Monday, 10 December 2018

।।श्री लक्ष्मिकृत गणेश स्तोत्रम्।।

श्रीमहालक्ष्मिकृतम् गणपतिस्तोत्रम्

नमो महाधरायैव नानालीलाधराय ते ।
सदा स्वानन्दसंस्थाय भक्तिगम्याय वै नमः ॥ १॥

अनन्ताननदेहाय ह्यनन्तविभवाय ते । अनन्तहस्तपादाय सदानन्दाय वै नमः ॥ २॥

चराचरमयायैव चराचरविवर्जित । योगशान्तिप्रदात्रे ते सदा योगिस्वरूपिणे ॥ ३॥

अनादये गणेशायादिमध्यान्तस्वरूपिणे । आदिमध्यान्तहीनाय विघ्नेशाय नमो नमः ॥ ४॥

सर्वातिपूज्यकायैव सर्वपूज्याय ते नमः ।
सर्वेषां कारणायैव ज्येष्ठराजाय ते नमः ॥ ५॥

विनायकाय सर्वेषां नायकाय विशेषतः । ढुण्डिराजाय हेरम्ब भक्तेशाय नमो नमः ॥ ६॥

सृष्टिकर्त्रे सृष्टिहर्त्रे पालकाय नमो नमः । त्रिभिर्हीनाय देवेश गुणेशाय नमो नमः ॥ ७॥

कर्मणां फलदात्रे च कर्मणां चालकाय ते । कर्माकर्मादिहीनाय लम्बोदर नमोऽस्तु ते ॥ ८॥

योगेशाय च योगिभ्यो योगदाय गजानन ।
सदा शान्तिघनायैव ब्रह्मभूताय ते नमः ॥ ९॥

किं स्तौमि गणनाथं त्वां सतां ब्रह्मपतिं प्रभो । अतश्च प्रणमामि त्वां तेन तुष्टो भव प्रभो ॥ १०॥

धन्याहं कृतकृत्याहं सफलो मे भवोऽभवत् । धन्यौ मे जनकौ नाथ यया दृष्टो गजाननः ॥ ११॥

एवं स्तुतवती सा तं भक्तियुक्तेन चेतसा । साश्रुयुक्ता बभूवाथ बाष्पकण्ठा युधिष्ठिर ॥ १२॥

तामुवाच गणाधीशो वरं वृणु यथेप्सितम् । दास्यामि ते महालक्ष्मि भक्तिभावेन तोषितः१३॥

त्वया कृतं च मे स्तोत्रं भुक्तिमुक्तिप्रदं भवेत् । पठतां शृण्वतां देवि नानाकार्यकरं तथा । धनधान्यादिसम्भूतं सुखं विन्दति मानवः ॥ १४॥

इति श्रीमहालक्ष्मिकृतम् गणपतिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

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