवं ढुण्ढिराजं तं महान्तं स्वविघ्नहम् ॥ ३॥

भारं वोढुं स्वभक्तानां यो योगं प्राप्त उत्तमम् ।
तं सढुण्ढिं दण्डपाणिं वन्दे गङ्गातटस्थितम् ॥ ४॥

भैरवं दंष्ट्राकरालं भक्ताभयकरं भजे ।
दुष्टदण्डशूलशीर्षधरं वामाध्वचारिणम् ॥ ५॥

श्रीकाशीं पापशमनीं दमनीं दुष्टचेतसः ।
स्वनिःश्रेणिं चाविमुक्तपुरीं मर्त्यहितां भजे ॥ ६॥

नमामि चतुराराध्यां सदाऽणिम्नि स्थितिं गुहाम् ।
श्रीगङ्गे भैरवीं दूरीकुरु कल्याणि यातनाम् ॥ ७॥

भवानि रक्षान्नपूर्णे सद्वर्णितगुणेऽम्बिके ।
देवर्षिवन्द्याम्बुमणिकर्णिकां मोक्षदां भजे ॥ ८॥

इति काशीविश्वेश्वरादिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

सुचना 📵यह लेख पौराणिक ग्रंथों अथवा मान्यताओं पर आधारित है अत: इसमें वर्णित सामग्री के वैज्ञानिक प्रमाण होने का आश्वासन नहीं दिया जा सकता। विस्तार में आप कार्यालय पर संपर्क करें।

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